खतरे की घंटी! मैनहट्टन से 80 गुना बड़ा हिमशैल, मुसीबत में आ सकती है दुनिया
वर्तमान में लगभग एक किलोमीटर प्रति घंटे की गति से बढ़ता हुआ यह हिमशैल ब्रिटिश प्रवासी क्षेत्र तक तीन से चार सप्ताह में पहुंच सकता है.
नई दिल्ली: दुनिया का सबसे बड़ा हिमशैल (icebergs) दक्षिण अटलांटिक द्वीप ओएसिस (South Atlantic island oasis) के साथ टकराव के रास्ते पर है. इस कारण पेंगुइन, सील और क्रिल सहित अन्य वन्य जीवन के लिए खतरा पैदा हो गया है. जुलाई 2017 में अंटार्कटिका की लार्सन सी आइस शेल्फ (Antarctica Larsen C Ice Shelf ) से टूट चुका ‘A68a’ हिमखंड वर्तमान में ब्रिटिश जॉर्जिया टेरिटरी ऑफ साउथ जॉर्जिया से कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर है.
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इतना बड़ा है आकार
यदि 4,700 वर्ग किलोमीटर (1,815 वर्ग मील) यानि की दक्षिण जॉर्जिया से बड़ा यह द्रव्यमान अपने मौजूदा रास्ते पर रहता है तो कुछ ही समय में द्वीप के तटों तक पहुंच जाएगा. वैज्ञानिकों को डर है कि आने वाले वर्षों में इसका वन्य जीव आबादी पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है. यह हिमशैल आकार में मैनहट्टन से 80 गुना अधिक बड़ा है.
समुद्री जीवन खतरे में
ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे (बीएएस) के वरिष्ठ प्रोफेसर गेरेंट टारलिंग ने कहा है, आइसबर्ग सील और पेंगुइन को उनके सामान्य फीडिंग ग्राउंड तक पहुंचने से रोक सकता है. अगर वन्य जीव को हिमशैल के चारों ओर बार-बार चक्कर लगाने पड़ेंगे तो वह बच्चों के लिए भोजन का प्रबंध नहीं कर पाएंगे. ऐसे में वन्यजीवों की बड़ी श्रंखला के लिए खतरा पैदा हो जाएगा. उन्होंने कहा कि हिमशैल इतना विशाल है कि यह सालों तक द्वीप में अटका रह सकता है. यह समुद्री जीवन के लिए विनाशकारी बन सकता है.
1 किलोमीटर प्रति घंटे की गति
वर्तमान में लगभग 1 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से बढ़ता हुआ यह हिमशैल ब्रिटिश प्रवासी क्षेत्र तक तीन से चार सप्ताह में पहुंच सकता है. दक्षिण जॉर्जिया और पड़ोसी दक्षिण सैंडविच द्वीप (SGSSI) चार अलग-अलग प्रजातियों के लगभग 5 मिलियन जलीय जीव सील का ठिकाना हैं. इसके आसपास का पानी व्हेल और अन्य मछलियों की आबादी के लिए अच्छा माना जाता है.
वैश्विक जलवायु पर पड़ेगा असर
अटलांटा के आकार का यह हिमखंड जैसे-जैसे तट के करीब आता जा रहा है, चिंता बढ़ती जा रही है. समुद्री जीव जंतु खतरे में हैं. इसका असर वैश्विक जलवायु पर भी पड़ेगा. क्योंकि समुद्री जीव कार्बन सिंक करते हैं. अगर वन्य जीव परेशान होता है तो कार्बन पानी में और अंततः वायुमंडल में आ जाएगा.
वन्य जीव के अस्तित्व पर खतरा
ग्लेशियोलॉजिस्ट प्रोफेसर एड्रियन लकमैन ने कहा, A68a का क्षेत्रफल लगभग एक ही प्रकार के ‘कॉपियर पेपर’ की कुछ शीटों के जैसा है. इसलिए यह तीन वर्षों तक बहने के बावजूद बरकरार है. यह महासागर के माध्यम से अपना अलग रास्ता बना रहा है. इस पर बहुत अधिक धूल जमा हो चुकी है जिससे ये और मजबूत हो रहा है. इसकी वजह से वन्यजीवों के अस्तित्व पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है.
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