Money From Lizard Export: हैडलैंप और हाथों में मोटी लकड़ी लेकर रात के वक्त कुछ लोग निकल पड़ते हैं गांवों की तरफ. ये लोग किसी को लूटने नहीं बल्कि घरों में छिपकलियां पकड़ने जाते हैं. इनसे ना सिर्फ इनका घर चलता है बल्कि चीन की मेडिकल इंडस्ट्री को भी फायदा होता है. 


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ये देश है इंडोनेशिया, जो भारत का खास दोस्त और ASEAN का सदस्य है. वेस्ट और सेंट्रल जावा में इन लोगों को छिपकलियों का शिकारी कहा जाता है. 


पकड़ने की भी है एक खास ट्रिक


इन लोगों के पास दो मीटर लंबी लकड़ी होती है, जिसकी नोक पर गोंद लगा होता है. ये लोग उससे छिपकली पर प्रहार करते हैं और जब वह उससे चिपक जाती है तो उसे हटाकर बक्से में डाल देते हैं. 8 घंटे में ये लोग करीब 400 छिपकलियां पकड़ लेते हैं. अगर बारिश हो जाए और ज्यादा मच्छर घूमने लग जाएं तो छिपकलियां पकड़ने की संख्या ज्यादा भी हो जाती है. 


मिस्टर डॉडी नाम यह काम पिछले 12 साल से कर रहे हैं. उनका बड़ा भाई भी इसी काम में लगा हुआ है. पहले लोगों को लगता था कि इस काम में पैसा नहीं है. लेकिन डॉडी ने इसे गलत साबित कर दिया. उन्होंने शुरुआती दिनों में 100 छिपकलियां पकड़ीं, जिससे उनको 15000 इंडोनेशिया रुपया (842 रुपये) मिले. भले ही भारतीय मुद्रा में यह राशि कम लगे लेकिन इन लोगों के लिए काफी ज्यादा है.  


चीन में बनती हैं पारंपरिक दवाएं


इसके बाद उनके भाई ने इन छिपकलियों को एक बिजनेसमैन को बेच दिया, जिसने उन्हें चीन भेज दिया ताकि पारंपरिक दवाएं बनाई जा सकें.


वेस्ट जावा के सिरेबॉन रीजेंसी के केर्तसुरा गांव में जकार्ता और बांडुंग की तुलना में रहन-सहन काफी कम स्तर का है. जब लोगों ने देखा कि डॉडी की छिपकलियां पकड़ने से अच्छी कमाई हो रही है तो वे भी इस काम में उतर आए. 


अब गांव के 9000 लोगों में करीब दर्जन भर छिपकलियां पकड़ते और एक्सपोर्ट करने का काम करते हैं. जिन छिपकलियों को ये लोग पकड़ते हैं, ये वही हैं जो आपको घरों में देखने को मिल जाती हैं. इनको एशियन हाउस गेको कहा जाता है. इनकी तादाद बहुत ज्यादा है.


सरकार ने तय किया है कोटा


इन घरेलू छिपकलियों का इस्तेमाल पारंपरिक दवाओं में होता है. इंडोनेशिया सरकार ने विभिन्न प्रजातियों को लेकर कोटा तय कर दिया है. हर साल इन छिपकलियों को पकड़ने का कोटा है 2.5 मिलियन यानी 25 लाख. इन छिपकलियों को खाने या फिर पालने के लिए पकड़ा जा सकता है. 


इंडोनेशिया के नेशनल रिसर्च एंड इनोवेशन एजेंसी और मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरनमेंट एंड फॉरेस्ट्री की पिछले साल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2013 से 2019 तक इंडोनेशिया ने 79.5 मिलियन से अधिक छिपकलियों का निर्यात किया गया था, जो उस समय की फसल कोटा से काफी अधिक था. 


गांवों में खुल चुके हैं उद्योग


इसके अलावा, पर्यावरण मंत्रालय को 2013 से 2019 तक केवल लगभग 1.7 मिलियन कानूनी निर्यात परमिटों की सूचना दी गई. चीन छिपकलियों का एक अहम इंपोर्टर है. इनको अस्थमा को दबाने, खांसी से राहत दिलाने, टीबी और अन्य बीमारियों के इलाज में प्रभावी माना जाता है.


केरतासुरा जैसे गांवों में छिपकलियों ने ना सिर्फ लोगों को आय का एक स्रोत दिया बल्कि कई छोटे उद्योग भी खुल गए हैं. शिकारियों को प्रति किलोग्राम छिपकलियों को पकड़ने पर लगभग 42,000 इंडोनेशियाई रुपयों की कमाई होती है. छिपकली पकड़ने वाले रोसुलुन ने बताया कि अब वे हर रात लगभग 150,000 इंडोनेशियाई रुपयों की कमाई कर लेते हैं, जबकि कुछ साल  पहले तक वे लगभग 200,000 इंडोनेशियाई रुपयों की कमाई नहीं कर पाते थे. 


अगर 52 साल का कोई शख्स महीने में 20 दिन काम करता है, तो भी वह इंडोनेशियाई मुद्रा में लगभग 3 मिलियन कमा सकता है, जो कि सिरेबोन में 2.5 मिलियन इंडोनेशियाई रुपये की न्यूनतम मजदूरी से थोड़ा ज्यादा है.