स्वीडन: इस गांव का नाम है कुछ ऐसा, बताने में भी आ जाती है शर्म; लोगों ने की बदलने की मांग
स्वीडन में लोग एक गांव का नाम बदलने के लिए अभियान चला रहे हैं. उन्होंने प्रशासन ने अपील की है कि गांव का नाम जल्द से जल्द बदल दिया जाए. अजीब नाम होने की वजह से उन्हें शर्मिंदगी के साथ-साथ कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
स्टॉकहोम: स्वीडन के एक गांव (Swedish Village) का नाम वहां रहने वालों की परेशानी का सबब बन गया है. नाम ऐसा है कि लोगों को बताते हुए भी शर्म आती है. बात केवल इतनी नहीं है, सोशल मीडिया सेंसरशिप (Social Media Censorship) के चलते वे अपने गांव का उल्लेख भी सोशल साइट्स पर नहीं कर पाते हैं. इसलिए अब उन्होंने नाम बदलने के लिए अभियान छेड़ दिया है.
इस गांव की मांग नहीं हुई थी पूरी
'डेली स्टार' में छपी खबर के अनुसार, स्वीडन (Sweden) के गांव Fucke में रहने वाले लोग अपने गांव का नया नाम चाहते हैं. उन्होंने इसके लिए एक अभियान भी छेड़ रखा है. अब ये फैसला नेशनल लैंड सर्वे विभाग को लेना है कि गांव वालों की परेशानी को ध्यान में रखकर नाम बदलना है या नहीं. हालांकि, पूर्व में विभाग ने ऐसे ही एक Fjuckby गांव का नाम बदलने की मांग को खारिज कर दिया था. विभाग ने तर्क दिया था कि चूंकि ये नाम ऐतिहासिक है, इसलिए इसे बदला नहीं जा सकता.
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ये नाम चाहते हैं गांव के लोग
Fucke नाम भी दशकों पहले रखा गया था, इसलिए माना जा रहा है कि यहां रहने वालों की मांग भी खारिज हो सकती है. हालांकि, गांव वालों का कहना है कि वो अपना अभियान जारी रखेंगे. इस गांव में कुल 11 घर हैं और उनका कहना है कि गांव का नाम बदलकर Dalsro रखा जाए, जिसका मतलब है शांत घाटी. एक ग्रामीण ने कहा, 'वैसे तो इस नाम में कोई समस्या नहीं है, लेकिन कई बार ये शर्मिंदगी का विषय बन जाता है और हम सोशल मीडिया साइट्स पर इसका उल्लेख भी नहीं कर सकते. इसलिए हम चाहते हैं कि गांव का नाम बदला जाए'.
सोशल मीडिया पर होती है ये परेशानी
स्थानीय टीवी चैनल से बात करते हुए ग्रामीण ने आगे कहा कि सोशल मीडिया सेंसरशिप के चलते इस तरह के नाम जो आपत्तिजनक या अश्लील लगते हैं, उन्हें हटा दिया जाता है. हमारे गांव के नाम के साथ भी Facebook Algorithms यही करती है. जिस वजह से हम कोई विज्ञापन भी पोस्ट नहीं कर पाते. बता दें कि नाम बदलने से जुड़े मामलों में नेशनल लैंड ट्रस्ट को स्वीडन के नेशनल हेरिटेज बोर्ड और भाषा एवं लोककथा संस्थान से मिलकर कोई फैसला लेना पड़ता है.