Taliban Afghanistan: आज 31 अगस्त यानी वो तारीख जब अमेरिका (US) ने अपने सभी सैनिकों को अफगानिस्तान (Afghanistan) से वापस बुला लिया और अफगानिस्तान को तालिबान (Taliban) के रहमोकरम पर छोड़ दिया. 2 हफ्ते तक चला अमेरिकी सैनिकों की वापसी का अभियान 31 अगस्त 2021 को पूरा हुआ था और करीब 20 साल बाद अमेरिका, अफगानिस्तान को मजबूरी में छोड़ गया. अफगानिस्तान में मौजूदगी और तालिबान के खिलाफ जंग बहुत लंबी खिंचने और करोड़ों डॉलर्स खर्च होने से अमेरिका परेशान हो चुका था. फिर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने फैसला किया कि अमेरिका, अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी को खत्म करेगा. आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका की तरह कभी रूस भी अफगानिस्तान की धरती छोड़ने पर मजबूर हुआ था. आइए इसके कारणों के बारे में जानते हैं.


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अफगानिस्तान में सैनिकों के साथ क्यों घुसा था अमेरिका?


11 सितंबर, 2001 को आतंकी सगंठन अल कायदा के अमेरिका में हमला करने के कुछ हफ्ते बाद ही तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने ऐलान किया था कि अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान में आतंकी गुटों और तालिबान के ठिकानों पर हमले शुरू कर दिए हैं. बुश ने साफ कर दिया था कि अमेरिका में हमला करने वालों को अंजाम भुगतान होगा. तालिबान को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.


अफगान सिक्योरिटी फोर्स क्यों हो गई फेल?


दरअसल, अफगानिस्तान में सेना और पुलिस यूनिट में भर्ती का रेट काफी कम था. उनमें अच्छा मनोबल भी नहीं था. उनकी सैलरी और मिलिट्री उपकरणों की चोरी और भ्रष्टाचार के भी काफी मामले थे. यही वजह थी कि अमेरिकी कमांडर अफगानी फोर्सेस पर ज्यादा भरोसा नहीं कर पाते थे. अफगानी सुरक्षाबलों के मारे जाने का रेट भी बहुत था, ये भी एक अफगान फोर्ससे के तालिबान के आगे फेल होने की बड़ी वजह थी.


पाकिस्तान ने निभाया अहम रोल


पाकिस्तान लंबे समय से आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बना रहा है. जानकारी के मुताबिक, 2001 में ही अल कायदा का लीडर ओसामा बिन लादेन और अन्य शीर्ष कमांडर पाकिस्तान चले गए थे और वहां सुरक्षित जगहों पर छिप गए थे. ओसामा कितना सेफ था आप इस बात से समझ सकते हैं कि अमेरिकी सुरक्षाबल ओसामा बिन लादेन की तलाश 10 साल बाद कर पाए जब पाकिस्तान के एबटाबाद में 2 मई 2011 को ओसामा को अमेरिकी सैनिकों ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर मार गिराया था.


रूस भी अफगानिस्तान छोड़कर भागा


जान लें कि 1979-1989 के बीच सोवियत रूस और अफगानी मुजाहिदीन लड़ाकों के बीच भीषण जंग लड़ी गई थी. दरअसल, मुजाहिदीन लड़ाके अफगानिस्तान की साम्यवादी सरकार को हटाना चाहते थे, जिसे सोवियत रूस का सपोर्ट था. दूसरी तरफ, मुजाहिदीन लड़ाकों को अमेरिका और पाकिस्तान का समर्थन मिला हुआ था. लगभग 10 साल तक अफगानिस्तान में मुजाहिदीनों से जूझने के बाद 1989 में सोवियत रूस थक गया और अपने सैनिकों को वापस रूस बुला लिया.