Corona की RT-PCR टेस्ट रिपोर्ट भी हो सकती है गलत, सामने आई `फॉल्स पॉजिटिव` केस स्टडी
एडीलेड (ऑस्ट्रेलिया): मेलबर्न में कोरोना वायरस संक्रमण (Coronavirus) के मौजूदा प्रकोप से पहले पाए गए कोविड-19 के दो मामलों की रिपोर्ट अब गलत बताई गई है. ये मामले विक्टोरिया के आधिकारिक आंकड़ों में शामिल नहीं हैं जबकि इन मामलों के चलते कंटनमेंट जोन बनाए गए इलाकों को भी हटा दिया गया है. कोविड-19 के लिए जिम्मेदार SARS-COV 2 वायरस की पहचान करने के लिए मुख्य जांच रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज पॉलीमरेज चेन रिएक्शन यानी RT-PCR जांच है. लेकिन आरटी-पीसीआर टेस्ट में भी इस बात की संभावना है कि रिपोर्ट गलत आए.
गलत रिपोर्ट का कारण क्या?
कुछ केसेज में कोई संक्रमित नहीं है फिर भी उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आ सकती है, इसको 'फॉल्स पॉजिटिव' कहा जाता है. इसे समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि RT-PCR जांच काम कैसे करती है. कोविड काल में ज्यादातर लोगों ने पीसीआर जांच के बारे में सुना है लेकिन यह काम कैसे करती है यह अब भी कुछ हद तक रहस्य जैसा है.
कैसे होता है टेस्ट
आसान और कम शब्दों में समझने की कोशिश की जाए तो नाक या गले से स्वाब सैंपल में से आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड, एक प्रकार की आनुवांशिक सामग्री) को निकालने के लिए रसायनों का प्रयोग किया जाता है. इसमें किसी व्यक्ति के आम आरएनए और अगर SARS-COV2 वायरस मौजूद है तो उसका आरएनए शामिल होता है. इस आरएनए को फिर डीएनए (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) में बदला जाता है- इसी को 'रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज (आरटी)' कहा जाता है. वायरस का पता लगाने के लिए डीएनए के छोटे खंडों को परिवर्धित किया जाता है. विशेष प्रकार के फ्लोरोसेंट डाई की मदद से, किसी जांच की नेगेटिव या पॉजिटिव के तौर पर पहचान की जाती है जो 35 या उससे अधिक परिवर्धन चक्र के बाद प्रकाश की चमक पर आधारित होता है.
गलत पॉजिटिव रिपोर्ट क्यों आती हैं?
इसके पीछे मुख्य कारण प्रयोगशाला में हुई गलती और लक्ष्य से हटकर हुई प्रतिक्रिया है यानी परीक्षण किसी ऐसी चीज के साथ क्रॉस रिएक्ट कर गया जो SARS-COV2 नहीं है. प्रयोगशाला में हुई गलतियों में क्लर्किकल गलतियां, गलत सैंपल की जांच करना, किसी दूसरे के पॉजिटिव नमूने से अन्य नमूने का दूषित हो जाना या प्रयोग किए गए प्रतिक्रियाशील द्रव्यों के साथ समस्या होना (जैसे रसायन, एंजाइम और डाई). जिसे कोविड-19 हुआ हो और वह ठीक हो गया हो वह भी कभी-कभी जांच में संक्रमित दिखता है.
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ऐसे गलत रिजल्ट कितने आम हैं?
इन्हें समझने के लिए हमें गलत पॉजिटिव रेट को देखना होगा यानी जिन लोगों की जांच हुई और जो संक्रमित न होने के बावजूद पॉजिटिव पाए गए उनका अनुपात. हाल के एक प्रीप्रिंट (ऐसा पत्र जिसकी समीक्षा नहीं हुई या अन्य रिसर्चर ने जिसका स्वतंत्र रूप से प्रमाणीकरण न किया हो) के लेखकों ने आरटी-पीसीआर जांच के लिए गलत पॉजिटिव दरों पर साक्ष्यों की समीक्षा की. उन्होंने कई स्टडी के जांच परिणामों को मिलाया और यह दर 0-16.7 प्रतिशत पाई. इन स्टडी में से 50 प्रतिशत में यह रेट 0.8-4.0 प्रतिशत तक पाई गई थी. आरटी-पीसीआर जांच में गलत नेगेटिव दरों पर की गई एक व्यवस्थित समीक्षा में गलत नेगेटिव दर 1.8-5.8 प्रतिशत पाई गई. हालांकि, समीक्षा में माना गया कि ज्यादातर स्टडी की क्वालिटी खराब थी.
कोई जांच एकदम सटीक नहीं है
इस लेख के लेखक एड्रियन एस्टरमैन, यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया के अनुसार कोई जांच एकदम सटीक नहीं है. उदाहरण के लिए अगर आरटी-पीसीआर जांच में गलत पॉजिटिव पाए जाने की दर चार प्रतिशत मानी जाए तो प्रत्येक 1,00,00 लोग जो जांच में नेगेटिव पाए गए हैं और जिन्हें सच में संक्रमण नहीं है, उनमें से 4,000 गलत तरीके से पॉजिटिव आ सकते हैं. समस्या यह है कि इनमें से ज्यादातर के बारे में हमें कभी पता नहीं चलेगा.
(INPUT: भाषा)