चिंगदाओ (चीन): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए दो दिवसीय यात्रा पर यहां पहुंचे. शिखर सम्मेलन में ईरान परमाणु समझौते के भविष्य, रूस पर अमेरिका के प्रतिबंधों के असर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिति समेत कई वैश्विक मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना है. पांच सप्ताह में मोदी की यह दूसरी चीन यात्रा है. वह राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ एक अनौपचारिक शिखर वार्ता में भाग लेने के लिए 27 और 28 अप्रैल को चीन के वुहान शहर आए थे. राजनयिकों ने बताया कि शिखर सम्मेलन में एससीओ सदस्यों के बीच व्यापार, निवेश और संपर्क से जुड़े मुद्दों के अलावा आतंकवाद, चरमपंथ और कट्टरपंथ के खतरों से निपटने में सहयोग बढ़ाने के रास्ते तलाशने पर चर्चा होने की संभावना है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

भारत और पाकिस्तान एससीओ के पूर्ण सदस्य बन गए है जिसके बाद यह पहला मौका है जब भारतीय प्रधानमंत्री इस शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे. एससीओ में अभी आठ सदस्य देश है जो दुनिया की करीब 42 फीसदी आबादी तथा वैश्विक जीडीपी के 20 फीसदी का प्रतिनिधित्व करते हैं. चीन के शानडोंग प्रांत के इस खूबसूरत तटीय शहर में शिखर वार्ता में मोदी के अलावा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन शामिल होंगे.



एससीओ में अपने भाषण में मोदी आतंकवाद से निपटने और क्षेत्र में व्यापार एवं निवेश बढ़ाने समेत दुनिया के सामने आ रही अहम चुनौतियों से निपटने में भारत का रुख स्पष्ट कर सकते हैं. चीन में यह शिखर सम्मेलन ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका के अलग होने, रूस के खिलाफ प्रतिबंध और व्यापार टैरिफ विवाद पर चीन से खींचतान की पृष्ठभूमि में हो रही है. राजनयिकों ने कहा कि शिखर सम्मेलन और साथ ही उससे इतर इन सभी मुद्दों पर बातचीत हो सकती है.


रूस, चीन और ईरान से अमेरिका के तनावपूर्ण संबंधों के मद्देनजर अधिकारियों ने कहा कि एससीओ शिखर सम्मेलन से राष्ट्रपति शी और उनके रूसी समकक्ष पुतिन को क्षेत्र के लिए साझा विजन पेश करने का अवसर मिलेगा. साथ ही एससीओ को वैश्विक मुद्दों से निपटने में शक्तिशाली आवाज के रूप में पेश करने का मौका मिलेगा.


एससीओ नेताओं के कोरियाई प्रायद्वीप, अफगानिस्तान और सीरिया में स्थिति की समीक्षा करने की भी संभावना है. अधिकारियों ने बताया कि भारत आतंकवाद की बढ़ती चुनौती से निपटने और एससीओ देशों के बीच सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के प्रभावी तरीकों पर जोर देगा.


भारत वर्ष 2005 से एससीओ में पर्यवेक्षक रहा है और यूरेशिया क्षेत्र में मुख्यत: सुरक्षा तथा आर्थिक सहयोग पर केंद्रित इसकी मंत्री स्तरीय बैठकों में भाग लेता रहा है. अधिकारियों ने बताया कि भारत एससीओ देशों के बीच व्यापार बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं की महत्ता पर भी ध्यान केंद्रित कर सकता है.


भारत संसाधनों से संपन्न मध्य एशियाई देशों तक पहुंच बढ़ाने के लिए चाबहार बंदरगाह परियोजना और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कोरिडोर जैसी संपर्क परियोजना पर बड़ा जोर दे रहा है. मोदी अन्य एससीओ देशों के नेताओं के साथ कई द्विपक्षीय बैठकें कर सकते हैं. हालांकि अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक सूचना नहीं है कि क्या मोदी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति हुसैन के बीच कोई बातचीत होगी.


उल्लेखनीय है कि 2001 में स्थापित एससीओ में वर्तमान में आठ सदस्य हैं जिनमें भारत, कजाखिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान शामिल हैं. भारत और पाकिस्तान को गत वर्ष एससीओ में शामिल किया गया था.