नई दिल्ली: पृथ्वी के प्रदूषण से तो हम सब परेशान हैं लेकिन अब अंतरिक्ष भी प्रदूषण का शिकार बन गया है. अंतरिक्ष में इस समय मलबे के 27 हजार से ज्यादा टुकड़े घूम रहे हैं और ये टुकड़े कभी भी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) और अंतरिक्ष में मौजूद सेटेलाइट से टकरा सकते हैं. अंतरिक्ष के इस प्रदूषण में सोमवार को मलबे के 1500 नए टुकड़े तब जुड़ गए जब रूस ने अपनी एंटी सेटेलाइट मिसाइल से अपने ही एक पुराने सेटेलाइट को मार गिराया. इसके बाद रूस के सेटेलाइट से निकले मलबे के हजारों टुकड़े इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के आस-पास घूमने लगे और इनके ISS से टकराने का खतरा पैदा हो गया. 


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स्थिति ये हो गई कि ISS पर मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस स्टेशन खाली करना पड़ा और इन सबने ISS से जुड़े हुए स्पेस क्राफ्ट्स में शरण ले ली. इन अंतरिक्ष यात्रियों से कहा गया कि नष्ट किए गए सेटेलाइट के टुकड़े स्पेस स्टेशन से टकरा सकते हैं और अगर ऐसा होता है तो इन्हें अपना मिशन बीच में ही छोड़कर पृथ्वी पर वापस आना होगा. 2 घंटे बाद जब ये मलबा स्पेस स्टेशन से दूर हुआ तब अंतरिक्ष यात्री वापस ISS में दाखिल हुए. 


खतरा अभी टला नहीं


अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने कहा है कि वो सेटेलाइ के इन टुकड़ों पर नजर रखेगी और अगर इसके ISS से टकराने का खतरा हुआ तो अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर वापस आने के लिए कह दिया जाएगा. एक हफ्ता पहले भी चीन द्वारा नष्ट किए गए एक सेटेलाइट के ISS से टकराने की आशंका थी, जिसके बाद पूरे के पूरे स्पेस स्टेशन को ही उसकी जगह से करीब सवा किलोमीटर दूर खिसकाना पड़ा था. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पृथ्वी से 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर है. लेकिन इतना दूर होने के बावजूद आज ये स्पेस स्टेशन भी प्रदूषण से परेशान है. 


रूस पर भड़का अमेरिका 


रूस द्वारा एंटी सेटेलाइट मिसाइल लॉन्च किए जाने पर अब अमेरिका ने कड़ा एतराज जताया है और कहा है कि रूस ने इस बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं दी थी. 


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एंटी-सेटेलाइट वेपन क्या है? 


रूस ने जिस हथियार से अपने उपग्रह को नष्ट किया उसे एंटी-सेटेलाइट वेपन कहते हैं जिन्हें अंतरिक्ष में मौजूद सेटेलाइट्स को नष्ट करने के लिए पृथ्वी से लॉन्च किया जाता है. माना जाता है कि दुनिया के कई देशों के पास ये टेक्नोलॉजी है लेकिन सिर्फ अमेरिका, रूस, चीन और भारत ही अभी तक इसका सफल परीक्षण कर पाए हैं.


युद्ध की परिभाषा बदल देंगे एंटी-सेटेलाइट वेपन्स


भारत ने 27 मार्च 2019 को एक ऐसी ही मिसाइल से पृथ्वी से 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद अपने एक निष्क्रिय हो चुके सेटेलाइट को मार गिराया था. 
एंटी-सेटेलाइट वेपन्स पारंपरिक युद्ध की परिभाषा को पूरी तरह से बदल सकते हैं, क्योंकि आज के जमाने में दुश्मन देश को घुटनों पर लाने के लिए महंगे लड़ाकू विमानों, पनजुब्बियों और युद्धपोतों से हमले करने की जरूरत नहीं है बल्कि ये काम अंतरिक्ष में मौजूद सेटेलाइट्स को नष्ट करके कुछ ही सेकेंड्स में किया जा सकता है.


अंतरिक्ष में एक युद्ध छिड़ा तो क्या होगा? 


कल्पना कीजिए कि इस समय अंतरिक्ष में एक युद्ध छिड़ गया है और दुश्मन देश एक दूसरे के उपग्रहों पर मिसाइलों से हमला कर रहे हैं तो क्या होगा. तो ये होगा कि सभी DTH काम करना बंद कर देंगे, आपका इंटरनेट भी काम नहीं करेंगे,  GPS सिस्टम बंद हो जाएगा, हवा में उड़ रहे विमान अपना रास्ता भटक जाएंगे, पानी के जहाजों को भी रास्ता नहीं मिलेगा, दुनियाभर की अर्थव्यवस्था एक झटके में रुक जाएगी, आप किसी भी प्रकार की ऑनलाइन पेमेंट नहीं कर पाएंगे, ATM और बैंक काम करना बंद कर देंगे. पूरी दुनिया की संचार व्यवस्था ठप हो जाएगी, सेनाओं का   इंटेलिजेंस, नेविगेशन, कम्युनिकेशन सिस्टम भी बंद हो जाएगा और जमीन हवा या पानी के रास्ते दुश्मन को जवाब देना संभव नहीं होगा. इसके अलावा मौसम की भविष्यवाणी ही नहीं हो पाएगी जिसके अभाव में बड़े पैमाने पर फसलें तबाह हो जाएंगी और पूरी दुनिया में अकाल और सूखे की नौबत आ जाएगी.


ये एक ऐसा युद्ध होगा जो सिर्फ कुछ मिनटों से कुछ घंटों तक चलेगा, इसमें बड़ी संख्या में आम लोगों की जान तो नहीं जाएगी लेकिन आपका जीवन 200 साल पुराने दौर में पहुंच जाएगा और देश बर्बाद होने लगेंगे.


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इस समय अंतरिक्ष में 5 हजार से ज्यादा सेटेलाइट्स मौजूद हैं. लेकिन इस दशक के अंत तक यानी 9 वर्षों के अंदर इनकी संख्या बढ़कर 27 हजार से ज्यादा हो जाएगी. लेकिन इसी दौरान बहुत सारे उपग्रह बेकार भी हो जाएंगे जिन्हें या तो मिसाइलों के जरिए नष्ट किया जाएगा या फिर ये खुद किसी दूसरे सेटेलाइट से टकरा जाएंगे और इससे जो मलबा निकलेगा वो अंतरिक्ष में मौजूद स्पेस स्टेशन के लिए भी खतरा बन जाएगा. 


अंतरिक्ष के लिए खतरा


1961 में रूस के अंतरिक्ष यात्री यूरी गागारिन (Yuri Gagrin) स्पेस में जाने वाले पहले इंसान बने थे और तब से लेकर अब तक करीब 600 इंसान अंतरिक्ष में जा चुके हैं और अब तो प्राइवेट स्पेस टूरिज्म का भी दौर शुरू हो चुका है यानी लोग टिकट खरीदकर भी अंतरिक्ष में जा रहे हैं. इन सब चीजों का नतीजा ये हुआ है कि पहले जो प्रदूषण और युद्ध पृथ्वी की समस्या हुआ करते थे वो अब अंतरिक्ष के लिए भी खतरा बन गए हैं.