Tipu Sultan's Sword: टीपू सुल्तान की ऐतिहासिक तलवार के लिए मंगलवार को ब्रिटेन के एक नीलामीघर में बोलियां लगीं. श्रीरंगपट्टम की घेराबंदी जिसमें टीपू की मृत्यु हुई, उससे जुड़ी यह तलवार £317,900 (लगभग 3.4 करोड़ रुपये में नीलाम हुई है. यह तलवार टीपू के निजी हथियारों में से एक मानी जाती है. बॉनहैम्स ऑक्शन हाउस के अनुसार, इस 'स्टील की तलवार' पर मैसूर के बाघ की 'बुबरी (बाघ की पट्टी)' की सजावट है, जो मूठ को सुशोभित करती है. तलवार के ब्लेड पर सोने में अरबी अक्षर 'हा' जड़ा हुआ है, जो टीपू के पिता हैदर अली का संदर्भ है.


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यह तलवार टीपू सुल्तान की विरासत है. इसका इतिहास इसे 1799 के उस युद्ध से जोड़ता है जिसमें टीपू सुल्तान की मृत्यु हुई थी. यह तलवार उस युद्ध में सेवा देने वाले ब्रिटिश सेना के कैप्टन एंड्रयू डिक को सौंपी गई थी. तब से जून 2024 तक यह उन्हीं के परिवार के हाथों में रही.


क्या है टीपू सुल्तान की तलवार का इतिहास


अप्रैल-मई 1799 में अंग्रेजों ने श्रीरंगपट्टनम की घेराबंदी कर दी थी. यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मैसूर साम्राज्य के बीच चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध का अंतिम टकराव था. अंग्रेजों के साथ हैदराबाद के निजाम और मराठा भी थे. टीपू सुल्तान इस युद्ध में मारा गया था. कैप्टन एंड्रयू डिक उस रेजिमेंट का हिस्सा थे जिसने टीपू के शव की तलाशी ली थी.


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डिक ने सेरिंगपटम में 75वीं हाईलैंड रेजिमेंट ऑफ फुट के लेफ्टिनेंट के रूप में काम किया. उनकी रेजिमेंट हमला करने वाली पार्टी का हिस्सा थी, जिसका मकसद सीढ़ियों का इस्तेमाल करके किले की दीवारों को तोड़ना था. लेफ्टिनेंट डिक शायद शहर में घुसने वाले ब्रिटिश सेना के पहले जवानों में से एक थे.


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