इस्लामाबाद : पाकिस्तान में हिन्दू, ईसाई, सिख, अहमदिया और हजारा जैसे मजहबी अल्पसंख्यकों पर हिंसक हमले जारी हैं. एक स्वतंत्र निगरानी समूह की रिपोर्ट में उन पर जुल्म के मुद्दे से निटपने में विफल रहने पर सरकार की आलोचना भी की गई है. मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ ह्यूमन राइट्स इन 2017’ की वार्षिक रिपोर्ट को जारी करने के मौके पर कहा कि पाकिस्तान में लोगों का गायब होना जारी है. कई बार वे इसलिए लापता हो जाते हैं कि देश की शक्तिशाली सेना की आलोचना करते हैं या कुछ बार वह पड़ोसी भारत के साथ बेहतर ताल्लुकात की पैरवी करते हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

आयोग ने अपनी रिपोर्ट को दिवंगत कार्यकर्ता असमा जहांगीर को समर्पित किया है. वह मानवाधिकारों की बड़ी हिमायती थीं. उनका फरवरी में इंतकाल हो गया था. आयोग ने लापता होने और न्यायेत्तर हत्याओं के बढ़ते मामलों तथा सैन्य अदालतों के अधिकार क्षेत्र में विस्तार को भी रेखांकित किया है. 


मानवाधिकार आयोग ने कहा, ‘ईश-निंदा के झूठे आरोप और हिंसा करना, कई बच्चों के खतरनाक हालत में श्रम में शामिल होना, महिलाओं के खिलाफ हिंसा का जारी रहना पिछले साल की चिंताजनक घटनाएं रहीं.’ इसने कहा, ‘आतंकवाद से संबंधित मौतें भले ही कम हुई हों, लेकिन धार्मिक अल्पसंख्यक और कानून प्रवर्तक एजेंसियों के आसान लक्ष्य हिंसा का दंश झेल रहे हैं.’ 


ईश - निंदा कानून बना आफत
इसने कहा कि पत्रकारों और ब्लॉगरों को लगातार धमकियां मिल रही हैं, उन पर हमले हो रहे हैं और उनका अपहरण हो रहा है लेकिन ईश - निंदा कानून ने लोगों को चुप रहने पर मजबूर कर दिया है. लोगों के सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधियों को असहनशीलता और चरमपंथ ने सीमित कर दिया है. 


296 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि उस साल में जब विचार, विवेक और धर्म की आजादी को लगातर दबाया गया, नफरत और कट्टरता को बढ़ाया गया तथा सहनशीलता और भी कम हुई, लेकिन सरकार अल्पसंख्यकों पर जुल्म के मुद्दे से निपटने में अप्रभावी रही और अपने कर्तव्यों को पूरा करने में नाकाम रही. आयोग ने कहा कि ईसाई, अहमदिया, हजारा, हिन्दू और सिख जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में कोई कमी नहीं आई और वे सभी हमलों की चपेट में आ रहे हैं. 


हिन्दुओं की आबादी 70 लाख
इसमें कहा गया है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों की आबादी कम हो रही है. पाकिस्तान की स्वतंत्रता के वक्त देश में अल्पसंख्यकों की आबादी 20 फीसदी से ज्यादा थी. 1998 की जनगणना के मुताबिक यह संख्या घटकर अब तीन प्रतिशत से थोड़ी ज्यादा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर हिन्दुओं के साथ भेदभाव जारी रहा तो भारत में उनका प्रवास जल्द पलायन में बदल सकता है. मजहब के नाम पर पंथ आधारित हिंसा जारी है और सरकार हमलों और भेदभावों से अल्पसंख्यकों की हिफाजत करने में विफल रही है. चरमपंथी पाकिस्तान के लिए विशिष्ट इस्लामिक पहचान बनाने पर अमादा हैं और ऐसा लगता है उन्हें पूरी छूट दी गई है. पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी करीब 70 लाख है और यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है. 


रिपोर्ट में कहा गया है कि सिंध में हिन्दू असहज हालत में रहने को मजबूर है. भारत के साथ उनके कथित संबंध ने पाकिस्तान में अन्य किसी अल्पसंख्यक समुदाय की तुलना में उनके जीवन को मुश्किल बना दिया है. उनके प्रतिनिधियों के मुताबिक, समुदाय की सबसे बड़ी चिंता जबरन धर्मांतरण है. अधिकतर युवतियों का जबरन धर्मांतरण होता है. 


रिपोर्ट में कहा गया है कि लड़कियों को अगवा कर लिया जाता है. उनमें से अधिकतर नाबालिग होती हैं. उनको जबरन इस्लाम में धर्मांरित किया जाता है और फिर मुस्लिम व्यक्ति से शादी कर दी जाती है.