दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit Delhi) से पहले, भारत सरकार (Government Of India) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अक्सर एक शब्द 'ग्लोबल साउथ' (Global South) का जिक्र कर रहे हैं. इस शब्द का प्रयोग अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) और ब्रिक्स (BRICS), जी7 (G7) और जी20 के नेताओं सहित अन्य वैश्विक नेताओं द्वारा भी किया जाता है. आखिर इसका मतलब क्या है?


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देशों के दो समूह
ग्लोबल नॉर्थ (Global North) और ग्लोबल साउथ (या वैश्विक संदर्भ में उत्तर-दक्षिण विभाजन) की अवधारणा का उपयोग सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक विशेषताओं के आधार पर देशों के समूह का वर्णन करने के लिए किया जाता है.


ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ शब्द मुख्य दिशाओं उत्तर और दक्षिण को संदर्भित नहीं करते हैं क्योंकि ग्लोबल साउथ के कई देश भौगोलिक रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित हैं. जो देश विकसित हैं उन्हें ग्लोबल नॉर्थ माना जाता है, जबकि जो विकासशील देश हैं उन्हें ग्लोबल साउथ के देश माना जाता है.


कौन-कौन से देश हैं शामिल
व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के अनुसार ग्लोबल साउथ एक शब्द है जिसमें मोटे तौर पर अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन, एशिया (इज़राइल, जापान और दक्षिण कोरिया के बिना), और ओशिनिया (ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बिना) के देश शामिल हैं. 


ग्लोबल साउथ के अधिकांश देशों की विशेषता कम आय, घनी आबादी, खराब बुनियादी ढांचा और अक्सर राजनीतिक या सांस्कृतिक हाशिए पर होना है. दूसरी ओर ग्लोबल नॉर्थ है (UNCTAD के अनुसार, इसमें मोटे तौर पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप, इज़राइल, जापान और दक्षिण कोरिया, साथ ही ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं)


कैसे प्रचलन में आया ग्लोबल साउथ शब्द
समसामयिक राजनीतिक अर्थ में ग्लोबल साउथ का पहला प्रयोग 1969 में कार्ल ओग्लेसबी ने कैथोलिक पत्रिका कॉमनवील में वियतनाम युद्ध पर एक विशेष अंक में लिखा था. ओग्लेस्बी ने तर्क दिया कि सदियों से नॉर्थ का 'वैश्विक दक्षिण पर प्रभुत्व [है] एक असहनीय सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करने के लिए एकजुट हुआ है.'


इस शब्द ने 20वीं सदी के उत्तरार्ध में लोकप्रियता हासिल की, जो 21वीं सदी की शुरुआत में इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ा. 2004 में यह दो दर्जन से भी कम प्रकाशनों में छपा, लेकिन 2013 तक सैकड़ों प्रकाशनों में छपा.


भारत ग्लोबल साउथ की आवाज बन चुका है
जनवरी 2023 में भारत ने पहली बार वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट की मेजबानी की. भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार, शिखर सम्मेलन सफल रहा, जिसमें लगभग 125 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और यह सभा विकासशील दुनिया के नेताओं और मंत्रियों का अब तक का सबसे बड़ा डिजिटल सम्मेलन बन गई. भारत ने जी20 की अध्यक्षता में भी ग्लोबल साउथ को सबसे ज्यादा महत्व दिया है.


दूसरी तरफ चीन (China) भी ग्लोबल साउथ का नेता बनना चाहता है और इसके लिए काफी जोर लगा रहा है. चीन की कोशिश ग्लोबल साउथ की आवाज बन चुके भारत को हटाकर खुद को स्थापित करने की है.