Nepal Political Crisis: नेपाल में हुए आम चुनाव में जो नतीजे आए हैं. उसके मुताबिक किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. ऐसे में देश में राजनीतिक अस्थिरता को खत्म करने के लिए शीर्ष पार्टियों ने नई सरकार के गठन की जो कवायद शुरू की थी वो बेनतीजा रही है. शनिवार शाम तक माना जा रहा था कि शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली नेपाली कांग्रेस और प्रचंड की अगुवाई वाली CPN-माओवादी केंद्र के बीच सत्ता बंटवारे पर जारी विमर्श आखिरी दौर में है लेकिन रात बीतने के बाद भी शपथ ग्रहण समारोह को लेकर कोई अधिकारिक ऐलान या दावा नहीं किया गया है.


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गठबंधन टूटने के कयास


दरअसल सत्तारूढ़ गठबंधन में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी, सीपीएन-माओवादी केंद्र ने कांग्रेस के सामने शर्त रखते हुए कहा कि सत्ता साझेदारी के दौरान पहले चरण में उसे सरकार का नेतृत्व मिलना चाहिए. लेकिन माना जा रहा है कि नेपाली कांग्रेस के नेता और निवर्तमान पीएम शेर बहादुर देउबा पद नहीं छोड़ने और अपने नेतृत्व में ही सरकार का शपथ ग्रहण कराने पर जोर दे रहे हैं.


ऐसे में माओवादी केंद्र के मुखिया पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' और नेपाली कांग्रेस अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा के अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहने के कारण, काठमांडू की सियासी गलियों में इस गठबंधन के टूटने की अटकलें लग रही हैं. इससे पहले गठबंधन के करीब पांच नेता खुद को देश के नये प्रधानमंत्री की दौड़ में सबसे आगे मान रहे थे. 


आज फैसला नहीं हुआ तो क्या होगा?


राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नेपाल में जारी राजनीतिक संकट के बीच आज राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी की तरफ से नए प्रधानमंत्री के लिए दावा प्रस्तुत करने की दी गई समय सीमा रविवार शाम 5 बजे समाप्त हो रही है. ऐले में कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. वहीं संख्याबल के हिसाब से गठबंधन के अन्य दलों ने सत्ता के बंटवारे की चर्चा में भाग नहीं लिया है. इसी बीच समाजवादी पार्टी के नेता माधव कुमार नेपाल के बिना देउबा और दहल के बीच चर्चा होने की खबरें आईं. तब गठबंधन पार्टी राष्ट्रीय जनमोर्चा के अध्यक्ष चित्रा बहादुर केसी ने कहा कि अन्य दलों के साथ चर्चा आगे नहीं बढ़ रही है क्योंकि 'माओवादी और कांग्रेस एक समझौते पर नहीं पहुंचे हैं.'


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