DNA analysis: London Bridge is Down....इन चार शब्दों को पिछले 70 सालों में ब्रिटिश राजशाही में नहीं बोला गया. ये वो कोडवर्ड है जिसके बोले जाने के बाद पूरा ब्रिटेन शोक में डूब जाता है. ये कोडवर्ड तब बोला जाता है, जब देश के राष्ट्राध्यक्ष की मौत हो जाती है. गुरुवार को ब्रिटेन के बालमोराल से खबर आई कि 96 साल की एलिजाबेथ की मौत हो गई. इसके तुरंत बाद एलिजाबेथ के निजी सचिव सर एडवर्ड यंग ने ब्रिटिश पीएम लिज़ ट्रस को फोन पर केवल यही कहा London Bridge is Down. ये कोडवर्ड ही अपने आप में प्रमाण था कि पिछले 70 सालों से ब्रिटेन की राजगद्दी संभाल रहीं, क्वीन एलिजाबेथ नहीं रहीं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ब्रिटेन में 10 दिन का राजकीय शोक


एलिजाबेथ की मौत स्कॉटलैंड के बालमोराल में हुई. ये वो जगह है, जहां उन्होंने अपना काफी समय बिताया था. वर्ष 1852 से ही ये जगह शाही परिवार के पास थी. कहा जाता है कि एलिजाबेथ को बकिंघम पैलेस से ज्यादा सुकून, बालमोराल में मिलता था. अपने आखिरी समय में वो उसी जगह थीं, जहां उन्हें रहना अच्छा लगता था. ये एक अनोखा इत्तेफाक है. महारानी के अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया को लंदन ब्रिज कहा जाएगा, जिसको लेकर बकिंघम पैलेस की अपनी तैयारियां हैं. एलिजाबेथ की मौत के दिन को D-Day कहा जा रहा है. 10 दिन के शोक दिवस को D1, D2, D3 से लेकर D10 कहा जाएगा. चूंकी मौत स्कॉटलैंड में हुई है, इसलिए कुछ विशेष व्यवस्थाएं भी की गई हैं. इसे नाम दिया गया है ऑपरेशन यूनिकॉर्न.


ऑपरेशन यूनिकॉर्न का मकसद है, एलिजाबेथ के शव को सुरक्षित लंदन तक लाना. यूनिकॉर्न एक पौराणिक घोड़ा है, ये स्कॉटलैंड का नेशनल एनिमल है. इसीलिए इस काम के लिए ये नाम चुना गया है. ऑपरेशन यूनिकॉर्न के तहत महारानी एलिजाबेथ के शव को स्कॉटलैंड के एडिनब्रा शहर से लंदन तक लाया जाएगा. एडिनब्रा के वेवर्ली हिल्स स्टेशन से रॉयल ट्रेन से जरिए शव लाया जाना है. 13 सितंबर को एलिजाबेथ का शव लंदन पहुंचेगा, जहां ब्रिटिश पीएम लिज़ ट्रस मौजूद रहेंगी. इसके बाद लिज़ ट्रस, एलिजाबेथ के शव को बकिंघम पैलेस लेकर जाएंगी.


ब्रिटिश PM ने कोड में दिया मैसेज


14 सितंबर से वेंस्टमिंस्टर हॉल में एलिजाबेथ का शव, अंतिम दर्शनों के लिए रखा जाएगा. यहीं पर कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष, एलिजाबेथ को श्रद्धांजलि देने आ सकते हैं. 19 सितंबर को वेंस्टमिंस्टर में ही विंडसर कैसल में किंग जॉर्ज मेमोरियल चैपल में एलिजाबेथ के शव को दफनाया जाएगा. क्वीन एलिजाबेथ को याद करते हुए, उन्हें ब्रिटेन की तीनों सेनाओं के रॉयल गन सल्यूट दिया गया है. ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज ट्रॉस ने ही क्वीन एलिजाबेथ की मौत की खबर पूरे देश को दी. उन्होंने एलिजाबेथ को श्रद्धांजलि दी और अपने संबोधन के अंत में कहा - GOD SAVE THE KING.


महारानी एलिजाबेथ ने लंबे वक्त तक ब्रिटेन की राजगद्दी संभाली है. ब्रिटेन का सिस्टम भारत की तरह लोकतांत्रिक नहीं है. वहां की सरकारी व्यवस्था में राजशाही की झलक है. दरअसल ब्रिटेन में राजतंत्र और लोकतंत्र का अनोखा संगम है. ये व्यवस्था कैसे बनी और किस तरह से ये चली आ रही है इसको भी आपको जानना चाहिए. ब्रिटेन में राजशाही है, बावजूद इसके वहां पर लोकतंत्र भी है. ब्रिटेन में जिस तरह का सिस्टम चल रहा है  उसे संवैधानिक राजशाही कहा जा सकता है. जैसे भारत में लोकतंत्र है, हमारे यहां चुने गए उम्मीदवार ही प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति चुनते हैं. लेकिन ब्रिटेन में ऐसा नहीं है. वहां प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव होता है, लेकिन देश के सर्वोच्च पद पर राज परिवार का सदस्य होता है.


कैसे हुई राज परिवार की शुरुआत


ब्रिटेन में जिस राज परिवार का शासन है, उसकी शुरुआत आज से हजार साल पहले हुई थी. वर्ष 1066 में विलियम नाम के शख्स ने इंग्लैंड पर कब्जा कर लिया था. वहीं से इस राजपरिवार की शुरूआत हुई है. हालांकि इसमें समय समय पर कई बदलाव हुए, जैसे वर्ष 1215 में मैग्ना कार्टा समझौता हुआ. इसके तहत राजपरिवार ने अपनी कई शक्तियां अलग-अलग राज्यों के प्रधानों को बांट दीं. इन राज्यों के मुखियाओं को उस वक्त लॉर्ड्स कहा जाता था. इस व्यवस्था के बाद ही ब्रिटेन में संवैधानिक राजशाही जैसे नई व्यवस्था की शुरुआत हुई. ये व्यवस्था आजतक चल रही है, जिसमें देश संविधान और संसद के बनाए नियमों से चलता है, लेकिन इसमें कई मामलों में राज परिवार का भी दखल होता है.


संवैधानिक राजशाही के आने के बाद ब्रिटेन में राज परिवार की शक्तियां कम होती गईं और चुने हुए प्रतिनिधियों और संसद की शक्ति बढ़ती गई. आज की स्थिति ये है कि अब राजशाही व्यवस्था एक पारंपरिक व्यवस्था बनकर रह गई है. संवैधानिक नियमों वाली नई व्यवस्था से पहले राज परिवार के शासन में अप्रैल 1926 में एलिजाबेथ का जन्म हुआ था. वर्ष 1936 में जॉर्ज पंचम की मौत के बाद, किंग एडवर्ड राजा बने थे. किंग एडवर्ड, एलिजाबेथ के पिता किंज जॉर्ज के बड़े भाई थे. एडवर्ड ने जल्दी ही राजगद्दी छोड़ दी जिसके बाद एलिजाबेथ के पिता जॉर्ज किंग बने. वर्ष 1952 में पिता जॉर्ज की मौत के बाद एलिजाबेथ को महारानी बनाया गया, क्योंकि किंग जॉर्ज का कोई बेटा नहीं था. उसके बाद से एलिजाबेथ ही लगातार ब्रिटेन की महारानी रहीं.


एलिजाबेथ ने किए बड़े बदलाव


ब्रिटेन में एलिजाबेथ को लेकर लोगों में बहुत सम्मान है. इसका एक बड़ा कारण है कि एलिजाबेथ ने अपने कार्यकाल में ब्रिटेन साम्राज्य को पूरी तरह से खत्म होने से बचा लिया. इसको आप इस तरह से समझ सकते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध से पहले ब्रिटिश साम्राज्य में दुनिया के 57 देश थे. इसमें भारत, श्रीलंका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश शामिल थे. ये वो दौर था जब पूरी दुनिया की जमीन का 25 प्रतिशत हिस्सा, ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था. लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बारी-बारी बहुत से देश ब्रिटिश हुकूमत से अलग होकर स्वतंत्र देश बन गए. इसके बाद 1952 में एलिजाबेथ, ब्रिटेन की महारानी बनीं. 32 साल की एलिजाबेथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने साम्राज्य को बनाए रखने की थी. लेकिन ज़माना बदल रहा था, राजशाही खत्म होती जा रही थी, लोकतांत्रिक देश बढ़ते जा रहे थे.


एलिजाबेथ की सबसे बड़ी कामयाबी यही थी कि उन्होंने कॉमनवेल्थ के रूप में अपने साम्राज्य को खत्म होने से बचा लिया. कॉमनवेल्थ के तौर पर ब्रिटिश उपनिवेश का हिस्सा रहे स्वतंत्र देश, किसी ना किसी रूप में ब्रिटेन और राज परिवार से जुड़े रहे. राज परिवार भी इन देशों की अलग अलग तरीकों से मदद करता रहा. जब एलिजाबेथ महारानी बनी थीं तब कॉमनवेल्थ में 8 देश थे, आज इसमें 54 देश हैं. इसमें भारत और पाकिस्तान भी शामिल हैं. कॉमनवेल्थ के बनने का सबसे बड़ा कारण, एलिजाबेथ की लोकप्रियता थी. उनके व्यवहार और स्वतंत्र विचारों की वजह से कॉमनवेल्थ में स्वतंत्र हो चुके देश भी जुड़े. इन देशों को कॉमनवेल्थ से जुड़ने में कोई आपत्ति नहीं थी. अब कहा ये जा रहा है कि एलिजाबेथ की मृत्यु के बाद, कॉमनवेल्थ की परंपरा भी धीरे-धीरे खत्म हो सकती है.


महारानी की मौत से ये बदलेगा


आपको हैरानी होगी ये जानकर, लेकिन हमारे देश मेँ भी जिनकी उम्र 20 से 40 वर्ष है, उन्होंने भी ब्रिटेन के राजपरिवार में हमेशा क्वीन का जिक्र सुना होगा. किसी किंग का नहीं. यही वजह है कि एलिजाबेथ की मौत के बाद ब्रिटेन में कुछ ऐसे बदलाव होने जा रहे हैं, जो पिछले 70 सालों से नहीं हुए थे और ये बदलाव सिर्फ ब्रिटेन में ही नहीं, कई अन्य देशों में भी होंगे. ब्रिटेन में सबसे बड़ा बदलाव वहां के राष्ट्रगान के साथ होने जा रहा है. ब्रिटिश राष्ट्रगान को GOD SAVE THE QUEEN कहा जाता था. लेकिन ये बदलकर GOD SAVE THE KING हो जाएगा. दिलचस्प बात ये भी है कि GOD THE SAVE KING राष्ट्रगान, इससे पहले वर्ष 1952 में गाया गया था. देखा जाए तो ब्रिटेन की बड़ी आबादी ने अपने पूरे जीवनकाल में GOD SAVE THE QUEEN ही गाया है. ये उनकी जिंदगी का एक बड़ा दिन है, जब उनके जीवनकाल में राष्ट्रगान में परिवर्तन होने जा रहा है. ब्रिटेन के साथ साथ ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा के राष्ट्रगान में भी बदलाव किया जाएगा. एलिजाबेथ की मृत्यु के बाद बकिंघम पैलेस के पास बड़ी संख्या में ब्रिटेन की जनता पहुंच गई और वहां उन्होंने अपना नया राष्ट्रगान भी गाया.


एक बड़ा बदलाव ब्रिटेन की संसद में शपथ को लेकर होने जा रहा है. अब ब्रिटेन के सांसद या पीएम की वफादारी, ब्रिटेन की महानी के प्रति नहीं, ब्रिटेन के महाराज के प्रति होगी और ये बात वो अपनी शपथ में बोलेंगे. ब्रिटिश मुद्रा पाउंड स्टर्लिंग से अब एलिजाबेथ की फोटो हटा दी जाएगी. अब वहां की करंसी पर किंग चार्ल्स की फोटो नजर आएगी. हालांकि ये एक लंबी प्रक्रिया है, जो धीरे-धीरे कुछ महीने तक चलती रहेगी. इसी के साथ ही कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की मुद्रा में भी बदलाव होगा. इन देशों की मुद्रा में एक तरफ एलिजाबेथ की फोटो हुआ करती थी, जिसे अब किंग चार्ल्स की फोटो के साथ बदला जाएगा. एलिजाबेथ की मौत का असर, ब्रिटेन के पासपोर्ट पर भी पड़ेगा. ब्रिटिश पासपोर्ट में Her Britainic Majesty's Secretary लिखा होता था, जिसे अब बदलकर His Britainic Majesty's Secretary कर दिया जाएगा.


ब्रिटिश आर्मी में कर चुकी हैं काम


ब्रिटेन के सरकारी स्टैंप में भी बदलाव होगा. स्टैंप में शाही ताज के साथ ब्रिटेन की महारानी की तस्वीर छपी होती थी, लेकिन अब इसमें ब्रिटेन के नए किंग की तस्वीर लगाई जाएगी. ब्रिटेन के पुलिसकर्मियों के हेलमेट में भी बदलाव होगा. हेलमेट पर EIIR यानी Elizabeth 2 Regina लिखा होता था, इसे भी बदला जाएगा. एलिजाबेथ की मौत से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा असर पड़ेगा. देश का सबसे अधिक खर्च उन बदलावों पर होगा, जो एलिजाबेथ की मौत के बाद आएगा. जैसे करंसी, पासपोर्ट, हेलमेट या अन्य चिन्हों में बदलाव. एलिजाबेथ की मौत का शोक 10 दिन तक मनाया जाएगा, जिसकी वजह से कई सरकारी और व्यवसायिक संस्थान, बंद रहेंगे, इससे ब्रिटेन को करीब 12 हजार 800 करोड़ से लेकर 56 हजार करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है.


द्वितीय विश्वयुद्ध में एलिजाबेथ ने मैकेनिक और कार ड्राइवर के रूप में अपनी सेना के लिए काम किया था. वर्ष 1939 में जब द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हुई थी, तब वो 13 साल की थीं. वो सेना में जाना चाहती थीं, लेकिन उन्हें कम उम्र की वजह से नहीं जाने दिया गया. इसके बाद वर्ष 1945 में जब वो 19 साल की हो गईं, तब वो ब्रिटिश सेना की महिला बटालियन में शामिल हो गईं. इस दौरान उन्होंने अपनी सेना के लिए कार ड्राइवर और मैकेनिक के रूप में काम किया. आपको जानकर हैरानी होगी, कि एलिजाबेथ के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था. दरअसल ब्रिटेन में लाइसेंस इन्हीं के नाम पर जारी होता है. इसीलिए इनको लाइसेंस की जरूरत नहीं होती और इनकी शाही गाड़ियों में भी नंबर प्लेट नहीं होती है.


एलिजाबेथ, बदलते समय के साथ खुद को और राजशाही परंपराओं में भी बदलाव करने के लिए जानी जाती हैं. राज परिवार में हमेशा से उत्तराधिकारी, परिवार बड़ा बेटा बनता आया था. लेकिन वर्ष 2013 में एलिजाबेथ ने क्राउन एक्ट को मंजूरी दी. इस एक्ट के मुताबिक राज परिवार का ताज, परिवार की सबसे पहली संतान को मिलता था. अब चाहे वो कोई लड़की हो या लड़का. राजपरिवार में तलाक और तलाकशुदा से विवाह करने की अनुमति भी एलिजाबेथ ने अपने कार्यकाल में दी.


बगैर पासपोर्ट-वीजा के करती थीं विदेश यात्रा


एलिजाबेथ ने अपने पूरे कार्यकाल में ब्रिटेन के 15 प्रधानमंत्रियों को शपथ दिलाई है. सबसे पहली बार उन्होंने वर्ष 1955 में सर एंथनी इडन को पीएम पद की शपथ दिलाई थी. अब आखिरी बार उन्होंने कुछ दिन पहले लिज़ ट्रस को हाल ही में पीएम पद की शपथ दिलाई है. ब्रिटेन के राज परिवार के साथ जुड़ी एक दिलचस्प बात ये भी है कि एलिजाबेथ के पास कोई पासपोर्ट नहीं है. इसकी वजह ये है कि ब्रिटेश पासपोर्ट इनके नाम पर ही जारी किया जाता है. इसीलिए ब्रिटेन की राजगद्दी पर बैठने वाले राजा, या रानी को पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती. इन्हें अन्य देशों में जाने के लिए वीज़ा की जरूरत भी नहीं पड़ती. एलिजाबेथ उन लोगों में से हैं, जिन्होंने बिना पासपोर्ट और वीजा के पूरी दुनिया घूमी है.


क्वीन एलिजाबेथ ने जेम्स बॉन्ड के साथ एक शार्ट फिल्म में भी नजर आ चुकी हैं. ये 2012 के लंदन ओलंपिक के प्रोमोशन का वीडियो था, जिसमें वो जेम्स बॉन्ड का किरदार निभा रहे ब्रिटिश एक्टर डेनियल क्रेग के साथ नजर आई थीं. अब हम आपको बताएंगे कि महारानी एलिज़ाबेथ के निधन के बाद ब्रिटेन का हेड ऑफ स्टेट यानी अगला किंग या क्वीन कौन होगा. दरअसल क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय 70 वर्षों तक ब्रिटिश राजघराने की प्रधान और ब्रिटेन की महारानी  रहीं. लेकिन अब उनके निधन के बाद ये राजगद्दी उनके उत्तराधिकारी और वेल्स के राजकुमार प्रिंस चार्ल्स को मिल गई है. चार्ल्स महारानी के सबसे बड़े बेटे हैं और शाही घराने के नियमों के अनुसार वो ही अब ब्रिटेन के नए सम्राट हैं.


राजगद्दी संभालने की ये परंपरा


अब आपके मन में ये भी प्रश्न होगा कि आखिर ब्रिटेन के सम्राट या महारानी बनने के लिए क्या योग्यताएं होती हैं और महारानी एलिजाबेथ के पति प्रिंस फिलिप कभी सम्राट क्यों नहीं पाए. इसका जवाब ये है कि ब्रिटेन में सिर्फ़ राज परिवार से ताल्लुक रखने वाला व्यक्ति ही राजगद्दी पर बैठ सकता है. फिर चाहे वो महिला हो या पुरुष. एलिजाबेथ के पिता ड्यूक ऑफ़ यॉर्क, किंग जॉर्ज के नाम से गद्दी पर बैठे थे. उन्हें ये गद्दी उनके बड़े भाई एडवर्ड के कुर्सी से हटने के बाद मिली थी. एलिजाबेथ अपने पिता की बड़ी बेटी थीं,लिहाजा जब पिता की मृत्यु हुई तो एलिजाबेथ की ताजपोशी की गई. एलिजाबेथ के पति ग्रीस के प्रिंस थे, इसीलिए उन्हें पूरी ज़िन्दगी प्रिंस के पदवी के साथ ही बितानी पड़ी, उन्हे कभी किंग नहीं कहा गया.


राजघराने के ही नियम के मुताबिक किसी पुरुष राजा की पत्नी को रानी कहा जा सकता है. यानी प्रिंस चार्ल्स की पत्नी कैमिला को अब क्वीन कंसॉर्ट कहा जाएगा. प्रिंस चार्ल्स भले ही ब्रिटेन के नए राजा बनने जा रहे हों, लेकिन अभी उन्हें कई औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी. सबसे पहले उन्हें अपना नया नाम चुनना है. ब्रिटेन के सम्राट के तौर पर वो चार्ल्स, फ़िलिप, ऑर्थर और जॉर्ज में से कोई भी एक नाम चुन सकते थे और उन्होंने चार्ल्स नाम का चुनाव किया. अब वो चार्ल्स तृतीय के नाम से जाने जाएंगे. प्रिंस चार्ल्स को शनिवार को आधिकारिक तौर पर ब्रिटेन का नया राजा घोषित कर दिया जाएगा. ये कार्यकम लंदन के सेंट जेम्स पैलेस में आयोजित किया जाएगा. इस दौरान प्रिवी कांउसिल, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री, वरिष्ठ सांसद और कई अन्य दूसरे प्रतिष्ठित लोगों के सामने उनके नाम का ऐलान किया जाएगा.


कोहिनूर हीरे की कहानी 


इसके बाद नए सम्राट, 18वीं सदी से चली आ रही परंपरा के तहत चर्च ऑफ़ स्कॉटलैंड की सुरक्षा की शपथ लेंगे. फिर उन्हें नया सम्राट बनाने की सार्वजनिक घोषणा की जाएगी और ताज पहनाया जाएगा. दरअसल ये एक धार्मिक आयोजन है, जिसकी अध्यक्षता आर्क-बिशप ऑफ़ कैंटबरी करते हैं. वही सैंट एडवर्ड्स का ताज, चार्ल्स के सिर पर रखा जाएगा, ये ताज करीब 2 किलो 200 ग्राम सोने से बना है, इसे वर्ष 1661 में बनाया गया था.


महारानी का ताज करीब साढ़े चार हज़ार करोड़ रुपये का बताया जाता है और इसमें कई बेशकीमती और दुर्लभ हीरे, जवाहरात जड़े हुए हैं. इसका सबसे बड़ा आकर्षण, इसमें जड़ा कोहिनूर हीरा है. कोहिनूर भारत में दक्षिण की किसी खान से निकाला गया और फिर मुगलों, अफग़ानों और सिख राजाओं के हाथों से होता हुआ अंत में ब्रिटेन जा पहुंचा. कोहिनूर हीरा 105.6 कैरेट का है और ये दुनिया के सबसे महंगे और बड़े हीरों में से एक माना जाता है. ये हीरा सिख साम्राज्य के राजा रणजीत सिंह के पास था. लेकिन 1849 की लाहौर संधि के बाद सिख महाराज दिलीप सिंह ने ये हीरा ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को तोहफे में दे दिया था. ये हीरा तब से ही शाही घराने के ताज की शान बढ़ा रहा है. महारानी विक्टोरिया से लेकर महारानी एलिजाबेथ तक कोहिनूर जड़े ताज को पहनती रही हैं.


यहां देखें VIDEO



 


ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर