भारतीयों का खून चूसा, 800 पाउंड देकर कॉलेज पर लिखवाया अपना नाम; येल यूनिवर्सिटी ने अब जाकर मांगी माफी
Yale University Slavery In India: अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी ने दास प्रथा से अपने जुड़ाव के लिए माफी मांगी है. कम ही लोग जानते हैं कि यह यूनिवर्सिटी भारतीयों का खून चूस-चूसकर कमाई गई दौलत से बनी है.
Yale University And Slavery History: येल यूनिवर्सिटी की बुनियाद हजारों-लाखों गुलामों का खून चूसकर खड़ी की गई. आज दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटीज में शुमार येल को उसका नाम मिला था भारतीयों का खून चूसने वाले एक गोरे से. उसका नाम था एलिहू येल. येल को ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपनी जड़ें जमाने के बाद, मद्रास का 'प्रेसिडेंट' बनाकर भेजा था. येल की सनक का अंदाजा इस बात से लगाइए कि एक बार उसके अस्तबल में काम करने वाला लड़का घोड़े संग भाग गया. हाथ लगते ही येल ने उसे फांसी पर लटका दिया था. मद्रास का गवर्नर रहते हुए येल ने भारतीयों का खून चूस-चूसकर खूब काली कमाई की. उसी कमाई का एक हिस्सा, महज 800 पाउंड, उसने अमेरिका को भेजा. मकसद का एक इमारत के साथ अपना नाम जुड़वाना. वो इमारत जो आगे चलकर येल कॉलेज बनी और आखिरकार येल यूनिवर्सिटी. आज यूनिवर्सिटी को शर्मिंदगी महसूस होती है कि उसकी स्थापना में कुछ ऐसे लोग शामिल रहे जिन्होंने इंसानों को भेड़-बकरियों की तरह खरीदा और बेचा. यूनिवर्सिटी ने करीब तीन सदी बाद, दासता से उस जुड़ाव के लिए माफी मांगी है.
शुक्रवार को एक बयान में येल यूनिवर्सिटी ने कहा, 'हम दासता में अपने विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक भूमिका और उसके साथ संबंधों को स्वीकार करते हैं, साथ ही साथ हमारे विश्वविद्यालय के इतिहास में गुलाम लोगों के श्रम, अनुभव और योगदान को पहचानते हैं, और हमारे शुरुआती इतिहास के दौरान येल के नेताओं के गुलामी में भागीदार होने के लिए माफी मांगते हैं.'
मद्रास से होता था गुलामों का व्यापार
यूनिवर्सिटी ने दास प्रथा से अपने जुड़ाव का इतिहास समझने के लिए जांच बैठाई थी. उसके तमाम पहलुओं को येल प्रोफेसर डेविड ब्लाइट की किताब 'येल एंड स्लेवरी: ए हिस्ट्री' में सामने रखा गया है. यह किताब एलिहू येल को संस्थान का 'प्रमुख दानकर्ता' बताती है. इसके मुताबिक, एलिहू येल 1672 में क्लर्क बनकर भारत आया था. फिर वह लेखक बना और आगे चलकर मद्रास जैसे बड़े भूभाग का गवर्नर. किताब के अनुसार, 1687 में येल को मद्रास का गवर्नर बनाया गया. उस समय पूरे हिंद महासागर में गुलामों के व्यापार पर ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा था.
ब्लाइट अपनी किताब में बताते हैं कि गवर्नर के रूप में एलिहू येल ने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए गुलाम बनाए गए कई लोगों की खरीद-फरोख्त देखी. ऐतिहासिक दस्तावेजों के हवाले से किताब में लिखा गया है कि 1680 के दशक में, मद्रास के भीतर भयानक अकाल पड़ा. उस दौरान गुलामों के धंधे ने बड़ी तेजी से जोर पकड़ा. येल ने इसका फायदा उठाया और सैकड़ों गुलाम खरीदे. फिर उन्हें सेंट हेलेना भिजवा दिया.
किताब यह साफ नहीं बताती कि येल ने कितने लोगों को गुलाम बना रखा था. लेकिन यह जरूर कहती है कि येल ने इंसानों की खरीद-फरोख्त के जरिए काफी कमाई की, इसमें कोई शक नहीं.
येल के गवर्नर रहने के दौरान, मद्रास में दास प्रथा खूब फली-फूली. एलिहू येल इसमें सीधे तौर पर शामिल था या नहीं, इतिहासकारों की राय इस पर जुदा है. कुछ इनकार करते हैं कि वह गुलामों का धंधा करता था. कुछ लिखते हैं कि गवर्नर येल ने ऐसा कानून बनाया कि यूरोप जाने वाले हर जहाज पर कम से कम दस गुलामों को ले जाने की इजाजत मिल गई.
बॉस्टन में जहां येल यूनिवर्सिटी का जन्म हुआ, उसके पास एक शिलालेख है. उस पर लिखा है, 'इस जगह से 255 फीट उत्तर में, पेम्बर्टन पहाड़ी पर, 5 अप्रैल 1649 को मद्रास के गवर्नर एलिहू येल का जन्म हुआ था, जिनका स्थायी स्मारक वह कॉलेज है जो उनके नाम पर है.
Ivy League का हिस्सा है येल यूनिवर्सिटी
येल यूनिवर्सिटी की तरह अमेरिका की कई और नामी यूनिवर्सिटीज का इतिहास दास प्रथा से जुड़ा रहा है. हाल के दिनों में हार्वर्ड, प्रिंसटन और कोलंबिया जैसे विश्वविद्यालयों ने दासता से अपने जुड़ाव को स्वीकारा है. Ivy League में शामिल येल यूनिवर्सिटी ने अमेरिका को पांच राष्ट्रपति दिए हैं. वहीं, हार्वर्ड से पढ़कर निकले आठ लोग अमेरिका में राष्ट्रपति बने. भारत का भी येल यूनिवर्सिटी से मजबूत रिश्ता है. इंदिरा नूई, फरीद जकारिया, अमृत सिंह समेत कई मशहूर हस्तियां येल यूनिवर्सिटी से पढ़ी हैं.