Bilaspur News: हिमाचल प्रदेश के पांच जलाशयों में मछली बीज डालने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है. गौरतलब है कि प्रदेश के प्रमुख जलाशयों में गोविंद सागर झील, कोलडैम, चमेरा, पोंगडैम व रणजीत सागर शामिल हैं, जहां हर वर्ष काफी मात्रा में मछली उत्पादन होता है. वहीं आगामी वित्तीय वर्ष में मछली उत्पादन और बढ़ सके इसके लिए मत्स्य निदेशालय द्वारा मछली के बीज डालने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. 


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आपको बता दें कि अगले वितीय वर्ष में गोविंद सागर झील में 50 लाख से अधिक मछली के बीज डाले जा रहे हैं, कोलडैम में 6 लाख मछली बीज, चमेरा में 7.50 लाख मछली बीज व पोंगडैम में 65 लाख मछली के बीज डाले जा रहे हैं. वहीं कुल मिलाकर कोलकाता व पश्चिम बंगाल से टेंडर के आधार पर भेजे गए 1 करोड़ 29 लाख मछली बीज मत्स्य विभाग द्वारा प्रदेश के पांचों जलाशयों में विभिन्न चरणों में डाले जा रहे हैं.


इसके अलावा हिमाचल प्रदेश के 18 फर्म्स से उपलब्ध 17 लाख मछली बीज भी पांचों जलाशयों में डाले जा रहे हैं. वहीं प्रदेश के सभी जलाशयों में रोहू, कतला, मृगुल, सिल्वर कार्प और ग्रास कार्प किस्म की बीज डाले जा रहे हैं. वहीं बात करें गोविंद सागर झील की तो कोलकाता से विभिन्न खेप के माध्यम से पूरे महीने में गोविंद सागर झील में मछली के बीज डाले जाएंगे, जिसकी पहली खेप में 2 ट्रक के माध्यम से 5 से 8 लाख बीज बिलासपुर पहुंचने के पश्चात लुहनु मैदान के समीप गोविंद सागर झील में डाली गई है.


वहीं लुहनु मैदान के पश्चात गोविंद सागर के ही भाखड़ा बांध, लठीयाना और रायपुर मैदान के समीप भी मछली बीज डाले जाएंगे. इस बात की जानकारी देते हुए मत्स्य विभाग के निदेशक विवेक चंदेल ने कहा कि बैरकपुर स्थित सिपरी इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए सर्वे के आधार पर दिए गए सुझावों को मध्य नजर गोविंद सागर झील में 50 प्रतिशत से अधिक बीज सिल्वर क्रार्फ के डाले जाएंगे. 


साथ ही उन्होंने बताया कि वर्ष 2012-13 में गोविंद सागर झील में सिल्वर क्रॉप का प्रभाव था और इसका उत्पादन 1,392 मेट्रिक टन होता था, जिसके पश्चात हर वर्ष सिल्वर क्रार्फ के उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई और एक समय इसका उत्पादन 200 मीट्रिक टन तक पहुंच गया, जिसे देखते हुए विभाग द्वारा इस संबंध में रिसर्च करवाया गया और गत वर्षो में सिपरी इंस्टीट्यूट के सुझावों के अनुसार ही गोविंद सागर में बीज डाला गया है ताकि गोविंद सागर झील में सिल्वर कॉर्प अपने पहले के उत्पादन के अनुसार ही स्थान प्राप्त कर सके और गोविंद सागर झील में अधिक से अधिक मछली का उत्पादन हो सके. 


वहीं गत वर्षों के मुताबिक, उत्पादन को देखते हुए पिछले वर्ष लगभग 8 मीट्रिक टन अधिक उत्पादन गोविंद सागर झील से हुआ है. साथ ही उन्होंने कहा कि विभाग का प्रयास है कि सभी जलाशयों से अधिक से अधिक मछलियों का उत्पादन हो सके और इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को की आमदनी बढ़ने के साथ उनकी आर्थिकी मजबूत हो सके. इसके साथ ही प्रदेश के जलाशयों पर निर्भर 10 हजार मछुवारों की आमदनी में लगातार बढ़ोतरी हो सके और प्रदेश में मछली पालन रोजगार का अहम साधन बनकर सामने आए.


रिपोर्ट- विजय भारद्वाज, बिलासपुर