Manimahesh Lake: मिनी मणिमहेश डल झील को रिस्टोर करने का कार्य नेचुरल रिसोर्सस से किया जाएगा. इसके लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने का कार्य अगले सप्ताह से शुरू हो जाएगा. झील की रिस्टोरेशन इस तरह से की जाएगी कि आगामी 200-300 साल तक इस तरह की समस्या न आए. प्रयास रहेगा कि अगले साल बरसात से पहले कार्य को पूरा कर लिया जाए, जिससे कि जून में बरसात के दौरान ताजा पानी झील में स्टोर हो सके. 


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डल झील को रिस्टोर करने के उद्देश्य से धर्मशाला पहुंचे भारत के लेक मैन के नाम से प्रसिद्ध आनंद मल्लीगावाद ने कहा कि डल लेक धार्मिक और इकोलॉजिकल लेक है, जिससे केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि ईको सिस्टम भी डिस्टर्ब हो रहा है. 


डल झील की लीकेज को रोकने के साथ इसकी वॉटर कैपासिटी को भी बढ़ाना है. स्थानीय प्रशासन झील को लेकर 70 फीसदी काम कर चुका है. शेष 20-30 फीसदी कार्य जैसे नाला डायवर्ट करना, गंदगी डायवर्ट करने का कार्य करना है. झील को इस तरह से रिस्टोर किया जाएगा कि 200 से 300 साल तक इस तरह की समस्या फिर न आने पाए.


झील को रिस्टोर करने के लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की जाएगी. इसके लिए कुछ सुझाव आए हैं तथा जो भी एक्सपर्ट सुझाव देना चाहेंगे, उन्हें भी लिया जाएगा. वहीं, झील रिस्टोरेशन के लिए फंडिंग के बहुत से विकल्प सामने हैं, लेकिन पहले डीपीआर पर फोकस किया जाएगा. नवंबर माह का समय डीपीआर व केस स्टडी करने में लग जाएगा. दिसंबर से लेकर मई तक हमारे पास 5 महीने का समय रहेगा.


आनंद ने आगे कहा कि ब्यूटीफाइड मछलियां ईको सिस्टम में एडजस्ट नहीं कर पाती तथा पर्यावरण को क्लीन नहीं करती. जबकि देसी मछलियां, मच्छरों को पनपने से रोकती हैं और पानी को साफ करती हैं और पानी के कचरे को भी क्लीन करती है. ऐसे में यह भी प्रयास रहेगा कि ब्यूटीफाइड मछलियां झील में न डाली जाएं.


आनंद ने कहा कि पूरे भारत में बहुत सी लेक पर कार्य कर चुका हूं, लेकिन सबसे बेहतर मुझे डल लेक लगी. यह अन्य झीलों के मुकाबले खतरनाक नहीं है. शहरों में झील का पानी काला जैसा रहता है. जबकि डल झील का पानी अभी भी चमक रहा है. झील बढ़िया स्थिति में है और पानी की क्वालिटी भी बेहतर है, लेकिन हमें यह सोचकर संतोष नहीं करना है. बल्कि ऐसे स्त्रोतों को बचाने के लिए प्रयास करने होंगे.