ज्ञान प्रकाश/पांवटा साहिब: सिरमौर जिला का हाटी जनजातीय क्षेत्र देशभर में अपनी अलग संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां लोगों ने प्राचीन रीति-रिवाज और त्योहारों को जिस तरह से संजो कर रखा है वह भी अपने आप में अनोखा उदाहरण है. माना जाता है कि इस बेहद दुर्गम दूर-दराजी क्षेत्र में लोगों को भगवान राम के अयोध्या लौटने का पता एक महीने बाद चला था, लिहाजा जब लोगों को पता चला तब उन्होंने दिवाली मनाई. यही कारण है कि बड़ी दिवाली के एक महीने बाद मनाए जाने वाली हाटी जनजाति क्षेत्र की दीपावली को बूढ़ी दीवाली कहा जाता है. 


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बता दें, बूढ़ी दीवाली सिरमौर जिला के अलावा शिमला, सोलन और उत्तराखंड के जौनसार बाबर क्षेत्र के कुछ अन्य हिस्सों सहित प्रदेश के कई जनजाति क्षेत्रों में मनाई जाती है. दीपावली की अमावस्या के ठीक अगली अमावस्या की सुबह सुबह इस पर्व की शुरुआत होती है. इस पर्व की शुरुआत मशाल जुलूस के साथ की जाती है. 


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हालांकि बूढ़ी दिवाली मनाने के पीछे भगवान राम के अयोध्या लौटने की दलील से कई लोग सहमत नहीं हैं. कुछ मान्यताएं यह भी हैं कि महाराजा बाली पाताल लोक में जाने के बाद एक बार पृथ्वी पर लौटे थे. उनके पृथ्वी पर लौटने की खुशी में पहाड़ी क्षेत्रों में मशाल जुलूस और बड़ा अलाव जलाकर खुशी मनाई गई थी. यही वजह से है कि यहां बुद्ध दिवाली मनाई जाती है. 


खैर कारण कोई भी हो, लेकिन हाटी जनजाति क्षेत्र के लोगों ने सतयुग कालीन इन परंपराओं को आज तक संजो कर रखा है. मशाल जुलूस के पीछे मान्यता है कि गांव के एक छोर से दूसरे छोर तक मशाल जुलूस निकालकर गांव में घुसी बुरी आत्माओं को बाहर खदेड़ जाता है. मशाल जुलूस के बाद गांव के दूसरे छोर पर बड़ा अलाव जला कर बुरी आत्माओं से गांव की किलेबंदी की जाती है. अमावस्या की रात्रि मशाल जुलूस के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में नाच गाने और दावतों के दौर शुरू हो जाते हैं. इस दौरान नृत्य की धूम रहती है.


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