विजय भारद्वाज/बिलासपुर: हिमाचल प्रदेश के वीर सपूतों की बहादुरी के किस्से न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं. आज हम एक ऐसी शख्सियत की बात कर रहे हैं, जिसकी बहादुरी की तारीफ ब्रिटिश सरकार भी करती थी. द्वितीय विश्व युद्ध के नायक वीर कैप्टन भंडारी राम को उनके अदम्य साहस के लिए ब्रिटिश सरकार ने विक्टोरिया क्रॉस मैडल से सम्मानित किया था, लेकिन कैप्टन वीर भंडारी राम के परिजनों द्वारा आज हिमाचल प्रदेश में बनी भाजपा व कांग्रेस की सरकारों द्वारा उनकी अनदेखी का आरोप लगाया जा रहा है. 


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गौरतलब है कि 1 सितंबर 1939 से 2 सितंबर 1945 तक छह वर्षों तक चले द्वितीय विश्व युद्ध को दौरान कैप्टन भंडारी राम ने जापानी सेना के विरुद्ध बर्मा कैंपेन में अद्भुत साहस का परिचय दिया था. बता दें, कैप्टन भंडारी राम का जन्म 24 जुलाई 1919 को परगणा गुगेड़ा में हुआ था, जो उस समय बिलासपुर रियासत के अधीन था. वहीं भंडारी राम 10वीं बलूच रेजिमेंट ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सिपाही थे जो कि 24 जुलाई 1941 में सेना में भर्ती हुए थे.


उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के साथ आजादी के बाद भारतीय सेना में भी सेवाएं दी थीं. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान सेना के विरुद्ध बर्मा कैंपेन में भंडारी राम के अद्भुत साहस के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सम्मान से नवाजा गया था. यह ब्रिटिश और कॉमनवेल्थ सेनाओं को दिया जाता था. 22 नवंबर 1944 को पूर्वी मऊ, अराकन में जापान सेना के आक्रमण के दौरान एक बंकर को जीतना था. भंडारी राम एक टुकड़ी के हिस्सा थे. उनकी पलटन को ढलान पर चढ़ने के साथ संकीर्ण नदी किनारे के रास्ते से चलकर वहां पहुंचना था. 


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जब वह चोटी से करीब 50 गज दूरी पर पहुंचे तो जापान सेना ने भारी मशीन गन से फायरिंग शुरू कर दी. इसमें तीन जवान भी जख्मी हो गए. भंडारी राम को भी कंधे और टांग में चोट लगी थी. वहीं युद्ध के समय गोली लगने के बावजूद भंडारी राम रेंगते हुए मशीन गन तक पहुंचे और करीब पंद्रह गज दूर दुश्मनों के सामने पहुंचे. दुश्मन सैनिकों ने उन पर ग्रेनेड फेंके, जिससे उनकी छाती और चेहरे पर गहरी चोटें आईं. खून से लथपथ वीर भंडारी राम ने ग्रेनेड फेंका और तीन सैनिकों को मार गिराया. उनसे प्रभावित होकर उनकी पलटन आगे बढ़ी और अपनी पोजीशन ली.  


वहीं उनके साहस, दुश्मन को हर कीमत पर खत्म करने के निश्चय ने उनकी पलटन को जीतने में मदद की. इसके लिए उन्हें 8 फरवरी 1945 को विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था. वहीं आजादी के बाद भी वह भारतीय सेना में सेवाएं देते रहे और सन् 1969 में कैप्टन पद से रिटायर हुए.  वहीं विक्टोरिया क्रॉस सम्मान के साथ ही परम विशिष्ट सेवा मेडल से भी कैप्टन भंडारी राम को सम्मानित किया गया था, जिसके बाद 19 मई 2002 को 82 वर्ष की आयु में वीर भंडारी राम ने बिलासपुर के औहर स्थित आवास स्थान पर अंतिम सांस ली.


स्वर्गीय वीर भंडारी राम के अदम्य साहस को आज भी स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के मौके पर आयोजित सार्वजनिक कार्यक्रमों में याद किया जाता है, लेकिन उनके परिजन उनकी अनदेखी का आरोप लगाते नजर आ रहे हैं. स्वर्गीय वीर भंडारी राम के पुत्र सुरेश कुमार नड्डा व सतीश नड्डा का कहना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के नायक के रूप में पहचान रखने वाले उनके पिता स्वर्गीय वीर भंडारी राम को ब्रिटिश सरकार ने विक्टोरिया क्रॉस मैडल से सम्मानित करने के साथ ही देश-विदेश में उनके स्टैच्यू लगाए गए हैं, लेकिन आज तक उनके गृह जिला बिलासपुर में एक भी स्टैच्यू देखने को नहीं मिला. 


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इसके अलावा भंडारी राम के निधन के बाद औहर स्थित सरकारी स्कूल का नाम उनके नाम पर रखने का सरकार का वादा भी समय की धारा के साथ धूमिल होता चला गया. यह केवल वादों तक ही सिमट कर रह गया. वहीं सुरेश कुमार नड्डा व सतीश नड्डा ने वर्तमान कांग्रेस सरकार से मांग की है कि स्वर्गीय वीर भंडारी राम कर बहादुरी के किस्से व उनका इतिहास युवा पीढ़ी तक पहुंच सके, इसके लिए उनका एक स्टैच्यू लगाया जाए जहां उनका बहादुरी का किस्सा अंकित हो. 


इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम में उनकी जीवनी प्रकाशित की जाए और औहर स्थित सरकारी स्कूल का नाम उनके नाम पर रखा जाए ताकि द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर भारतीय सेना में रहते हुए दी गई उनकी सेवाओं व बहादुरी के प्रति सरकार द्वारा सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित हो सके.


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