संदीप सिंह/शिमला: आईसीएआर-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला राष्ट्रीय स्तर पर एक मात्र संस्थान है. संस्थान के कुफरी-फागू फार्म पर उत्पादित ब्रीडर बीज पर्वतीय राज्यों को मुहैया करवाए जाते हैं. इस बीज को आगे चल कर सभी राज्यों को सप्लाई किया जाता है. पर्वतीय राज्यों के एग्रिकल्चर स्टेट डिपार्टमेंट द्वारा 3 चरणों, जिसमें 2 फाउंडेशन बीज के चरण और 1 सर्टिफाइएड बीज के चरण में बनाया जाता है. 


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इस तरह से केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला राष्ट्रीय स्तर पर किसानों को आलू बीज मुहैया करवाता रहा है, लेकिन, 2018 में आईसीएआर-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला के कुफरी-फागू खेतों में और अन्य पर्वतीय राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्सों से सिस्ट निमेटोड (ग्लोबोडेरा प्रजाति) के मिलने से भारत सरकार ने राजपत्र अधिसूचना संख्या S.O.5642 के माध्यम से इन क्षेत्रों मे घरेलू संगरोध लागू कर दिया था. 


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जिसके तहत सिस्ट निमेटोड के प्रसार को आगे रोकने के लिए इन क्षेत्रों से बीज कंदों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया और आईसीएआर-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला को अपने कुफरी-फागू फार्म पर न्यूक्लियस और ब्रीडर बीज के उत्पादन को बंद करना पड़ा. इसके परिणामस्वरूप पर्वतीय राज्यों के एग्रिकल्चर स्टेट डिपार्टमेंट को अपने फार्म पर सीड प्रॉडक्शन बंद करना पड़ा. इस तरह से सिस्ट निमेटोड के कारण सीड सप्लाई चैन पर्वतीय राज्यों में रूक गई थी. इन राज्यो में आलू के किसानों को काफी नुकसान हो रहा था.


तभी से केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला के वैज्ञानिकों ने इसे एक चुनौती के तौर पर ले लिया. सिस्ट निमेटोड को खत्म करने की नई रणनीतियों पर काम करना शुरू कर दिया था. इन रणनीतियों में गैर-सोलेनसी फसलों को फसल चक्र जैसे राजमा (फ्रेंच बीन्स), जई, सरसों को 6 साल तक फसल चक्र मे लगाना, सहरोपित फसले (इंटर-क्रोप्पिंग), ट्रेप क्रोप्पिंग, जैव नियंत्रण एजेंट्स का परीक्षण कारण, सिस्ट निमेटोड प्रतिरोधी किस्मे को बनाना, नए कृमिनाशक को टेस्ट करना आदि थे.


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इसके अलावा केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला ने पादप संरक्षण, संगरोध एवं भंडारण निदेशालय (DPPQ&S), फरीदाबाद, हरियाणा के साथ मिल कर कुफरी फार्म में सिस्ट निमेटोड के उन्मूलन के लिए मिथाइल ब्रोमाइड से मिट्टी के धूमन की प्रभावकारिता पर एक पायलट अध्ययन भी किया, जिसमें पाया गया कि मिथाइल ब्रोमाइड से मिट्टी के धूमीकरण के परिणामस्वरूप 96 घंटे के बाद सिस्ट निमेटोड की आबादी में 12-45% (औसत 30%) की कमी आंकी गई और उपचार के 30 दिन के बाद सिस्ट निमेटोड की आबादी में 33-58% (औसत 47%) गिरावट आ गई थी. मिथाइल ब्रोमाइड से मिट्टी का धूम्रीकरण सिर्फ भारत सरकार के दिशा-निर्देशों पर ही किया जाता है. 


इसके अलावा केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला ने कई रसायनों को सिस्ट निमेटोड संक्रमित आलू के बीज कंदो को उपचारित करने के लिए कई टेस्ट किए, जिसमें से सोडियम हाइपोक्लोराइट (NaOCl) 2% रसायन को बीज उपचार के लिए उत्तम पाया गया. प्रोटोकॉल के अनुसार, आलू के कंदो को खुदाई के बाद सोडियम हाइपोक्लोराइयट (2%) के घोल में 30 मिनट तक डुबोकर रखने से सिस्ट निमेटोड विघटित हो जाता है. इसके बाद कंदो को दो बार पानी से धोकर छाया वाले क्षेत्र में सुखा कर भंडारण कर सकते हैं. यह केमिकल कंदों की अंकुरण क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता हैं. एक बार तैयार किए गए घोल को 30 मिनट की अवधि के लिए 12 बार उपयोग भी किया जा सकता है. 


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इसी बीज उपचार के आधार पर संस्थान ने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार से घरेलू संगरोध मे छूट देने के लिए आग्रह किया, जिसे कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने अंततः स्विकृति दी. केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला के अथक प्रयास के कारण भारत सरकार ने 6 मार्च, 2024 को आलू बीज कंदों की उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर से भारत के अन्य सभी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में आवाजाही की अनुमति कुछ विशेष शर्तों के साथ प्रदान कर दी है. अब केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला अपने फार्म पर पुनः बीज उत्पादन की श्रृंखला को शुरू कर सकेगा कि पुट्टी कृमि के कारण रुक गई थी.


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