Paonta Sahib News: सिरमौर जिले के जनजातीय क्षेत्र हाटी गिरीपार क्षेत्र की हर परंपरा अनूठी और विचित्र है. यहां परंपराओं के साथ-साथ जीवनचर्या में उपयोग होने वाली तकनीकी भी प्राचीन विज्ञान पर आधारित है. विज्ञान के क्षेत्र में बड़े बदलाव के बावजूद इस क्षेत्र के लोग कई पुरानी तकनीकी को संजोह कर रखे हुए हैं. 


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यहां सांस्कृतिक परंपराओं और कुछ तकनीकी पर बदलावों का कोई असर देखने को नहीं मिलता है. गिरीपार हाटी क्षेत्र में मक्के के सत्तू परंपरागत और स्वास्थ्य वर्धक खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग किए जाते हैं. मक्की के सत्तू के बारे में कहावत है कि एक बार पकाओ, 6 महीने तक खाओ. सत्तू बनाने के लिए यहां आज भी प्राचीन तकनीक का उपयोग किया जाता है.


मक्के के सत्तू बेलने के लिए बड़े आकर के सपाट पत्थर का उपयोग किया जाता है. इस पत्थर को बड़े से चूल्हे में फिट किया जाता है. मिट्टी और पत्थर से बनने वाले इस चूल्हे को "भाट" कहा जाता है. भाट के बड़े पत्थर को लकड़ी की तेज आंच से गर्म करके इस पर नमीयुक्त मकई के दोनों को भूना जाता है.


इन दोनों को चलाने के लिए मक्के के छिलके से बने विशेष तरह के पलटे का इस्तेमाल किया जाता है. इस पलटे को मिट्टी के घोल में डुबोकर चलाया जाता है. स्थानीय लोग बताते हैं कि इस तकनीक से सत्तू भूनने पर उसमें परंपरागत स्वाद और गुणवत्ता बरकरार रहती है.


इस तकनीक से बुने हुए सत्तू सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माने जाते हैं. यह सत्तू लगभग 6 महीने तक उपयोग किए जाते हैं. मक्के के सत्तू दूध, लस्सी या पानी के साथ घोलकर चटनी, अचार या मीठे के साथ खाए जाते हैं. सत्तू गर्मियों के दिनों में सेहत के लिए बेहद लाभकारी माने जाते हैं. यही कारण है कि तमाम तकनीकी बदलावों के बावजूद भी पहाड़ी क्षेत्रों में सत्तू भूनने की तकनीक में कोई बदलाव नहीं आया है.


रिपोर्ट- ज्ञान प्रकाश, पांवटा साहिब