Himachal Pradesh के जंगलों में आग लगने से वन विभाग को हुआ करोड़ो का नुकसान, जानें क्या है आग लगने का कारण
Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश में फायर सीजन के दौरान कई जंगलों में आग लगने की घटनाएं सामने आईं, जिसकी वजह से काफी नुकसान भी हुआ. हालांकि फायर सीजन से पहले वन विभाग ने ड्रोन के जरिए वनों की आग को शांत करने का सोचा था, लेकिन इस पर अमल नहीं किया गया.
समीक्षा कुमारी/शिमला: वन विभाग को हर साल आग की घटनाओं से करोड़ों रुपये का नुकसान होता है. हर साल विभाग द्वारा आग पर काबू पाने के लिए नई-नई योजनाएं भी बनाई जाती हैं, लेकिन ये योजनाएं सिरे नहीं चढ़ पातीं और आग पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है. विभाग की ओर से कई योजनाएं भी तैयार की गई हैं, जिसमें विभिन्न उपाय बताएं गए हैं, लेकिन आग लगने की घटनाएं कम होने की बजाय साल दर साल बढ़ती जा रही हैं.
हिमाचल प्रदेश में फायर सीजन से पहले वन विभाग ने ड्रोन के जरिए वनों की आग को शांत करने का सोचा था, लेकिन यह सब फाइलों में ही रह गया. अभी तक हिमाचल के जंगलों में जितनी भी आग लगी हैं उन्हें बुझाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल नहीं किया गया है. विभाग अभी इस पर विचार करेगा.ये
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आपदा प्रबंधन की ओर से आग बुझाने को लेकर किसी तरह की कोई भूमिका नहीं होती है. अगर वन विभाग आपदा प्रबंधन से वार्ता करते तो आग बुझाने पर जो भी खर्चा आएगा उसे वन विभाग को ही चुकाना होगा. इसी तरह का वाक्य शिमला में हुआ, जब तारा देवी के जंगलों में लगी आग को बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का साहारा तो लेना चाहा, लेकिन एक राइड का खर्चा 8 लाख रुपए आना था और वन विभाग इतना खर्चा उठाने में असमर्थ था.
ये हैं वनों में आग लगने के मुख्य कारण
वनों में आग प्राकृतिक और मानव दोनों कारणों से लगती है.
1. प्राकृतिक कारण
प्राकृतिक कारणों में बांस के वृक्षों में रगड़ और आसमानी बिजली द्वारा आग शामिल है. हिमाचल के वनों में आग की घटनाएं प्राकृतिक कारणों से बहुत कम होती हैं. अधिकतर आग मानवीय कारणों से ही लगती है जो विनाश का कारण बनती है. जंगलों में लगी आग पर अगर समय पर काबू न पाया जाए तो इससे काफी नुकसान होता है.
2. मानवीय कारण
हिमाचल प्रदेश के जंगलों में अधिकतर आग मनुष्य द्वारा अनजाने या जान बुझकर लगाने से ही लगती हैं. इसमें सड़कों या जंगल में जलती हुई माचिस की तिल्ली, सिगरेट, बीड़ी या जलती हुई लकड़ी फैंकने इत्यादि जैसा कारण शामिल हैं.
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चरवाहों, मजदूरों, गैर ईमारती वन उत्पाद एकत्रित करने वालों या यात्रियों द्वारा अस्थाई चूल्हों में खाना इत्यादि पकाने या गर्म करने के बाद उसे जलता छोड़ना भी आग लगने का कारण है. चलती हुई रेलों द्वारा जलते हुए कोयले के गिरने से भी अधिकतर आग लगती है.
बिजली की तारों पर सूखी पत्तियों के गिरने से उत्पन्न होने वाली किरणों के कारण, खेतों व घरों के आसपास घास-भूसे या कूड़े-करकट पर लगाई आग पास के जंगलों में फैलने का मुख्य कारण है. विभागीय तौर पर फायर लाईन (अग्निशमन रेखा) में लगाई गई आग से फैलने पर भी आग लगती है.
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वहीं, कुछ लोग नई घास के लालच में वनों में सूखी घास को जला देते हैं, अवैध कटान के बाद सबूत के तौर पर जंगल में ठूंठों को जलाना, गुच्छी उत्पाद बढ़ाने के लिए खरपतवार और घास जलाने के लिए लगाई गई आग, गैर ईमारती वन उत्पाद को आसानी से एकत्रित करने के लिए खरपतवार व घास में लगाई गई आग, वन्य प्राणियों को पकडने या शिकार के लिए लगाई गई आग, गांवों से वन्य प्राणियों को दूर भगाने के लिए लगाई गई आग जंगलों में फैली आग का मुख्य कारण है. यह जानबूझकर लगाई गई आग का उदाहरण है.
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