ज्ञान प्रकाश/पांवटा साहिब: देश भर में अलग सांस्कृतिक पहचान रखने वाले सिरमौर के गिरीपार जनजातीय क्षेत्र में गुग्गा नवमी पर्व मनाया जा रहा है. अष्टमी की रात्रि अचंभित करने वाला गुगाल और रात्रि जागरण आयोजित हुआ. देवता के गुरु आग के साथ खेलते हैं और आग में तपे हुए लोहे के भारी कोरडे अपनी पीठ पर मरते हैं. हैरान करने वाली बात यह होती है कि न तो इनके हाथ आग से जलते हैं न पीठ पर कोई असर होता है. स्थानीय लोग इसे गुग्गा पीर महाराज की शक्ति मानते हैं. गुगाल और गुग्गा नवमी जनजातीय क्षेत्र की देव संस्कृति का अभिन्न अंग है.


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आग से खेलते यह लोग गुग्गा पीर महाराज के गुर हैं. मान्यताओं के अनुसार इस समय इनमें पीर बाबा की शक्तियों की हवा आती है. यह गुर आग में हाथ तपाते हैं और पीर बाबा की शक्तियों के प्रतीक लोहे के भारी भरकम कोरडे गर्म करते हैं. इसके बाद यह गुर इन गर्म कोरड़ों से अपनी पीठ पर पूरी शक्ति से वार करते हैं. 


हैरानी करने वाली बात यह होती है कि न तो उनके हाथ जलते हैं ना कोरड़ों की चोट से कोई जख्म होते हैं. पीर महाराज की शक्तियों में आस्था रखने वालों का मानना है कि बाबा की शक्तियों के चलते इनका कोई नुकसान नहीं होता. 


भादो माघ की अष्टमी पर पहाड़ी क्षेत्रों में यह पर्व सदियों से मनाया जा रहा है. सुखद बात यह है कि आधुनिक समाज में पढ़ा लिखा युवा भी देव संस्कृति से जुड़ा हुआ है और पर्व को मनाने के लिए अपने गांव जरूर पहुंचता है. अष्टमी की रात्रि को पीर बाबा की मंदिर यानी गुग्गा माडी में रात्रि जागरण और गुगाल पर्व होता है. उसके उपरांत अगले दिन गुग्गा नवमी मनाई जाती है. इससे पहले पौष माह की पूर्णिमा पर पीर बाबा क्षेत्र के भर्मण पर जाते हैं. भर्मण के दौरान एक सप्ताह तक बाबा घर-घर जाकर लोगों को सुख समृद्धि और जहरीले जानवरों से सुरक्षा का आशीर्वाद देते हैं. लोगों का कहना है कि क्षेत्र के लोगों की गुग्गा पीर महाराज में अटूट आस्था है. यही कारण है कि इस पर्व की भव्यता बढ़ती जा रही है.