राकेश मल्ही/ऊना: हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार द्वारा राज्य में कुछ जिलों के स्टोन क्रशर पूरी तरह बंद करने के आदेश के करीब डेढ़ महीने बाद क्रशर उद्योग संघ सामने आया है. सरकार से इस मामले का रिव्यू करने की मांग उठाई गई है. संघ के प्रदेश अध्यक्ष राजेंद्र सिंह डिंपल ने ऊना में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि सरकार के इस फैसले के काफी प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल रहे हैं. एक ओर जहां सभी क्रशर बंद होने के चलते तमाम विकास और निर्माण कार्य ठप्प होकर रह गए हैं, वहीं दूसरी ओर इन उद्योगों से जुडकर अपनी रोजी-रोटी चलाने वाले करीब 70,000 लोग बेरोजगारी के मुहाने पर आ गए हैं.


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संघ के प्रदेश अध्यक्ष राजेंद्र सिंह डिंपल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां खनन का काम नियमों के मुताबिक किया जाता है, इसके बावजूद प्रदेश के कुछ जिलों में क्रशर उद्योग को पूरी तरह बंद कर देने के आदेश समझ से परे हैं. उन्होंने बंद किए गए स्टोन क्रशर की जांच के लिए बनाई गई कमेटी में सीनियर आईएएस अधिकारियों को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं. 


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राजेंद्र सिंह डिंपल ने सवाल करते हुए कहा है कि ऐसे कौन से नियम की अनदेखी पाई है, जिसके कारण प्रदेश के 128 स्टोन क्रशर उद्योगों को बंद करने के आदेश दिए गए हैं. उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले के चलते जहां एक ओर प्रदेशभर में निजी और सरकारी निर्माण कार्य बंद होकर रह गए हैं, वहीं इसका असर हिमाचल प्रदेश में हाल ही में हुई आपदा के बाद पुनर्वास कार्यों पर भी पड़ रहा है.


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राजेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार को सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए स्टोन क्रशर उद्योगों को बंद करने के फैसले को रिव्यू करना चाहिए. उन्होंने कहा कि पिछले करीब डेढ़ महीने से हिमाचल प्रदेश के कई जिलों में सरकार के आदेशों के बाद यह क्रशर पूरी तरह बंद हो चुके हैं, जिसका सीधा असर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इस उद्योग से रोजी-रोटी कमाने वाले लोगों पर पड़ा है. उन्होंने मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू से गुहार लगाई है कि वह इस फैसले का रिव्यू करें और बंद किए गए क्रशरों को फिर से चलाए जाने के आदेश जारी करें. 


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