विपन कुमार/धर्मशाला: कारगिल विजय दिवस के अवसर पर राज्य युद्ध स्मारक धर्मशाला में भव्य कार्यक्रम आयोजित कर शहीदों को श्रद्धाजंलि दी गई. इनमें कैंट धर्मशाला स्टेशन कमांडर केवीपी सिंह संबियाल ने मुख्यातिथि के रूप में शिरकत की. इनके अलावा जिला प्रशासन की ओर से जिलाधीश कांगड़ा डॉ. निपुण जिंदल और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक हितेश लखनपाल ने भी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की.


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बता दें, 25 मई 1999 को शुरू हुए कारगिल युद्ध में हिमाचल के 52 जवानों ने जीवन का बलिदान दिया था. दो माह से भी अधिक समय तक चले करगिल युद्ध में भारतीय सेना ने अपने प्राणों की आहूतियां देकर दुश्मनों को देश की सीमा से खदेड़ कर ऑपरेशन विजय को सफल बनाया था, जिसमें देश भर में कुल 527 योद्धा शहीद हुए थे. 


इनमें 52 वीरभूमि हिमाचल के भी जवान शामिल थे. कारगिल विजय दिवस पर देश भर में सेना के सर्वोच्च सम्मान में कुल चार परमवीर चक्र मेडल घोषित किए गए, जिसमें दो हिमाचल के वीरों के नाम हैं. इसमें कैप्टन विक्रम बत्तरा, मरणोपंरात और सुबेदार संजय कुमार जीवित को परमवीर चक्र से नवाजा गया. 


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मुख्य अतिथि स्टेशन कमांडर ब्रिगेडियर केवीपी सिंह संबियाल ने कारगिल विजय दिवस के पावन अवसर पर सभी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें नमन किया. उन्होंने कहा कि देश के वीर जवानों ने कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों पर अपने प्राणों के आहुति देते हुए देश के लिए स्वर्णिम विजय हासिल की थी. 


केवीपी सिंह संबियाल ने कहा कि विश्व के इतिहास में ऐसी दुर्गम चोटियों पर ना केवल ऐसे युद्ध लड़े गए, बल्कि उन्होंने जीत कर देश का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिख दिया. यह सब उन शहीदों के बलिदान के कारण ही संभव हो पाया है. उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियां इन शहीदों के बलिदान से प्रेरणा लेकर देश की सेवा करेंगी. 


इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस युद्ध का स्मारिक दृष्टि से भी बहुत अधिक महत्व है. पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध के जरिए भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान को चोट पहुंचाने का कार्य किया था. पाकिस्तान ने विश्वासघात कर भारत के कई क्षेत्रों पर कब्जा किया था. उन्होंने कहा कि कारगिल युद्ध में भारत के वीरों ने मिसाल कायम करते हुए जीत हासिल की थी. 


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इसके साथ ही कहा कि कारगिल विजय दिवस हमारे लिए महत्वपूर्ण दिन है, जिस पर हम गर्व कर सकते हैं. यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उदाहरण है. उन्होंने कहा कि जो हमारे पूर्वज करके गए हैं. वह हमारे लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं, जरूरत पड़े तो हम सब को भी इस प्रकार का बलिदान देने के लिए तैयार रहना चाहिए.


वहीं इसी युद्द में अपने पिता को खो चुकी और भारतीय सेना की छाबनी में सैनिकों की चिकित्सा करने वाली जया ने नम आखों से बताया कि उस वक्त उनके पिताजी उधमपुर में तैनात थे, जब उन्होंने शहादत पाई थी तब वो महज 12 साल की थीं और सातवीं क्लास में पढ़ती थीं, जबकि उनके भाई 9 साल के थे जो चौथी क्लास में पढ़ते थे. उन्होंने बताया कि उस समय उन्हें इस बारे में कुछ मालूम नहीं था, लेकिन आज जब वे बड़े हो गए हैं तो उन्हें उस बहुमूल्य योगदान को याद करके बेहद गर्व महसूस होता है. 


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