विपिन कुमार/धर्मशाला: निर्वासित तिब्बतियन इस बार अपने 14वें दलाईलामा का जन्मदिवस बड़े ही धूमधाम के साथ मनाने जा रहे हैं.  इस खास मौके पर प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को बतौर मुख्यतिथि निमंत्रण पत्र भेजा गया है, जिसको उन्होंने स्वीकार करते हुए इस कार्यक्रम में शिरकत करने की हामी भी भरी है. दरअसल, बौद्ध धर्म से ताल्लुक रखने वाले तमाम लोगों समेत धर्मगुरु दलाईलामा के देश-विदेश में रहने वाले तमाम अनुयायी 6 जुलाई को हर साल उनके जन्मदिवस को अपने-अपने देशों और क्षेत्रों में अवतरण दिवस के तौर पर सेलिब्रेट करते हैं, जो कि बीते दो सालों में खुलकर सैलिब्रेट नहीं किया जा रहा था. 


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इस सेलिब्रेशन की वजह हम सभी को पता है. 2 साल से वैश्विक महामारी कोविड से हम सभी गुजरे हैं.  ऐसे में कोरोना के कम होते ममलों और देश-विदेश समेत प्रदेश में भी आवाजाही पर अब किसी तरह की रोक-प्रतिबंध न होने के चलते अब एक बार फिर से निर्वासित तिब्बतियन सरकार ने धर्मगुरु दलाईलामा के जन्मदिवस को बड़े ही धूमधाम के साथ सेलिब्रेट करने का फैसला किया है जो कि 6 जुलाई 2022 दिन बुधवार को ग्लोबल सिटी मैकलोडगंज स्थित दलाईलामा टैंपल जिसे सुगलुकखांग के नाम से भी जाना जाता है. वहां, बड़े स्तर पर इस बार मनाया जायेगा. 


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इस दौरान यहां विभिन्न संस्कृतियों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भी रंगारंग झलकियां देखने को मिलेंगी. जिसमें न केवल तिब्बतियन कला संस्कृति बल्कि लद्दाखी, नेपाली और खासतौर पर अप्पर धर्मशाला की गद्दियन संस्कृति को विशेष तौर पर तबज्जो दी जायेगी. यहां, पहाड़ी संस्कृति के नाम पर गद्दी कला मंच की ओर से गद्दी नृत्य भी पेश किये जाएंगे. 


निर्वासित तिब्बतियन सरकार के सरकारी प्रवक्ता तेंजिन लेक्शय ने इस बात की जानकारी देते हुए कहा कि इस बार बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा का 87वां जन्मदिवस बड़े ही धूमधाम और रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ सेलिब्रेट किया जाएगा. जिसमें खुद हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मुख्यतिथि के तौर पर शिरकत करने वाले हैं. 


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बता दे, बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा बौद्ध धर्म के 14वें दलाईलामा माने जाते हैं. जिनका जन्म साल 1935 को 6 जुलाई के दिन तिब्बत में हुआ था, लेकिन वहां के हालात सही न होने पर उन्हें अपने देश छोड़कर अपने अनुयायियों के साथ भारत में शरण लेनी पड़ी थी और तत्कालीन पंडित जवाहरलाल नेहरु की सरकार ने उन्हें हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में पनाह दी थी. तब से लेकर अब तक दलाईलामा धर्मशाला में ही रह रहे हैं, लेकिन  उनकी महत्ता समूचे देश भारत और दुनिया में आज भी बड़े स्तर पर मायने रखती है. दलाईलामा को मौजूदा वक्त में शांति का दूत भी माना जाता है.


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