Navratri 2024: नवरात्रि के पहले दिन जानें क्या है शक्तिपीठ श्री नैनादेवी मंदिर का इतिहास, क्यों पड़ा मां का नाम महिषासुर मर्दिनी?
Nainadevi Mandir: बिलासपुर स्थित शक्तिपीठ श्री नैनादेवी मंदिर का अपना अलग इतिहास है. माता सती के यहां नयन गिरे थे, तो महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी है पहचान.
Ma Nainadevi Mandir History: नवरात्रि हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है और नवरात्रि शब्द एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है नौ रातें. जी हां, नवरात्र स्पेशल में आज हम आपको बताएंगे हिमाचल प्रदेश की 09 प्रमुख दिव्य शक्तियों में से सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री नैनादेवी मंदिर की जिसका अपना अलग ही इतिहास और इस शक्तिपीठ पर देशभर के श्रद्धालुओं की अपार आस्था है.
देवभूमि हिमाचल प्रदेश अपनी संस्कृति व मठ, मंदिरों के लिए विश्वभर में जाना जाता है. एक ओर जहां ऊंची-ऊंची पहाड़ियों पर बसे हिमाचल के लोगों का पहनावा व बोली लोक संस्कृति को पेश करती है तो दूसरी ओर यहां के शक्तिपीठों व प्राचीन मंदिरों का अपना अलग ही इतिहास है.
जी हां आज हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश में 9 दिव्य शक्तियों के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक शक्तिपीठ श्री नैनादेवी मंदिर की. मां नैनादेवी का मंदिर एक पवित्र तीर्थस्थल है, जो देवी शक्ति के एक रूप श्री नैनादेवी को समर्पित है. हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला की ऊंची पहाड़ियों पर स्थित नैनादेवी मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव की पहली पत्नी सती ने अपने पिता राजा दक्ष की मर्जी के खिलाफ शिवजी से विवाह किया था, जिससे राजा दक्ष काफी नाराज हो गए थे और इसके बाद राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया मगर अपनी बेटी सती और दामाद शिव जी को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया, जिसके पश्चात माता सती बिना निमंत्रण के ही यज्ञ में पहुंच गईं, जबकि भगवान शिव जी ने उन्हें वहां जाने से मना किया था.
वहीं यज्ञ के दौरान राजा दक्ष ने माता सती के समक्ष उनके पति भगवान शिव को अपशब्द कहे और उनका अपमान किया. पिता के मुंह से पति का अपमान माता सती से बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने हवन कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए, जिससे भगवान शिव पत्नी के वियोग को सह न सके और इससे रुष्ट होकर माता सती का शव उठाकर शिव तांडव करने लगे.
इस तांडव से ब्रह्मांड में प्रलय आने लगी जिसे देख भगवान विष्णु ने इसे रोकने के लिए सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े कर दिए और माता के शरीर के अंग और आभूषण 52 टुकड़ों में धरती पर अलग अलग जगहों पर गिरे, जिसमें माता सती के नयन जिस स्थान पर गिरे उसी स्थान को नैनादेवी मंदिर कहा जाता है, जहां आज भी पिंडी रूप में मां नैनादेवी की पूजा अर्चना की जाती है.
वहीं दैत्यकाल की घटना अनुसार, मां नैनादेवी को नैना महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है. एक बार जब राक्षस महिषासुर ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया तो वरदान के रूप में किसी नारी के हाथों मौत होने और वह नारी जन्म और मृत्यु से रहित होने का वर मांगा. महिषासुर को यह ज्ञात था कि नारी अबला होती है. इसलिए एक नारी उसका वध नहीं कर पाएगी.
वर मिलने के पश्चात महिषासुर ने तीनों लोकों में तबाही मचाना शुरू किया, तो देवताओं ने स्वर्ग को छोड़ इस पहाड़ी की गुफाओं में शरण ली और भगवान ब्रह्मा से मदद की गुहार लगाई, जिसपर ब्रह्मा जी ने महिषासुर को मिले वरदान के बारे में बताया और सृष्टि रचियता मां आदि जननी की स्तुति के पश्चात जब मां ज्योति रूप में यहां प्रकट हुई तो सभी देवताओं व ऋषियों ने अपना-अपना बल माता रानी को भेंट किया, जिसे अपनाकर माता विराट स्वरूप में आ गयी और महिषासुर के साथ युद्ध कर उसका वध किया तब सभी देवताओं ने माता रानी को जै नैने नैने कहकर संबोधित किया और तब मां नैनादेवी को नैना महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है.
बता दें, शक्तिपीठ श्री नैनादेवी मंदिर परिसर में एक बहुत बड़ा पीपल का पेड़ है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह कई सदियों से मौजूद है. वहीं मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के दाईं ओर भगवान हनुमान और भगवान गणेश की मूर्तियां स्थापित हैं. मंदिर के मुख्य द्वार को पार करने के बाद शेरों की दो आकर्षक मूर्तियां दिखाई देती हैं. मुख्य मंदिर में तीन देवताओं की छवियां हैं.
देवी काली को सबसे बाईं ओर देखा जा सकता है. बीच में नैना देवी की छवि दिखाई देती है जबकि भगवान गणेश दाईं ओर हैं. वहीं शक्तिपीठ श्री नैनादेवी का मंदिर समुद्रतल से लगभग 1,177 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. नैनादेवी का मंदिर एक त्रिकोणीय पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जहां से एक तरफ पवित्र आनंदपुर साहिब गुरुद्वारा और दूसरी तरफ गोबिंद सागर का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है.
वहीं पंजाब, हरियाणा व दिल्ली सहित देशभर से आने वाले श्रद्धालु आनंदपुर साहिब से सड़क मार्ग के जरिये अपने निजी वाहन व बस सेवा से शक्तिपीठ श्री नैनादेवी मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते है, जबकि ट्रेन के जरिये आपको पहले आनंदपुर साहिब तक पहुंचना होगा. जहां से आप सड़क मार्ग के जरिये पहुंच सकते हैं.
वहीं, हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु नवरात्रों के उपलक्ष पर शक्तिपीठ श्री नैनादेवी मंदिर आते हैं और जिनकी मनोकामनाएं माता रानी पूरी करती है. नैनादेवी मंदिर के मुख्य द्वार से कुछ ही दूरी पर जहां श्रद्धालुओं के लिए वाहन पार्किंग की सुविधा है, तो साथ रोपवे रिज्जू मार्ग के जरिये भी श्रद्धालु मंदिर के नजदीक मुख्य बाजार तक पहुंच सकते हैं.
रिपोर्ट- विजय भारद्वाज, बिलासपुर