भूषण शर्मा/नूरपुर: आज राजा का तालाब के निजी पैलेस में प्रदेश पौंग बांध विस्थापित समिति की बैठक आयोजित हुई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के वकील विनोद शर्मा विशेष रूप से विस्थापितों से रूबरू हुए. पौंग बांध विस्थापितों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की 5 अप्रैल को हुई पहली सुनवाई के बाद प्रदेश में पौंग बांध समिति की यह पहली बैठक थी. सुप्रीम कोर्ट द्वारा पौंग बांध विस्थापितों के मामले में केंद्र, राजस्थान और प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करके 8 मई से पहले जवाब मांगा गया है. 


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सुप्रीम कोर्ट में ऐसी कई और याचिकाएं दायर 
वहीं, मीडिया से बातचीत करते हुए वकील विनोद शर्मा ने बताया कि कई पौंग बांध विस्थापितों का आज तक राजस्थान में पुनर्वास नहीं हो पाया है. कई मामलों में विस्थापितों का राजस्थान में भू आबंटन निरस्त हुआ है जबकि कुछ मामले ऐसे हैं जिनमें वहां का भू माफिया पौंग बांध को छ्ल से बसने नहीं दे रहा. द्वितीय चरण में बिना मूलभूत सुविधाओं के भू आवंटन किया गया है, जिनमें मिली भगत सामने आई है. ऐसी कुछ और याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं, जिन्हें लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राजस्थान व प्रदेश सरकार से 8 मई से पहले जबाब मांग है.


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विस्थापितों को हिमाचल में ही मिलनी चाहिए थी भूमि- हंस राज चौधरी
इस मौके पर प्रदेश पौंग बांध समिति प्रधान हंस राज चौधरी ने कहा कि हिमाचल के लोगों ने पौंग बांध निर्माण के लिए भूमि को जलमग्न करवाया. इस हिसाब से उस समय ये समझौता ही गलत था. विस्थापितों को भूमि के बदले हिमाचल में ही भूमि मिलनी चाहिए थी, लेकिन यहां की जनता को तीन हजार किलोमीटर दूर तपते रेगिस्तान में जमीन दे दी गई. 


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2 लाख 20 हजार एकड़ भूमि पर बसाना मंजूर हुआ था जिला श्रीगंगानगर
समझौते के हिसाब से जिला श्रीगंगानगर 2 लाख 20 हजार एकड़ भूमि पर बसाना मंजूर हुआ, लेकिन राजस्थान सरकार की मिली भगत और प्रदेश सरकार के उदासीन रवैये ने विस्थापितों की भावनाओं को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने कहा कि मूलभूत सुविधाओं से वंचित तपते रेगिस्तान के बॉर्डर एरिया में उन्हें भूखा मरने के लिए छोड़ दिया गया. ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. 


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