वो कारगिल का `शेरशाह` `या तो तिरंगा लहरा के आऊंगा या उसमें लिपट कर चला जाऊंगा`
करगिल की जंग में जांबाज कैप्टन विक्रम बत्रा ने 5140 पर तिरंगा लहराया और फिर 4875 के मिशन के दौरान शहादत पाई. विक्रम बत्रा ने तिरंगा लहराया भी और तिरंगे में लिपकर पालमपुर लौटे भी.
चंडीगढ़- आज ही के दिन 23 साल पहले शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा शहादत को प्राप्त हुए थे, जिनका नाम सुनकर दुश्मन कांप जाते थे.
जब-जब कारगिल युद्ध की बात आती है सेना के एक ऐसे जांबाज का नाम जरूर आता है जिसने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों की धज्जियां उड़ा दी थी. आज कैप्टन विक्रम बत्रा की पुण्यतिथि (Vikram Batra Death anniversary) है. सेना के इस जांबाज को शेरशाह के नाम से जाना जाता था.
कैप्टन विक्रम बत्रा ने करगिल के युद्ध में देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दिया था. युद्ध के बाद कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी को नमन करते हुए उनको सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था.
करगिल की उस जंग को 22 बरस हो चुके हैं, लेकिन इस जंग की दस्तान उसके नायकों के बिना अधूरी है. वो 24 साल में सर्वोच्च बलिदान दे गए. करगिल जंग के सबसे बड़े नायकों में थे कैप्टन विक्रम बत्रा, जिनका कोड नेम पाकिस्तानियों के लिए खौफ का दूसरा नाम था.
विक्रम बत्रा यारों के यार थे वो दोस्तों के साथ वक्त बिताने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. विक्रम बत्रा ने एक बार बातों-बातों में दोस्तों से कहा था कि वो तिरंगा लहराकर आएंगे या फिर तिरंगे में लिपटकर आएंगे, लेकिन आएंगे जरूर.
करगिल की जंग में जांबाज कैप्टन विक्रम बत्रा ने 5140 पर तिरंगा लहराया और फिर 4875 के मिशन के दौरान शहादत पाई. विक्रम बत्रा ने तिरंगा लहराया भी और तिरंगे में लिपकर पालमपुर लौटे भी.