Ekadashi vrat importance: बेहद खास है एकादशी का व्रत, क्या है इसका महत्व?
Ekadashi vrat importance: सनानत धर्म में एकादशी व्रत की खास मान्यता है. महिलाएं इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करती हैं. इस व्रत को रखने से जीवन में आने वाली परेशानियों से छुटकारा मिलता है.
Ekadashi tidhi importance: आज महीने का पहला दिन और एकादशी तिथि है. बता दें, एक माह में 2 और सालभर में 24 एकादशी तिथि आती हैं और हर एकादशी बेहद खास होती है. एक एकादशी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है और दूसरी कृष्ण पक्ष में आती है. शास्त्रों में इस दिन को पुण्यदायी माना गया है. कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से जीवन के कई संकट टल जाते हैं और कई परेशानियों से निजात मिलती है. अगर आप आज दान-पुण्य करते हैं तो आपको जीवन में कभी भी आर्थिक रूप से परेशान नहीं होना पड़ता.
पहली बार कब रखते हैं एकादशी का व्रत
एकादशी के व्रत को लेकर मान्यता है कि यह व्रत हमें जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाता है. मान्यता तो यह भी है कि जिसकी मृत्यु चाहे वह मनुष्य हो या फिर जीव-जंतु की एकादशी तिथि को होती है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. ज्यादातर महिलाएं एकादशी का व्रत रखकर विधिवत पूजा-पाठ करती हैं, लेकिन अगर कोई महिला पहली बार यह व्रत रखती है तो वह किसी भी माह के शुक्ल पक्ष से इस व्रत की शुरुआत कर सकती हैं.
क्या है एकादशी व्रत का महत्व?
मान्यता है कि जब किसी मनुष्य या जीव की मृत्यु एकादशी को होती है तो उसकी आत्मा धरती पर नहीं भटकती है. वह धरती की मोह-माया से दूर हो जाती है. ऐसे में उसे सीधा मोक्ष की प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है तो उसे भी मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.
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क्यों कही जाती है भीम एकादशी?
कहा जाता है कि एक बार महर्षि वेदव्यास ने सभी पांडवों समेत कुंती को एकादशी का व्रत रखने के लिए कहा था. व्रत के बारे में सुनकर सभी पांडव चौंक उठे, तभी भीम ने कहा कि हर माह में अलग-अलग पक्ष के हिसाब से दो बार एकादशी तिथि आती है. ऐसे में इस तरह व्रत रख पाना उसके लिए संभव नहीं है, क्योंकि उनके पेट में वृक नामक अग्नि का वास है, जिसकी वजह से उन्हें बहुत भूख लगती है और ये अग्नि भी तभी शांत होती है जब वह अधिक मात्रा में भोजन ग्रहण करें.
यह सुनकर महर्षि वेदव्यास ने कहा कि अगर तुम ज्येष्ठ मास की एकादशी को निर्जला व्रत रखोगे तो तुम्हें इससे सालभर की 24 एकादशी का पुण्य मिलेगा. इसके बाद भीम ने महर्षि वेदव्यास की बात मान ली और उसने ज्येष्ठ मास की एकादशी को निर्जला व्रत रख लिया. तभी से इस एकादशी को भीमएकादशी कहा जाने लगा.
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