Jitiya Vrat Katha: हिंदू धर्म में जितिया व्रत का विशेष महत्व होता है. इसे 'जिउतिया' और 'जीवित्पुत्रिका व्रत' भी कहा जाता है. इस व्रत को महिलाएं अपने बच्चों की लंबी आयु और उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखती हैं. बता दें, जितिया व्रत हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है. इस दिन महिलाएं 24 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. 


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बता दें, इस व्रत को लेकर कई तरह की किदवंतियां प्रचलित हैं. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान जीमूतवाहन के पिता गंधर्व के शासक थे. लंबे समय तक शासन करने के बाद उन्होंने महल छोड़ दिया और अपने पुत्र को राजा बनाकर जंगल में चले गए. जीमूतवाहन उनके बाद राजा बने. जीमूतवाहन ने अपने पिता की उदारता और करुणा को अपने राजकाज के कामों में लागू किया. उन्होंने काफी समय तक शासन किया. काफी समय तक शासन करने के बाद उन्होंने भी राजमहल छोड़ दिया और अपने पिता के साथ जंगल में रहने लगे, जहां उनका विवाह मलयवती नाम की एक युवती से हुआ. 


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एक दिन जीमूतवाहन को जंगल में एक वृद्ध महिला रोती दिखाई दी. वृद्ध महिला के चेहरे पर एक भयानक भाव था. यह देखकर जब जीमूतवाहन ने उससे उसकी परेशानी की वजह पूछी, तो उसने बताया कि गरुड़ पक्षी को नागों ने वचन दिया है कि वह पाताल लोक में प्रवेश न करें. हर रोज एक नाग उनके पास आहार के रूप में भेज दिया करेंगे. 


उस वृद्ध महिला ने जीमूतवाहन को बताया कि इस बार गरुड़ के पास जाने की बारी उनके बेटे शंखचूड़ की है. अपने पिता की तरह दयालु हृदय वाले जीमूतवाहन ने कहा कि वह उनके बेटे को कुछ नहीं होने देंगे. इसके बजाय उन्होंने खुद को गरुड़ को भोजन के रूप में पेश करने का बात कही.


जीमूतवाहन ने खुद को लाल कपड़े में लपेटा और गरुड़ के पास पहुंचे, गरुड़ पक्षी ने जीमूतवाहन को नाग समझकर अपने पंजों में उठा लिया. इसके बाद जीमूतवाहन ने गरुड़ को पूरी कहानी सुनाई कि कैसे उन्होंने किसी और के जीवन के लिए खुद को बलिदान कर दिया. जीमूतवाहन की दयालुता से प्रभावित होकर गरुड़ ने उसे जीवनदान दे दिया और भविष्य में कभी किसी का जीवन न लेने का वचन दिया. 


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