चंडीगढ़- एक विवाहित हिंदू महिला के लिए उसके पति की लंबी आयु , सुख- समृद्धि और सुखद वैवाहिक जीवन से बढ़कर कुछ नही होता. इस आशीर्वाद की प्राप्ती के लिए हर वर्ष विवाहित  महिलाएं वट सावित्री व्रत करती हैं. 


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वैसे तो हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है ही, लेकिन इस वर्ष शनि जयंती होने के कारण ये व्रत और भी खास माना जा रहा है. कोरोना काल के दो वर्ष बाद महिलाएं इस बार साथ मिलकर व्रत पुजा कर सकेंगी. इस बार 30 मई यानी सोमवार को सुहागिन महिलाएं वट सावित्री व्रत रखेंगी.


क्यों मनाया जाता है वट सावित्री व्रत
वट सावित्री व्रत  सावित्री को समर्पित व्रत है जो एक पवित्र महिला थी. हिन्दू मान्यता के अनुसार सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से बचाए थे. सावित्री के भक्ति और दृढ़ विश्वास ने यमराज को सत्यवान के जीवन को बहाल करने के लिए मजबूर कर दिया था. 


कब मनाया जाता है व्रत
यह व्रत ज्येष्ठ के महीने में अमावस्या तिथि को मनाया जाता है. इस बार अमावस्या तिथि आज यानी 29 मई को दोपहर 2:54 पर शुरू होगी और सोमवार शाम 4:59 बजे खत्म होगी, लेकिन उदय तिथि के अनुसार, वट सावित्री पूजा 30 मई यानी कल मान्य होगी.


व्रत के दिन, विवाहित महिलाएं बरगद के पेड़ (वट वृक्ष) की पूजा करती हैं.  वृक्ष के चारों ओर एक पवित्र धागा बांधती हैं, और उसकी परिक्रमा करती हैं. एक दिन का उपवास रख महिलाएं अपने पति के लिए प्रार्थना करती हैं. 


व्रत की विधि...
व्रत के दिन स्नान करने के बाद लाल रंग की साड़ी पहनकर महिलाएं शृंगार करती हैं. सावित्री-सत्यवान की मूर्ति, कच्चा सूत, बांस का पंखा, सिंदूर, सुहाग का समान, लाल कलावा, धूप-अगरबत्ती, मिट्टी का दीपक, घी, बरगद का फल, जल से भरा कलश और मिष्ठान आदी पूजा की सामग्री मे शामिल  करी जाती है. 


इन सभी सामग्रियों को एक थाली में सजाकर महिलाएं बरगद के पेड़ के पास इकठ्ठा होती हैं. बांस के पंखे से हवा करके और कच्चा सूता वट वृक्ष पर बांधते हुए 5,7 या 11 बार परिक्रमा की जाती है. 


इसके बाद सभी सुहागिन महिलाएं वट सावित्री व्रत की कथा सुनती या पढ़ती हैं.  कथा के बाद पति की दीर्घायु की कामना कर चने के 7 दाने और बरगद की कोपल को पानी के साथ निगलकर सुहागिन महिलाएं व्रत खोलती है.