कोमल लता/मंडी: धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास को समेटे हिमाचल के कई इलाकों में पत्तों से बनी प्लेट (पत्तल) में खाना परोसने की परंपरा अभी भी जारी है. मंडी जिला के अलावा कांगडा और हमीरपुर जिले में अभी भी लोग शादियों और अन्य त्योहारों में पत्तों से बनी इन पत्तलों का ही इस्तेमाल करते हैं.


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मौजूदा समय में प्लास्टिक और थर्माकोल से बने कप और प्लेट्स पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है. सरकार अब इनकी जगह ग्रीन टेक्नोलॉजी अपनाने जा रही है, लेकिन हिमाचल प्रदेश की प्रकृति में ऐसे कई विकल्प हैं, जिसका हम सही ढंग से प्रयोग कर सकते हैं. अगर हम पहाड़ में इस्तेमाल होने वाले पत्तल की बात करें तो ये 'तौर' नामक बेल से बनती हैं. यह बेल ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं. आज भी गांव और मंडी शहर में शादियों और पूजा पाठ के लिए 'तौर' के पतों से बनी पत्तलों का प्रयोग किया जाता है.


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कैसे तैयार होती हैं पत्तल?
बता दें, इन प्लेट्स को घास और बांस के तिनकों से जोड़कर तैयार किया जाता है. ये पत्तलें मंडी शहर में कई परिवारों की रोजी-रोटी का जरिया हैं. इन्हें बनाने के लिए लोग जंगलो से पत्ते तोड़ कर लाते हैं और फिर 4 से 5 पत्तों को एक साथ जोड़कर इन्हें पत्तल के रूप में तैयार किया जाता है, जिसके बाद मार्केट में इन्हें बेचा जाता है.


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'तौर' के पत्तों से बनी पत्तलों से मिलेगा रोजगार
वहीं, मंडी के लोगों का कहना है कि ये उनका घरेलू उद्योग है. ये उद्योग पर्यावरण को बचाने के लिए बहुत मददगार साबित होगा. इतना ही नहीं इससे  गरीबों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे, लेकिन इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार किसी तरह का कोई कदम नहीं उठाती है. उन्होंने कहा कि सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए. पर्यावरण को बचाने वाले ऐसे उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए. इसके साथ ही कराबारियों ने सरकार से मांग की है कि प्रदेश में प्लास्टिक से बनी पतली, गिलास और दोने पर सरकार प्रतिबंध लगाए और 'तौर' से बनी इन पत्तलों का प्रयोग प्रदेश के हर सरकारी कार्यक्रम करें. 


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