मीठी तुलसी के पत्ते खाने से शुगर लेवल रहता है कंट्रोल, कीमत है 125-150 रुपये प्रति किलो
स्वंय सहायता समूहों के तैयार उत्पादों को मार्केटिंग का मंच देने के लिए शुरू किए गए सोमभद्रा ब्रांड नेम में अब मीठी तुलसी और स्टीविया का नाम भी जुड़ गया है.
राकेश मल्ही/ऊना: स्वंय सहायता समूहों के तैयार उत्पादों को मार्केटिंग का मंच देने के लिए शुरू किए गए सोमभद्रा ब्रांड नेम में अब मीठी तुलसी और स्टीविया का नाम भी जुड़ गया है. अब तक जिला ऊना के समूह सेवियां, पापड़, आचार तथा बांस के उत्पाद सोमभद्रा के तहत बेचते आ रहे हैं, लेकिन अब जिला प्रशासन ने स्टीविया को भी इस लिस्ट में जोड़ दिया है. ऊना वार्ड नंबर 2 निवासी अमनदीप सिंह का परिवार काफी समय से प्राकृतिक खेती से जुड़ा हुआ है. कोरोना काल में वह अपने परिवार के साथ खेती में हाथ बटाने लगे. उन्होंने उद्यान विभाग के साथ संपर्क किया और स्टीविया नाम के पौधे की खेती करना शुरू कर दिया.
चीनी की तरह मीठी होती है मीठी
स्टीविया की खेती के लिए विभाग की ओर से तकनीकी सहायता सहित पौधे उपलब्ध करवाने में समय-समय पर मदद की जाती है. ऐसे में आज उनकी कोशिश रंग ला रही है. स्टीविया को बेचने की परेशानी खत्म करने के लिए जिला प्रशासन ने उन्हें अब सोमभद्रा ब्रांड नेम के तहत ला दिया है. उन्हें अपने उत्पाद की मार्केटिंग में भी आसानी हो रही है. चंडीगढ़ से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने वाले जिला ऊना के अमनदीप ने बताया कि "स्टीविया एक हर्ब यानी जड़ी-बूटी है, जो चीनी की तरह मीठी होती है. इसीलिए इसे मीठी तुलसी के नाम से भी जाना जाता है. स्टीविया की पत्तियां देखने में तुलसी की पत्तियों की तरह लगती हैं. स्टीविया की खेती आसानी से घर पर भी की जा सकती है.
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कैलोरी की मात्रा भी होती है कम
चाय और कॉफी को मीठा बनाने के लिए स्टीविया के सूखे पत्तों का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसकी पत्तियों में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं. यह स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है. इस औषधीय पौधे के उत्पाद की मार्केटिंग के लिए इसे सोमभद्रा ब्रांड नेम के तहत लाया गया है. जिला प्रशासन स्टॉल लगवाकर इस उत्पाद को बेचने में पूरी तरह मदद कर रहा है. स्टीविया का पौधा डायबिटीज यानी मधुमेय के रोगियों के लिए काफी फायदेमंद है. स्टीविया में कैलोरी की मात्रा कम होती है. इसके सेवन से इंसुलिन की मात्रा पर भी किसी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. यह शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मदद करता है. इसे चीनी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
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इस दाम पर मिलते है सूखे पत्ते
स्टेट मेडिसिनल प्लांट बोर्ड जिला ऊना के नोडल अधिकारी व वरिष्ठ आयुर्वेदिक डॉ. नरेश शर्मा ने बताया कि स्टीविया की खेती फरवरी और जुलाई माह में की जाती है. यह पौधा लगभग 5 साल तक जीवित रहता है. स्टीविया के पौधे के पत्तों को हर 3 माह के बाद तोड़ा जाता है और इन्हें सूखाकर बेचा जाता है. स्टीविया के पत्तों में ग्लाइकोसाइड की मात्रा 9-12 प्रतिशत होती है. उन्होंने बताया कि स्टीविया शुगर फ्री टेबलेट, मिठाई और अन्य पेय पदार्थों में इस्तेमाल किया जाता है. स्टीविया के पत्तों की मांग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी काफी अच्छी है. भारतीय बाजार में स्टीविया के सूखे पत्ते 125-150 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकते हैं. स्टीविया की खेती के लिए लगभग 40 हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से लागत आती है. हर साल 3 से साढ़े तीन लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से इंकम होती है.
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