किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह के हैं दिलचस्प किस्से; इस वजह से त्याग दिया था सत्ता
Bharat Ratna Chaudhary Charan Singh: पीएम नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को मरणोपरांत भारत रत्न दिए जाने का ऐलान किया है. वहीं, मुल्क के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से जुड़े कई दिलचस्प किस्से हैं.
Bharat Ratna Chaudhary Charan Singh: पीएम नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को मरणोपरांत भारत रत्न दिए जाने का ऐलान किया है. पीएम मोदी के ऐलान के बाद आरएलडी पार्टी के चीफ जयंत सिंह ने प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, “दिल जीत लिया!” उन्होंने आगे लिखा है, “चौधरी चरण सिंह जी को भारत रत्न देने पर भारत सरकार औ पीएम नरेंद्र जी का ह्रदय से आभार. किसानों का सालों पुराना सपना पूरा हुआ!”
वहीं, मुल्क के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से जुड़े किस्से इतने दिलचस्प हैं कि किसी को उनसे प्ररेणा मिलती है, तो कोई उनके स्वाभिमान को जिद मान बैठता है. चौधरी चरण सिंह ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने एक दिन भी पार्लियामेंट का सामना नहीं किया. इससे पहले कुछ ऐसे हालात पैदा हो गए कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई के साथ-साथ पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के दौरान बेहद अहम भूमिका निभाई थी.
1937 में पहली बार बने विधायक
पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंहा का जन्म 23 दिसंबर 1902 में उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी कानून का पढ़ाई आगरा यूनिवर्सिटी से पूरी की और गाजियाबाद जिले के एक अदालत में वकालत शुरू की. इसके साथ ही उन्होंने मुल्क की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने लगे, जहां, उन्हें राजनीति में रुचि पैदा हो गई. उन्होंने पहली बार 1937 में उत्तर प्रदेश के छपरौली से विधानसभा का इलेक्शन जीता और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
दो बार बने सूबे के सीएम
उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मतभेदों के चक्कर मे कांग्रेस छोड़ दी, इसके बाद चौधरी चरण सिंह ने भारतीय क्रांति दल बनाई. वही, राज नारायण और राम मनोहर लोहिया की मदद से 3 अप्रैल 1967 को यूपी के सीएम बने और अगले ही साल 17 अप्रैल 1968 को इस्तीफा दे दिया. इसके बाद दोबारा 17 फरवरी 1970 में सूबे के सीएम बने. इसके बाद वह केंद्र की राजनीति में चले गए और प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे. जब भी किसानों की बात होती है, तो पूर्व पीएम चौधारी चरण सिंह का नाम आता है.
इंदिरा गांधी की मुखालिफत की
जब साल 1975 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी का ऐलान किया, तो चौधरी चरण सिंह ने उनकी खिलाफत कर दी, जिसके बाद उनको जेल जाना पड़ा था. हालांकि, आपातकाल के बाद मुल्क में हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था. देश में पहली बार मोरारजी देसाई की अगुआई में गैर-कांग्रेसी दलों की सरकार बनी. इस सरकार में किसानों के नेता चौधरी चरण सिंह उप प्रधानमंत्री बने और गृह मंत्रालय का जिम्मा संभाला. जनता पार्टी में आंतरिक कलह की वजह से ये सरकार गिर गई.
पहली बार बने मुल्क का पीएम
मोरारजी देसाई की अगुआई वाली सरकार गिरने के बाद 1979 में कांग्रेस यू के समर्थन से चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बन गए, लेकिन सरकार चलाने के लिए बहुमत की जरूरत थी, जो उनके पास नहीं थी. चौधरी चरण सिंह चाहते, तो इंदिरा गांधी का समर्थन लेकर सरकार बचा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.
इस वजह से गिरी सराकार
उनके बारे में कहा जाता है कि उनकी जिद के पीछे एक खास वजह थी, वह यह थी कि पूर्व पीएम इंदिरा गांधी चाहती थीं कि इमरजेंसी को लेकर उनके और कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ, जो मुकदमे दर्ज हुए थे, उन्हें वो वापस ले लें. बस उनके सामने यहीं शर्त थी. जो चौधरी चरण सिंह को कतई मंजूर नहीं थी. आखिरकार उन्होंने 21 अगस्त 1979 को तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को अपना इस्तीफा सौंप दिया. वह सिर्फ 23 दिन तक मुल्क के पीएम रहे. इस बीच पार्लियामेंट में कोई सेशन न होने की वजह से पार्लियामेंट का सामना करने का मौका नहीं मिला था.