Independece Day 2024: देश को आज़ाद हुए 78 साल हो गए हैं, लेकिन आज भी हर भारतीय के मन में 15 अगस्त मनाने के लिए वही खुशी रहती है जो कभी पहले रहा करती थी. भारत देश को आज़ाद करने के लिए हज़ारों आज़ादी के मतवालों ने अपनी जान कुर्बान कर दी, और हंसते-हंसते मौत को गले लगा लिया. जब देश आज़ादी की तरफ बढ़ रहा था तो कई नारे लोगों की जुबां पर चढे. जिनमें से एक नारा इतना मक़बूल (फेमस) हो गया कि हर स्वतंत्रा सेनानी अंग्रेज़ों के खिलाफ प्रदर्शन में उसे लगाने लगा. इस नारे को मश्हूर करने के पीछे भगत सिंह का काफी अहम रोल रहा और इसी नारे को लगाते-लगाते वह सूली पर चढ़ गए.


इनकलाब ज़िंदाबाद


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हम जिस नारे की बात कर रहे हैं, वह इनकलाब ज़िंदाबाद है. यह एक हिंदुस्तानी भाषा का नारा है. जिसका मतलब है 'क्रांति अमर रहे.' 1921 में पहली बार हसरत मोहानी ने इस नारे को अपने कलम से लिखा और यह इतना फेसम हो गया कि इसे अल्लामा इक़बाल, भगत सिंह और दूसरे क्रांतिकारियों ने इस्तेमाल किया.


असेंबली में धमाका


8 अप्रैल 1929 को को जब असेंबली में भगत सिंह और उनके साथियों ने बम फोड़ा तो इस नारे को बुलंद आवाज़ में चिल्लाया. यह नारा उन सोते हुए लोगों को जगाने के लिए काफी था, तो अग्रेजी हुकूमत में अपनी तक़दीर ढूंढने थे और कहीं न कहीं अंग्रेजों से लड़ने की हिम्मत खो बैठे थे.



हसरत मोहानी का दिया ये नारा कितना फेमस हुआ?


इस नारे ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की एक्टिविटी खास तौर पर अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ां, भगत सिंह और चंद्रशेखर को प्रेरित किया, और यह HSRA का आधिकारिक नारा बन गया. जब भी अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होता, तो इस नारे का इस्तेमाल हुआ करता था. जब भगत सिंह जेल में थे तो उन्होंने कहा था कि इस नारे को युवाओं तक पहुंचाना स्वतंत्रा सेनानियों की ज़िम्मेदारी है, और ऐसा ही हुआ. कहा जाता है कि जब भगत सिंह को सूली पर चढ़ाया जा रहा था तो उससे पहले उन्होंने ज़ोर-ज़ोर से इसी नारे को चिल्लाया था.



कौन थे हसत अली मोहानी?


हसरत मोहानी एक पेन नेम था उनका असली नाम सैयद फज़्ल-उल-हसन था. जिनका जन्म 1 जनवरी 1857 उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था. मोहानी एक फ्रीडम फाइटर, पोएट और उर्दू ज़ुबान के जानकार थे. स्वामी कुमारानंद के साथ मिलकर उन्हें 1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में माना जाता है.



ऐसी गज़ल लिखी, जो आज भी गुनगुनाते हैं लोग


उन्होंने फेमस ग़ज़ल 'चुपके चुपके रात दिन' लिखी थी जिसे बॉलीवुड फिल्म 'निकाह' (1982) में फिल्माया गया था और गुलाम अली (गायक) ने गाया था. इस गज़स को आज भी लोग गुनगुनाते हैं. हरस मोहानी के पिता ईरान से भारत आए थे. हसरत मोहानी ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्होंने कृष्ण के प्रति गहरे प्रेम को व्यक्त करते हुए कविताओं में ज़ाहिर किया है और वह अक्सर कृष्ण जन्माष्टमी मनाने के लिए मथुरा जाया करते थे.


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