Prabhakar Mishra: इंटरनेशनल फुटबॉलर प्रभाकर मिश्रा का निधन; आर्थिक तंगी का रहे शिकार, किसी ने नहीं ली सुध
Prabhakar Mishra: इंटरनेशनल फुटबॉलर प्रभाकर मिश्रा ने दुनिया को अलविदा कह दिया है. वह पिछले बीस साल से गरीबी की जिंदगी काटते रहे और अब गुमनामी के बीच बीमारियों से जूझते हुए उन्होंने हमेशा के लिए आंखें बंद कर लीं.
Prabhakar Mishra Death: इंटरनेशनल फुटबॉलर प्रभाकर मिश्रा के नाम से लोग भले ही परिचित न हों, लेकिन यह शख्स 1960-1970 के दशक में देश के फुटबॉल जगत का एक ऐसा चमकता हुआ सितारा था, जिसकी रोशनी चारों ओर फैल गई थी. वह पिछले बीस साल से गरीबी की जिंदगी काटते रहे और अब गुमनामी के बीच बीमारियों से जूझते हुए उन्होंने हमेशा के लिए आंखें मूंद लीं. रांची के धुर्वा इलाके में एक छोटे से घर में रह रहे प्रभाकर मिश्र को सही इलाज तक नहीं मिला और न ही इस दुनिया से जाने के बाद एक सम्मानजनक विदाई दी गई, जिसके वो हकदार थे.
प्रभाकर मिश्रा ने फुटबॉल के मैदान में अपना करियर 1966 में बिहार के मुंगेर से शुरू किया था. भागलपुर यूनिवर्सिटी टीम की ओर से खेलते हुए वह इतने मशहूर हो हुए कि उन्हें उस वक्त बिहार का बेस्ट फुटबॉलर माना जाता था. वह 1977 में देश की नेशनल फुटबॉल टीम की ओर से खेले. 1976 में देश के सबसे बड़े नेशनल फुटबॉल टूर्नामेंट संतोष ट्रॉफी के थर्ड टॉप स्कोरर रहे. इस टूर्नामेंट में उन्होंने छह गोल दागे थे। इसके पहले वह कोलकाता के मशहूर फुटबॉल क्लब मोहम्मडन स्पोर्टिंग, खिदिरपुर स्पोर्टिंग, एरियंस स्पोर्टिंग क्लब की तरफ से खेलते रहे.
कुछ वक्त तक उन्होंने बांग्लादेश में भी क्लब फुटबॉल खेला. 1980 के दशक में उन्हें रांची पब्लिक सेक्टर की कंपनी एचईसी (हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन) में स्पोर्ट्स कोटे से जॉब कर ली. कंपनी की तरफ से वह 1994 तक खेलते रहे और इस दौरान रांची में फुटबॉल से जुड़े कई बड़े कार्यक्रमों में उनकी अहम हिस्सेदारी रही. राज्य की फुटबॉल सेलेक्शन कमिटी में भी कुछ बरसों तक शामिल रहे. जब तक वो एक्टिव रहे, रांची में नए फुटबॉलरों को गैर पेशेवर तरीके से कोचिंग देते रहे.
सीनियर खेल पत्रकार अजय कुकरेती बताते हैं कि 2002 में एचईसी से रिटायरमेंट लेने के बाद प्रभाकर मिश्रा की आर्थिक हालत खराब होती गई. उन्हें यहां से पेंशन के तौर पर सिर्फ छह-सात सौ रुपए मिलते थे. बीते कुछ सालों से उनकी तबीयत बेहद खराब थी, लेकिन उसके पास इलाज तक को पैसे नहीं थे. साल 2018 में राज्य के उस वक्त के खेल मिनिस्टर अमर बाऊरी ने उनकी कुछ मदद जरूर की थी, लेकिन इसके बाद किसी ने उनकी कोई खबर नहीं ली. फुटबॉल के लिए अपने जुनून के चलते घर-परिवार की भी खास सुध नहीं रही. उन्होंने शादी बहुत देर से की. अब मुश्किल ये है कि उनके परिवार के सामने जिंदगी गुजारने का कोई जरिया नहीं है. राज्य सरकार के खेल विभाग ने जीते जी उनकी कोई खबर नहीं ली और अब इस दुनिया से जाने के बाद भी उनकी मौत पर किसी नेता का कोई शोक संदेश तक नहीं आया.
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