Story of Nikah Movie: बीआर चोपड़ा का पूरा नाम बलदेव राज चोपड़ा था. वह लाहौर से प्रकाशित होने वाली फिल्मी मैगजीन में जर्नलिस्ट थे. दोनों देशों के बंटवारे के बाद वह भारत आ गए और दिल्ली में रहने लगे. इसके कुछ वक्त के बाद उन्होंने मुम्बई का रुख किया. बीआर चोपड़ा फिल्म मेकिंग का काम पाकिस्तान में ही शुरू कर चुके थे, जिसको उन्होंने मुम्बई आकर भी जारी रखा. उन्होंने मुम्बई में कई फिल्में बनाई. लेकिन उन्हें साल 1982 में आई फिल्म 'निकाह' से काफी शोहरत मिली. हालांकि इस फिल्म की वजह से उन्हें कई बार कोर्ट के चक्कर भी लगाने पड़े. 


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फिल्म निकाह को बनाने का आइडिया उस वक्त की फेमस लेखिका अचला नागर को जाता है, जिन्होंने महिला के ऊपर एक छोटी सी कहानी लिखी थी, जिसे प्रसिद्ध पत्रिका 'माधुरी' में छापा गया था. उस लेख का नाम 'तोहफा' था. अचला नागर इस कहानी को लेकर बीआर चोपड़ा के पास गई. उस वक्त वह 'इंसाफ का तराजू' की शूटिंग कर रहे थे. बीआर चोपड़ा को अचला नागर की कहानी काफी पसंद आई, और उन्होंने इसे 'तलाक-तलाक-तलाक' नाम से बनाने का फैसला किया. 


अचला नागर उस वक्त के महान साहित्यकार अमृतलाल नागर की बेटी थी. उन्होंने एक बार संजय खान और जीनत अमान के तलाक की खबर पढ़ी थी. उस खबर में 'हलाला' शब्द का भी जिक्र किया गया था. इसके बाद अचला नागर ने अपने पिता के करीबी दोस्त से हलाला का मतलब पूछा. 'हलाला' का मतलब जानकर अचला खूब रोई और इस तरह अचला ने एक कहानी लिखी जिसका नाम उन्होंने 'तोहफा' रखा. 


फिल्म 'निकाह' के रिलीज होते ही सभी मुस्लिम समुदाय के तथाकथित धर्म गुरु इसका विरोध करने लगे. मामले को शांत करने के लिए बीआर चोपड़ा ने मुस्लिम स्कॉलर्स के लिए स्पेशल स्क्रीनिंग तक रखी. उन्होंने सभी को समझाने की कोशिश की कि ये मुद्दा धार्मिक नहीं सामाजिक है और साथ-साथ महिलाओं के अधिकार से जुड़ा है. 


बीआर चोपड़ा ने जब इस फिल्म का नाम 'तलाक-तलाक-तलाक' रखा तो उनके एक मुस्लिम दोस्त ने कहा कि "चोपड़ा साहब, एक दिक्कत है मैं घर जाकर अपनी बीवी से इस फिल्म को देखने के लिए नहीं कह पाऊंगा, क्योंकि जब वो पूछेगी की मैं उन्हें कौन सी फिल्म (तलाक-तलाक-तलाक) देखने के लिए कह रहा हूं, तो उन्हें दिल का दौरा पड़ जाएगा". बस ये बात बीआर चोपड़ा के दिल में घर कर गई और उन्होंने फिल्म का नाम बदलकर 'निकाह' कर दिया.