फिल्म प्रोड्यूसर निर्देशक अनुराग कश्यप ने कहा है कि आज की दुनिया को मजहब की कम और तालीम की ज्यादा जरूरत है क्योंकि ‘आस्था’ ताकतवर लोगों के लिए अपना एजेंडा आगे बढ़ाने का महज एक औजार बन गई है. सारा हाशमी और नवाजुद्दीन सिद्दीकी अभिनीत शाजिया इकबाल की लघु फिल्म ‘बेबाक’ के निर्माता अनुराग कश्यप ने कहा कि उन्होंने युवा डायरेक्टर द्वारा उठाई गई आवाज का सपोर्ट करने का फैसला किया क्योंकि उसकी (फिल्म की) पटकथा उस संसार को दिखाती है, जिसे उन्होंने नहीं देखा था.


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सच्चे हादसों पर आधारित 20 मिनट की इस लघु फिल्म की कहानी वास्तुकला के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाह रही छात्रा फातिन खालिदी (हाशमी) की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे एक वजीफे के लिए इंटरव्यू के दौरान हिजाब नहीं पहनने को लेकर एक धर्म गुरु की फटकार सुननी पड़ती है. कश्यप के मुताबिक, हर धर्म की पैदाईश पुराने जमाने लोगों की हिफाजत के लिए उन्हें एक साथ लाने की कोशिश करने की जरूरत से हुई थी, जब साइंस की जानकारी नहीं थी.


कश्यप (51) ने एक इंटरव्यू में कहा, ''वक्त के साथ लोगों ने विज्ञान के जरिये बहुत सी खोज की है. मुझे लगता है आज की दुनिया में धर्म की जरूरत काफी कम है. शिक्षा की जरूरत कहीं ज्यादा है लेकिन अब मजबह ताकतवर लोगों और राजनीतिक नेताओं के लिए अपने एजेंडा को आगे बढ़ाने का एक औजार बन गया है.'' पुरस्कार विजेता फिल्म 'बेबाक' में शीबा चड्ढा और विपिन शर्मा ने भी अभिनय किया है और इसे फिल्म महोत्सव के हिस्से के तहत जियोसिनेमा पर प्रदर्शित किया जा रहा है.


कश्यप ने कहा कि इकबाल जैसी फिल्में उन्हें अलग दुनिया से परिचित कराती हैं. उन्होंने कहा, ''शाजिया के लेखन का मुझपर गहरा असर पड़ा क्योंकि उसमें एक दृष्टिकोण है, जो मैंने उसकी पटकथा से सीखा. मैंने वह दुनिया नहीं देखी है. मेरी दुनिया में, मुझे पता है कि छात्रवृत्ति पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए.'' कश्यप ने कहा, ''ऐसी कई दुनिया है जिन्हें मैंने नहीं देखा है. आप किसी शख्स को उसके काम, लेखन या फिल्म निर्माण के जरिए ज्यादा जानते हैं." उन्होंने कहा, ‘‘मुझे अपने धर्म के बारे में बोलना चाहिए ना कि किसी और के धर्म के बारे में. मैं अपने समुदाय, अपने लोगों के बारे में बात करूंगा. अगर मैं बुर्का और हिजाब पर चर्चा में शामिल होउंगा, तब मेरा नजरिया केवल सतही होगा और बाहरी व्यक्ति का होगा.’’ 


उन्होंने याद किया, ‘‘जब वह चर्चा शुरू हुई, मैं भूल गया कि यहां तक कि मेरी मां भी घूंघट लिया करती थी. घूंघट की लंबाई इस बात पर निर्भर करती थी कि उनके सामने कौन है.’’ समाज में महिलाओं को देखे जाने के दृष्टिकोण पर टिप्पणी करने के लिए कहे जाने पर निर्देशक ने कहा, ‘‘हम औरतों को जमींदारी के तौर पर देखते हैं.’’ कश्यप ने कहा कि वह कभी नहीं समझ पाए कि परिवार या समाज की इज्जत केवल औरत से कैसे जुड़ी हुई है. उन्होंने कहा, ‘‘महिला के साथ जब कभी बदसलूकी होती है, तो यह कहा जाता है कि घर की इज्जत लुट गई. क्यों केवल बेटियों या औरतों को घर की इज्जत समझा जाता है? पुरुषों को क्यों नहीं?’’