Photos: म्यूजिक की दुनिया के बादशाह रहे ये दो दोस्त; एक के मरने पर दूसरे ने छोड़ दिया बजाना

Lakshmikant Pyarelal Photos: म्यूजिक की दुनिया पर लंबे वक्त तक राज करने वाले लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल को दुनिया एक ही सख्स समझती है, लेकिन ये दो अलग-अलग नाम हैं. ये दोनों दोस्त हैं. इनकी दोस्ती की मिसाल ये है कि जब एक दोस्त का इंतेकाल हो गया तो दूसरे दूस्त ने कभी म्यूजिक नहीं बजाया.

सिराज माही Sep 03, 2024, 12:40 PM IST
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लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल

'मेरे महबूब कयामत होगी', 'चाहूंगा मैं तूझे सांझ सवेरे', 'दर्द-ए-दिल दर्द-ए-जिगर', 'एक हसीना थी एक दीवाना था' और 'ओम शांति ओम', 'जुम्मा चुम्मा दे दे', 'ये रेशमी जुल्फें', 'एक प्यार का नगमा है', 'अच्छा तो हम चलते हैं', 'माई नेम इज लखन' इन सुपरहिट गानों को सुनकर बरबस ही एक संगीतकार जोड़ी का नाम मन में उभर आता है. इस जोड़ी ने 700 से ज्यादा फिल्मों के सुपरहिट गानों को अपने संगीत से सजाया और आज भी इनके गाने लोगों की जुबां पर हैं.

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दोनों की दोस्ती

यह जोड़ी थी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की. बॉलीवुड के फलक पर भले ये सितारे साल 1963 में आई फिल्म पारसमणि के जरिए चमके लेकिन प्यारेलाल की मुलाकात लक्ष्मीकांत से मात्र दस साल की उम्र में हो गयी थी. दोनों की पारिवारिक स्थिति एक जैसी थी ऐसे में दोनों दोस्त बन गए. दरअसल उस समय मंगेशकर परिवार की तरफ से चलाए जा रहे बच्चों की अकादमी सुरीला बाल कला केंद्र में दोनों संगीत सीखने आया करते थे.

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लोगों ने किया पसंद

फिल्म पारसमणि को जब इस जोड़ी ने अपने संगीत से सजाया तो इसका एक गाना 'हंसता हुआ नूरानी चेहरा' और 'वो जब याद आये, बहुत याद आए' लोगों को इतना पसंद आया कि लोग इसके संगीत में डूबते चले गए. ऐसे में फिल्म इंडस्ट्री में इसे जोड़ी के नाम से कोई नहीं पुकारता लोगों को ऐसा लगता कि दोनों एक हीं हैं और उस एक संगीतकार का नाम 'लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल' है.

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नहीं दिया म्यूजिक

लोक लुभावन धुनों से लोगों के दिलों पर कई दशकों तक राज करने वाली इस जोड़ी में से 1998 में लक्ष्मीकांत की मौत के साथ यह साझेदारी खत्म हो गई, उसके बाद प्यारेलाल ने भी कभी किसी फिल्म के लिए संगीत नहीं दिया. इस जोड़ी में से एक प्यारेलाल का जन्म 3 सितम्बर को हुआ था.

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पूरा नाम

प्यारेलाल को आज भी बॉलीवुड प्यारे भाई के नाम से पुकारती है. उनका पूरा नाम प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा है. प्यारे की जिंदगी कठिन रही. प्यारे भाई छोटे से थे तो उनकी मां का देहांत हो गया. प्यारेलाल ने बचपन से ही वायलिन बजाना सीखा. संगीत के प्रति उनकी लगन देखिए हर दिन वह 8 से 12 घंटे इसका अभ्यास किया करते थे. 

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म्यूजिक में दिलचस्पी

उनके पिता पंडित रामप्रसाद ट्रम्पेट बजाते थे उनकी आर्थिक हालात ठीक नहीं थी, लेकिन, जब भी कहीं उन्हें ट्रम्पेट बजाने का मौक़ा मिलता तो वह साथ में प्यारे को भी ले जाते. एक बार प्यारे के पिताजी उन्हें लता मंगेशकर के घर लेकर गए. लता मंगेश्कर प्यारे के वायलिन वादन से इतना खुश हुईं कि उन्होंने प्यारे को 500 रुपए इनाम में दिए जो उस ज़माने में बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी.

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नाम का असर

उन्होंने एंथनी गोंजाल्विस नाम के एक गोअन संगीतकार से वायलिन बजाना सीखा और साल 1977 में आई फिल्म अमर अकबर एंथनी में एंथनी गोंजाल्विस का जो नाम उस चरित्र को दिया गया वह उनके वायलिन गुरु के नाम से ही प्रेरित था. 'अमर अकबर एंथनी' फिल्म में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने 'हमको तुमसे हो गया है प्यार क्या करें' में उस समय के तीन बड़े मेल सिंगर्स किशोर कुमार, मोहम्मद रफी, मुकेश और बड़ी फीमेल सिंगर लता मंगेशकर को एक साथ गवाया. ऐसा करने वाले वह एकमात्र संगीतकार हैं.

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पुरस्कार

दोस्ती, मिलन, जीने की राह, अमर अकबर एंथनी, सत्यम शिवम सुंदरम, सरगम और कर्ज़ जैसी फिल्मों में संगीत देने के लिए इस सुपरहिट लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी को 7 बार सबसे  संगीत निर्देशक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया. 

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इनके साथ काम

इस जोड़ी ने मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश, मन्ना डे, महेंद्र कपूर से लेकर अमित कुमार, अलका याज्ञनिक, उदित नारायण, शैलेंद्र सिंह, पी. सुशीला, के.जे. येसुदास, एस.पी. बालसुब्रमण्यम, के.एस. चित्रा, एस.जानकी, अनुराधा पौडवाल, कविता कृष्णमूर्ति, मोहम्मद अजीज, सुरेश वाडकर, शब्बीर कुमार, सुखविंदर सिंह, विनोद राठौड़ और रूप कुमार राठौड़ तक सभी के साथ काम किया. 

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जोड़ी टूटने का गम

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने फिल्म 'दोस्ताना' का संगीत दिया था जिसका टाइटल सॉन्ग रफी और किशोर ने गाया था 'सलामत रहे दोस्ताना हमारा' इस गाने की तरह ही इन दोनों की दोस्ती साढ़े तीन दशक तक सिनेमा के पर्दे पर अखंड रही. कहते हैं कि लक्ष्मी के बिना प्यारे और प्यारे के बिना लक्ष्मी के होने की कल्पना की ही नहीं जा सकती है. ऐसे में यह जोड़ी टूटी तो प्यारे भाई ने फिर कभी फिल्मी पर्दे पर किसी गाने को अपने संगीत से नहीं सजाया.

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2845 गाने

1963 से लेकर 1998 तक इस जोड़ी ने 503 फिल्मों में 160 गायक-गायिकाओं और 72 गीतकारों के कुल 2845 गानों की धुन बनाई. लक्ष्मीकांत की मृत्यु के बाद प्यारेलाल ने कुछ गानों में अकेले संगीत दिया, लेकिन, हमेशा सभी गानों के लिए 'लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल' नाम का ही इस्तेमाल किया. 2024 में प्यारेलाल को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

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