नई दिल्लीः गुजरे जमाने की मशहूर बॉलीवुड अभिनेत्री वहीदा रहमान को मंगलवार को भारत सरकार ने फिल्मों के सबसे बड़े प्रतिष्ठित पुरस्कार दादा साहेब फाल्के पुरस्कार देने की घोषणा की है. इससे पहले उन्हें पद्म श्री और पद्मभूषण अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है. वहीदा रहमान ने लगभग सात दशकों में 90 से ज्यादा फिल्मों में अदाकारी की है. रहमान ने 1956 की फिल्म 'सीआईडी’ में एक चरित्र कलाकार के रूप में हिंदी फिल्मों में अपनी शुरुआत की थी. 


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चेन्नई में एक दक्कनी मुस्लिम परिवार में जन्मीं रहमान की कभी अभिनेत्री बनने की इच्छा नहीं थी, लेकिन वह लोगों को 'हँसाना और रुलाना’ चाहती थीं. अभिनेत्री ने दो साल पहले एक साक्षात्कार में कहा था, “मैं डॉक्टर बनना चाहती थी, क्योंकि उन दिनों मुस्लिम परिवारों के लिए चिकित्सा ही एकमात्र सम्मानजनक पेशा था." 


वह बचपन से ही कला, संस्कृति और नृत्य में रुचि रखती थीं. अपने आईएएस अधिकारी पिता के सहयोग से, वह भरतनाट्यम सीखने और फिर फिल्मों में अपना करियर बनाने के सपने को साकार करने में कामयाब हो सकीं. 


इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “मैं आईने में देखकर अजीब- अजीब तरह से चेहरे बनाती थी. जब मेरे पिता ने पूछा कि मैं ऐसा क्यों करती हूं, तो मैंने कहा "मैं लोगों को हंसाना और रुलाना चाहती हूं."
उन्हें पहली बार फिल्मों में 1955 की तेलुगु फिल्म 'रोजुलु मारायी' और 'जयसिम्हा' में देखा गया था. उसी साल हैदराबाद में गुरुदत्त से एक आकस्मिक मुलाकात ने उनके करियर और उनके जीवन की दिशा बदल दी. 


वह मुंबई चली गईं, फिर बॉम्बे, और 1956 में देव आनंद के साथ दत्त की फिल्म 'सीआईडी' में उन्हें काम करने का मौका मिला. यह दत्त के साथ उनकी एक यादगार साझेदारी थी. उनके साथ भारतीय सिनेमा की कुछ बेहतरीन फिल्में - 'प्यासा', 'कागज के फूल', 'चौदहवीं का चांद' और 'साहब बीबी और गुलाम' में उन्होंने अपनी शानदार अदाकारी की गहरी छाप छोड़ी. 
देव आनंद और रहमान का सहयोग भी बेहद खास था. उनकी सबसे सफल फिल्म 'गाइड' थी. वहीदा रहमान ने सत्यजीत रे की 'अभिजान' के साथ बंगाली सिनेमा में भी कदम रखा और 1950 और 1960 के दशक में 'कोहरा', 'बीस साल बाद', 'खामोशी' जैसी फिल्मों में विभिन्न भूमिकाओं में अभिनय करते हुए सबसे ज्यादा भुगतान पाने वाली महिला अभिनेताओं में से एक बन गईं. 


वहीदा रहमान ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने फिल्मों में पहने जाने वाले कपड़ों से कभी समझौता नहीं किया. उन्होंने अपनी पहली हिंदी फिल्म 'सीआईडी’ में पहले ही अनुबंध में इस बात का जिक्र किया था कि अगर मुझे पोशाक पसंद नहीं आएगा तो मैं उसे नहीं पहनूंगी. 


वहीं, 'सीआईडी' के निर्देशक राज खोसला ने वहीदा रहमान को सुझाव दिया था कि वह अपना नाम बदल लें, क्योंकि यह बहुत लंबा था, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया.
1970 के दशक में, वहीदा रहमान ने चरित्र भूमिकाएँ निभाईं. 1971 की 'रेशमा और शेरा' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला. अपने करियर के चरम पर, उन्होंने अपने 'सन ऑफ इंडिया' के सह-कलाकार शशि रेखी से शादी की. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि “हमारा एक कॉमन फ्रेंड था यश जौहर. शशि उसके घर पर रहता था और मेरी यश से बहुत अच्छी दोस्ती थी. इसलिए हम अक्सर मिलते थे.


एक दिन, हम कॉफी पी रहे थे और अचानक उसने कहा., "मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं. क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"  
मैंने कहा, "यह बहुत अचानक है' और मुझे सोचने में कुछ वक्त लगेगा.’’ तीन-चार दिन बाद यश ने फोन किया और कहा, "जल्दी जवाब दो नहीं तो वह मुझे और हीरू (जौहर) को मार डालेगा.’’ इसके बाद वहीदा रहमान ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. उन्होंने कहा कि वह एक अच्छे, सभ्य और अच्छे दिखने वाले पंजाबी थे. मैंने ज्यादातर खाना बनाना उन्हीं से सीखा था. उनके दो बच्चे हैं- बेटी काशवी और बेटा सोहेल. शादी के बाद, उन्हें कई भूमिकाएँ मिलीं, जिनमें 1976 में 'कभी-कभी' में अमिताभ बच्चन के साथ भूमिकाएँ शामिल थीं. ठीक दो साल बाद, उन्होंने 'त्रिशूल' में बच्चन की माँ की भूमिका निभाई और फिर 1982 की फ़िल्म 'नमक हलाल' में भी अमिताभ की मां बनी. 


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