Blood Bank Govt. Guidelines: भारत में वक्त पर खून नहीं मिलने की वजह से हर साल कई मरीजों की मौत हो जाती है. यही कारण है कि शहर के सरकारी और गैरसरकारी हॉस्पीटलों के आस-पास खून बेचने वाले दलालों की भीड़ लगी होती है. हालांकि, सरकार की तरफ से हर साल ब्लड बैंक और सेंटरों के लिए नई गाइडलाइंस जारी की जाती है. लेकिन फिर भी दलालों पर नकेल कसने में सफलता नहीं मिल पाई है. अब, सरकार ने ब्लड को सेल किए जाने यानी कि बेचने के लिए साफ तौर पर मना कर दिया है.
 
दरअसल, भारत के ड्रग कंट्रोलर ने हाल ही में सभी राज्यों को चिट्ठी लिखकर यह साफ किया है कि वह अपने राज्य के अंतर्गत आने वाले हर हॉस्पीटल ब्लड बैंक या फिर ऐसे किसी भी सेंटर या NGO को सूचित करें, जो ब्लड डोनेशन या ट्रांसफ्यूजन के लिए में काम कर रहे हैं. और, उन्हें यह भी बताएं की ब्लड के बदले में केवल प्रोसेसिंग चार्ज ही लिया जा सकता है. इसके अलावा ब्लड कंपोनेंट के लिए किसी तरह का पैसा नहीं लिया जा सकता यानी खून का सौदा नहीं हो सकता है.


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दिल्ली के धरमशिला नारायणा अस्पताल के ब्लड बैंक के इंचार्ज डॉक्टर मनोज रावत के मुताबिक सरकार ने पहले से ब्लू के प्रोसेसिंग चार्ज तय किए हुए हैं और कोई भी अस्पताल या ब्लड बैंक उससे ज्यादा पैसे नहीं ले सकता। लेकिन फिर भी अलग-अलग अस्पतालों में ब्लड बैंक के रेट अलग-अलग क्यों है और क्यों मरीज को लगता है कि उसे जरूर के वक्त पर लुटा जा रहा है इसके पीछे की कहानी हम आपको समझाते हैं.


कोई भी व्यक्ति जब ब्लड डोनेट करता है तो उसके ब्लड की पांच तरह के इंफेक्शन या बीमारियों के लिए टेस्टिंग की जाती है. हेपेटाइटिस मलेरिया सिफलिस और एचआईवी जैसी बीमारियों के लिए उसके ब्लड की जांच की जाती है, जिसमें कुछ खर्च आता है उसके बाद ब्लड में से अलग-अलग तरह के कंपोनेंट वाले बैग तैयार किए जाते हैं, जैसे- पैक्ड सेल वॉल्यूम, प्लेटलेट और प्लाज्मा. यह सब चीज प्रोसेसिंग चार्ज के तहत आती है।


अलग-अलग हॉस्पीटल और सेंटर खून की जांच और प्रोसेसिंग के लिए अलग-अलग तरह की तकनीकों और blood बैग्स का इस्तेमाल करते हैं और दलील यही दी जाती है कि इसी वजह से हर हॉस्पीटल को ब्लड सप्लाई करने की लागत अलग-अलग पड़ती है.


प्रोसेसिंग का रेट तय है लेकिन ब्लड चढ़ाने का नहीं
प्रोसेसिंग के बाद मरीज को खून चढ़ाया जाता है जिसे ट्रांसफ्यूजन कहते हैं. ब्लड ट्रांसफ्यूजन का रेट किसी भी हॉस्पीटल में कुछ भी हो सकता है, इसे लेकर सरकार की कोई गाइडलाइंस नहीं है. ऐसे में मरीज को खून चढ़ाने वाला हॉस्पीटल या सेंटर जितना चाहे दाम वसूल सकता है. 


जानें कितना है ब्लड का प्रोसेसिंग चार्ज ?
सरकार ने ब्लड प्रोसेसिंग के लिए सरकारी और प्राइवेट centres के लिए अलग-अलग फीस तय किए हुए हैं. मसलन दिल्ली में सरकारी अस्पताल में ब्लड का प्रोसेसिंग चार्ज अलग-अलग कंपोनेंट के हिसाब से 200 रूपये से लेकर 1100 रुपए तक वसूलता है. जबकि प्राइवेट हॉस्पीटल में ब्लू प्रोसेसिंग चार्ज के साथ 1550 रुपए तक है. लेकिन कुछ बीमारियों के लिए एडवांस टेस्ट किए जाते हैं, जैसे नैट  टेस्टिंग (NAT), एलिसा (ELISA) टेस्टिंग वगैरह. ऐसे 15 और मानकों के लिए भी सरकार ने फीस तय कर रखे हैं.  लेकिन हॉस्पीटल नई तकनीक और नई मशीनों की दलील देकर अक्सर मरीजों से दाम बढ़ाकर पैसे लेते हैं. इसके अलावा मरीज को ब्लड चढ़ाने के बदले में वह जो चाहे चार्ज लगा सकते हैं.


क्यों होता है खून का सौदा ?
भारत में ब्लड डोनेशन करने वालों की तादाद ना के बराबर है. ऐसे में बहुत से लोग दलालों की तरह काम कर रहे हैं और सरकारी हॉस्पीटलों के बाहर जरूरतमंद मरीजों की तलाश में रहते हैं, जिन्हें खून तो चाहिए लेकिन उनके पास कोई खून देने वाला नहीं है. ऐसे मरीजों से दलाल मनमाने रेट लेते हैं और गरीब लोगों को ब्लड डोनेशन के लिए लेकर आते हैं.


किन मरीजों को फ्री में मिलता है खून ?
सरकार के नियम के मुताबिक, कोई भी ब्लड बैंक थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया के मरीजों को ब्लड देने के बदले में किसी तरह का चार्ज वसूल नहीं कर सकता है. उन्हें पूरी तरह से फ्री ब्लड चढ़ाना होता है, क्योंकि इन मरीजों को हर रोज खून की जरूरत पड़ती है.


रिपोर्ट:- पूजा मक्कर