भारत सरकार के डाटा के मुताबिक भारत में 5 साल से कम उम्र के 43 लाख बच्चे मोटापे के शिकार हैं. सरकार के पोषण ट्रैकर का डाटा ये बता रहा है. ICMR के मुताबिक भारत में हर 4 में से 1 को डायबिटीज़ या मोटापे की बीमारी हो चुकी है. लेकिन भारत में पैकेज्ड फूड पर किया गया एक सर्वे बता रहा है कि जंक फूड या सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले पैकेज्ड फूड पर कोई लगाम नहीं लग रही.


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एक एनजीओ नापी (Nutrition Advocacy for Public Interest- NAPi) ने भारत में बहुत बिकने वाले 43 पैकेट वाले खाने का एनालिसिस किया, जिसमें पता चला है कि नमक, चीनी या फैट की मात्रा इन 43 प्रॉडक्टस में जरूरत से ज्यादा है. खाने के ये सभी आइटम अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड या पैकेट फूड की कैटेगरी मे आते हैं. आमतौर पर तैयार खाना यानी 'रेडी टू ईट' जैसे केक, पेस्ट्री, चिप्स, बिस्कुट, इंस्टेंट नूडल्स, सॉफ्ट ड्रिंक्स आदि इसी कटेगरी में आते हैं. इनकी मार्केटिंग करते वक्त सेलेब्रिटी से विज्ञापन करवाने, इमोशनल विज्ञापन बनाने, बच्चों को लुभाने वाले विज्ञापन बनाने पर जोर दिया गया है. 


रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इन आइटम्स के एडवर्टिज्मेंट में बड़े-बड़े अक्षरों में ऐसे हेल्थ क्लेम किए गए हैं, जिनका कोई आधार नहीं है, जबकि किसी भी प्रॉडक्ट ने ये नहीं बताया है कि इसमें चीनी, नमक या फैट की मात्रा ज्यादा है. इस सर्वे में चिप्स, बिस्कुट और ब्राउन ब्रेड के बड़े ब्रांड शामिल किए गए हैं. NAPi के संयोजक डॉ अरुण गुप्ता के मुताबिक "कई प्रॉडक्टस ने ऐसी मार्केटिंग करते वक्त फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्स एक्ट 2006 और कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 का उल्लंघन भी कर डाला है.


मार्केट ऐसे सामान से ही भरी है. इनके विज्ञापनों की भरमार यानी बाजार फिलहाल नियम कानूनों के दायरे से बेपरवाह है और काम कर रहा है. भारत में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन वक्त-वक्त पर हर उम्र के हिसाब से सेहतमंद खाने की थाली में क्या होना चाहिए उसकी जानकारी देता है. इसके मुताबिक एक आम वयस्क की थाली में दिन भर में सब्जियां 350 ग्राम, फल 150 ग्राम, दालें, बीन्स, अंडे, मीट की मात्रा 90 ग्राम, ड्राइ फ्रूट्स 30 ग्राम, तेल और घी– 27 ग्राम, सभी तरह का अनाज आटा, चावल, मक्का, ज्वार आदि कुल मिलाकर– 240 ग्राम होना चाहिए.


इसमें पैकेज्ड फूड की कोई जगह नहीं है. लेकिन लोगों के रोज के खाने में पैक्ड फूड कहीं ना कही शामिल हो चुका है. बाहर का खाना लुभाता है और टिफिन रखा रह जाता है. लुभावने विज्ञापन लोगों की इसी कमज़ोरी पर काम करते हैं. जंक फूड के खतरों से लोगों को सावधान करने के लिए ग्लोबल स्तर पर तीन पॉलिसी अपनाई गई हैं. रिपोर्ट में इस पॉलिसी को जल्द से जल्द लागू करने की सलाह दी गई है. 


पहली है पैकेट के फ्रंट पर ज्यादा नमक, चीनी या फैट की जानकारी बड़े शब्दों में देना. 
दूसरी जंक फूड के विज्ञापन सुबह 6 से रात 10 बजे तक ना दिखाया जाना. 
और तीसरी, जंक फूड पर भारी टैक्स.


भारत सरकार ने लाइफस्टाइल बीमारियों को कंट्रोल करने के लिए इन तीनो पॉलिसी को 2022 तक लागू करने और 2025 तक नॉन क्मयुनिकेबल बीमारियों पर लगाम लगाने का लक्ष्य तो रखा है, लेकिन अभी ये तीनों ही पॉलिसी लागू नहीं हो सकी हैं. इसके अलावा पॉलिसी निर्माताओं को सलाह दी गई है कि स्वास्थय मंत्रालय सेहतमंद खाने और जंक फूड को पारिभाषित करे, उसकी लिस्ट जारी करे, जिससे लोग विज्ञापन के दावों से नहीं, सही जानकारी से सही फैसले ले सकें.


भारत में सबसे ज्यादा डायबिटीज़ के मरीज हैं और डायबिटीज़ कई बीमारियों के लिए रास्ता आसान करती है. ऐसे में भारत में पैक्ड फूड का इस्तेमाल कम करने में ये कोशिशें कारगर हो सकती हैं.