ऑस्टियोपोरोसिस,आपकी हड्डियों का सबसे बड़ा दुश्मन, जानें क्या हैं इसके लक्षण और ट्रीटमेंट.
ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों में होने वाली एक गंभीर बीमारी है जिसमे हमारे शारीर की हड्डियाँ कमजोर और ब्रिटल हो जाती हैं - इतनी ब्रिटल कि गिरने या झुकने या खांसने जैसे हल्के तनाव से भी हड्डियाँ टूट सकती हैं. ऑस्टियोपोरोसिस से संबंधित चोटे सबसे अधिक कूल्हे, कलाई या रीढ़ की हड्डी में होती है.
Health News: आजकल की भागदौड़ भरी जीवनशैली हमारे लिए चुनौती भरी है. जहां लोगों को हर दिन एक नया मुकाबले से सामना करना पड़ता है. सफलता के लिए सुबह से रात तक कड़ी मेहनत करने में जुटे रहते हैं. इस दौड़ में हम अक्सर अपने सबसे महत्वपूर्ण साथी अपने शरीर की तरफ ध्यान नहीं देते हैं. और, अगर देते भी हैं तो हार्ट, किडनी, और लंग्स की तरफ हमारा ध्यान ज्यादा रहता है, लेकिन हमारी हड्डियाँ, जो हमें सहारा देती हैं वो हमारे ध्यान से बहुत दूर चली जाती हैं.
अगर हम अपने शारीर को एक मशीन की तरह देखें, तो हमारी हड्डियाँ उस मशीन के रोमांचक गियर्स बनती हैं जो हर कदम पर हमें आगे बढ़ने में मदद करती हैं. यह विशेष रूप से हमारे स्वास्थ्य और अच्छे जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इन्हें अक्सर हम अनदेखा करते हैं.
आपने अक्सर सुना होगा की लोगों की बढ़ती उम्र के साथ हड्डियों की कमजोरी महसूस होने लगती है मगर क्या आप ये जानते हैं की आजकल नौजवान लोगों में भी हड्डियों की एक समस्या देखने को मिल रही है जिसे हम ओस्टियोपोरोसिस बोलते हैं. यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं और यहां तक कि छोटी सी चोट या गिरावट के कारण भी व्यक्ति घातक चोटों का सामना कर सकता है.
आज की इस खबर में हम आपको ओस्तेरिओपेरोसिस के हर पहलु से अच्छे तरह से वाकिफ करवाएँगे ताकि आप भी समझ सके अपने शारीर को थोडा और बेहतर तरह से.
क्या है ओस्तेरिओपेरोसिस( osteoporosis)?
ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसी स्थिति होती है जिसके कारण हड्डियाँ कमजोर और ब्रित्ल हो जाती हैं. ऑस्टियोपोरोसिस में, शरीर अधिक बोने टिश्यू को अब्सोर्ब करने लगता है और बदले में कम टिश्यू का उत्पादन करता है, जिससे हड्डियों की डेंसिटी कम हो जाती है. किसी व्यक्ति को ऑस्टियोपोरोसिस का एहसास तब तक नहीं हो सकता,जब तक उसे फ्रैक्चर न हो जाए. ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित लोगों की हड्डियों में छेद्र होजाते हैं और वे कमजोर हो जाती हैं, जिससे फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है. यह अक्सर कूल्हों, रीढ़ की हड्डी और कलाई जैसे कुछ परिफेरल जॉइंट्स को प्रभावित करता है.
आपको बता दें कि, हड्डी एक जीवित टिश्यू है जो लगातार टूटता और प्रतिस्थापित होता रहता है और ऑस्टियोपोरोसिस तब होता है जब पुरानी हड्डी के टूटने के बाद नई हड्डी का निर्माण नहीं होता है.
क्या है इसके लक्षण?
ऑस्टियोपोरोसिस धीरे-धीरे विकसित होता है और किसी व्यक्ति को तब तक पता नहीं चलता कि उसे यह बीमारी है. जब तक कि उसे फ्रैक्चर का अनुभव न हो या गिरने जैसी छोटी घटना के बाद उसकी हड्डी टूट न जाए. यहां तक कि खांसी या छींक से भी ऑस्टियोपोरोटिक हड्डियां टूट सकती हैं. हालाँकि, ओस्तेरिओपेरोसिस के शुरुआती फेज में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं होते हैं. लेकिन एक बार जब आपकी हड्डियां ऑस्टियोपोरोसिस से कमजोर हो जाती हैं, तो आपको होने वाले लक्षणों में रीढ़ की हड्डी के टूटने या ढहने के कारण पीठ दर्द, समय के साथ ऊंचाई का कम होना, झुकी हुई मुद्रा या एक हड्डी जो अपेक्षा से कहीं अधिक आसानी से टूट जाए आदि जैसे लक्षण शामिल होते हैं.
क्या है इसके होने के पीछे कारण और रिस्क फैक्टर्स?
डॉक्टरों ने ऑस्टियोपोरोसिस के लिए कई जोखिम कारकों की पहचान की है. कुछ परिवर्तनीय हैं, लेकिन दूसरों से बचना संभव नहीं है. हड्डियों की डेंसिटी, मजबूती और संरचनात्मक अखंडता को बनाए रखने के लिए शरीर लगातार पुरानी हड्डी के टिश्यू को अवशोषित करता है और नई हड्डी उत्पन्न करता है. जब कोई व्यक्ति 20 साल की उम्र के अंत में होता है तो हड्डियों की डेंसिटी चरम पर होती है और लगभग 35 साल की उम्र में यह कमजोर होना शुरू हो जाता है. जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है, हड्डी पुनर्निर्माण की तुलना में तेजी से टूटने लगती है. यदि यह टूटन ज्यादा हो जाए तो ऑस्टियोपोरोसिस विकसित हो सकता है. डॉक्टर्स के मुताबिक, शरीर में विटामिनडी डी की कमी भी इसके पीछे एक मुख्य कारण है.
यह पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित कर सकता है, लेकिन एस्ट्रोजन जो आमतौर पर ऑस्टियोपोरोसिस से बचाता है में अचानक कमी के कारण मेनोपौसे के बाद महिलाओं में इसके होने की संभावना सबसे अधिक होती है.
इन लोगों को ये बीमारी होने का खतरा ज्यादा होता है?
ऑस्टियोपोरोसिस उन लोगों में होने की अधिक संभावना है जिनका
1- कैल्शियम का सेवन कम हो- आजीवन कैल्शियम की कमी ऑस्टियोपोरोसिस के विकास में भूमिका निभाती है. कम कैल्शियम के सेवन से हड्डियों की डेंसिटी कम हो जाती है, हड्डियाँ जल्दी नष्ट हो जाती हैं और फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है.
2-ईटिंग डिसऑर्डर्स- भोजन के सेवन पर गंभीर रूप से प्रतिबंध लगाने और कम वजन होने से पुरुषों और महिलाओं दोनों में हड्डियां कमजोर हो जाती हैं.
3-गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जरी- आपके पेट के आकार को कम करने या आंत के हिस्से को हटाने के लिए की जाने वाली सर्जरी कैल्शियम समेत पोषक तत्वों को अब्सोर्ब करने के लिए उपलब्ध सतह क्षेत्र की मात्रा को सीमित कर देते हैं. इन सर्जरी में वजन कम करने और अन्य गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकारों में मदद करने वाली सर्जरी शामिल हैं.
ओस्तेरिओपेरोसिस (Osteoporosis ) से कैसे बचा जा सकता है?
आमतौर पर हड्डियों में तीन प्रकार के सेल्स होते हैं: ऑस्टियोब्लास्ट (osteoblast)ऑस्टियोक्लास्ट(osteoclast) और ऑस्टियोसाइट(Osteocyte)
ऑस्टियोक्लास्ट हड्डियों के पुनर्जीवन या डेड बोन को खाने के लिए जिम्मेदार है. जबकि ऑस्टियोब्लास्ट नई हड्डियों के निर्माण के लिए उपयोगी होता है. वहीं, हार्मोनल गतिविधि की कमी, गतिहीन जीवन शैली, स्टेरॉयड, अत्यधिक शराब का उपयोग आदि जैसे अलग-अलग कारणों से इस प्रक्रिया में असंतुलन ओस्तेरिओपेरोसिस के लिए जिम्मेदार है.
बीमारी को जल्दी ठीक करने के लिए कुछ दवाएं जैसे बिस्फोस्फेट्स, डेनुसोमैब, मल्टीविटामिन और विटामिन डी सप्प्लिमेंट्स, पैराथाइरॉइड हार्मोन (पीटीएच) से ऑस्टियोपोरोसिस के उपचार में मदद मिल सकती है और हड्डियों के रिअब्सोर्ब्शन को रोका जा सकता है.
इसके अलावा आप अपनी लाइफस्टाइल में परिवर्तन से भी इस बमारी से होने वाले खतरों से बच सकते हैं, लाइफस्टाइल फैक्टर्स जिनपर आप ध्यान दे सकते हैं
1- धूम्रपान से बचें- क्योंकि इससे नई हड्डियों का विकास कम हो सकता है और महिलाओं में एस्ट्रोजन का लेवल कम हो सकता है.
2- शराब का सेवन सीमित करें- स्वस्थ हड्डियों को प्रोत्साहित करने और गिरने से रोकने के लिए शराब का सेवन सीमित करें.
3- व्यायाम करें- नियमित रूप से वजन उठाने वाले व्यायाम करें. जैसे कि पैदल चलना,क्योंकि यह स्वस्थ हड्डियों को बढ़ावा देता है और मांसपेशियों को मजबूत करता है और साथ ही साथ लचीलेपन और संतुलन को बढ़ावा देने के लिए योग जैसे व्यायाम करें जो गिरने और फ्रैक्चर के जोखिम को कम कर सकता है.
क्या हो सकती हैं इससे होने वाली कॉम्प्लीकेशन्स?
जैसे-जैसे हड्डियाँ कमज़ोर होती जाती हैं, फ्रैक्चर ज्यादा होने लगती हैं और उम्र के साथ उन्हें ठीक होने में ज्याद वक्त लगता है. इससे निरंतर दर्द हो सकता है और कद में कमी आ सकती है, क्योंकि रीढ़ की हड्डियां ढहने लगती हैं. कुछ लोगों को टूटे हुए कूल्हे से उबरने में लंबा वक्त लग जाता है और वे स्वतंत्र रूप से रहने में सक्षम नहीं हो सकते हैं.