दुनियाभर में रूमैटिक हार्ट डिज़ीज़ से लगभग चार करोड़ लोग प्रभावित हैं और एक रिसर्च के अनुसार हर साल इस बीमारी से लगभग तीन लाख लोगों की मौत हो जाती है. इस बिमारी पर WHF यानि वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन का कहना है कि ये बिमारी बचपन में ही हो जाती है और इससे मौत से लेकर विकलांग होने तक की संभावना बनी रहती है और ये बिमारी पिछड़े और विकासशील देशों में ज्यादा पाई जाती है.
 
2023 में अगस्त में इस बिमारी पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स और राम मनोहर लोहिया, आरएमएल के डॉक्टरों ने भी रिसर्च किया था. जिसमें रिसर्च के लिए 30 बच्चों को लिया गया था. इस शोध से पता चला कि जिन बच्चों को शोध में शामिल किया था, उनमें कुछ एचएलए (ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन) कॉमन थे, जो ये बताता है जिनमें ये एचएलए (जीन) होंगे उनमें रूमैटिक फ़ीवर या आरएचडी होने की ज़्यादा आशंका होती है. इस बीमारी के लिए एक खास तरह का बैक्टीरिया, स्ट्रेप्टोकोकल फैरिनज़ाइटिस ज़िम्मेदार होता. इसमे पहले बच्चे या किशोर को बुख़ार आता है फिर रूमैटिक फ़ीवर बुख़ार का अटैक होने लगता है.


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रूमैटिक फीवर और रुमैटिक हार्ट डिज़िज़ के लक्षण? (rheumatic heart diseases symptoms)
गले में ख़राश होना
बुख़ार आना
घुटनों, कोहनी और कलाई के जोड़ों में दर्द होना
थकान होना
इसके अलावा रुमैटिक हार्ट डिज़िज़ के आम लक्षणों में शामिल है .हाँफना ख़ाँसी छाती में दर्द होना जोड़ों में दर्द थकान होना पेट, हाथ और पांव में सूजन होना


किन बच्चों को होता है रूमेटिक हार्ट डिजीज होने का खतरा? 
अगर खराब गला या लाल बुखार जैसे स्ट्रेप्टोकॉकस इन्फेक्शन का इलाज न किया जाए तो रूमेटिक हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ जाता है. वे बच्चे, जिनका गला बार-बार खराब होता है, उनमें रूमेटिक फीवर और रूमेटिक हार्ट डिजीज का खतरा बहुत ज्यादा होता है. 


कैसे होता है डायग्नोस 
रूमेटिक हार्ट डिजीज के मरीज़ों को या तो गले में इन्फेक्शन होगा या उन्हें हाल ही में ऐसा हुआ होगा. इसमें इन्फेक्शन की जांच के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है, इसके अलावा रूमेटिक हार्ट डिजीज की पहचान के लिए कुछ और टेस्ट भी किए जाते हैं जैसे कि इकोकार्डियोग्राम (इको), इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी), चेस्ट एक्स-रे, कार्डियक एमआरआई और ब्लड टेस्ट.


रुमैटिक हार्ट डिज़िज़ के लिए ट्रीटमेंट (Rheumatic heart diseases treatment)
दरअसल इस बिमारी का इलाज़ इस बात पर निर्भर करता है कि हार्ट के वाल्व को कितना नुकसान हुआ है. अगर नुकसान ज्यादा होता है तो सर्जरी करनी पड़ती है. रूमेटिक फीवर को रोकने का सबसे बेहतर इलाज एंटीबायोटिक्स मानी जाती हैं, जिन्हें आमतौर पर गले के इन्फेक्शन में लिए जाता है. एंटीबायोटिक्स, रूमेटिक फीवर को बढ़ने से रोक सकती हैं. इसके अलावा एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाओं का उपयोग सूजन को कम करने और हार्ट को होने वाले नुकसान के खतरे को कम करने के लिए किया जाता है. हार्ट फेल्योर के मैनेजमेंट के लिए दूसरी दवाओं की जरुरत हो सकती है. 


वैसे तो रूमेटिक फीवर किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन आमतौर पर ये 5 साल से 15 साल की उम्र के बच्चों में ज्यादा देखने को मिलता है. इस बीमारी को पूर्ण रूप लेने में कम से कम 10 साल का वक्त लगता है. इस बिमारी के ज्यादातर मरीज़ अफ्रीका, मध्य एशिया, दक्षिण एशिया में हैं. वहीं भारत में बिहार, उड़ीसा, झारखंड और पड़ोसी देश नेपाल में इस बिमारी के सबसे ज्यादा मरीज़ हैं.अगर इस बीमारी का इलाज सही समय पर न किया जाए तो 30 से 35 साल तक की उम्र होते-होते किसी भी व्यक्ति की जान जा सकती है