Antimicrobial resistance क्यों है इंसान की जान पर बने 10 सबसे बड़े खतरों में से एक, WHO के चौंकाने वाले खुलासे
WHO की नयी रिपोर्ट के अनुसार, Antimicrobial resistance यानी दवाओं का हमारे शारीर में ना असर करने की वजह से हर साल दुनिया में तक़रीबन 10 लाख से भी अधिक लोग अपनी जान गंवा रहे हैं. इतना ही नही दक्षिण एशियाई देशों में लगभग 4 लाख लोगों ने अपनी जान ऐसे खतरनाक इन्फेक्शन की वजह से गंवाई, जिन पर दवाओं का कोई असर नहीं पड़ रहा था.
आज हम ऐसे वैज्ञानिक दौर में जी रहे हैं, जहां आए दिन नई-नई मेडिकल इनोवेशन होती रहेती है. फिर चाहे वो कैंसर के लिए टारगेट थेरेपी का आना हो या टाइप 2 diabities के लिए नए ड्रग का अविष्कार या सेप्सिस को डिटेक्ट करने के लिए AI का इस्तमाल करना हो. हम हर पल कुछ न कुछ नया एक्सपेरिमेंट और नए अविष्कार करते ही रहते हैं. मगर जैसे जैसे हम इस गतिशील दुनिया में आगे बढ़ते जा रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं की हमारे हाथ में दुनिया में होने वाली सभी बीमारियों का इलाज हो वैसे-वैसे हम अपने माहौल में मौजूद इन बीमारी पैदा करने वाले माइक्रो ओर्गानिस्म को भी उतना ही मजबूत करते जा रहे हैं. आज के इस दौर में जहां लगभग हर बीमारी का इलाज हमारे पास मौजूद है. वहां ये जानना भी बेहद अवशयक हो गया है की किसी तरह से ये माइक्रो ओर्गानिस्म जिन्हें हम बैक्टिरिया और वायरस के नाम से जानते हैं, वो हमसे 10 कदम आगे चल रहे हैं और हमारे शरीर में दवाओं को अपने खिलाफ बेअसर कर रहे हैं.
क्या है Antimicrobials और क्या है Antimicrobial resistance ?
एंटीबायोटिक्स, एंटीवायरल, एंटीफंगल और एंटीपैरासिटिक्स -ये ऐसी दवाएं हैं जिनका उपयोग मुख्य तौर से इंसानों, लाइफस्टॉक और क्रॉप प्रोडक्शन में इन्फेक्शन को रोकने और उनका इलाज करने के लिए किया जाता है, इसीलिए इन्हें Antimicrobial medicine कहा जाता है. हालांकि उनकी इफेक्टिवनेस पर अब काफी गहरा खतरा मंडरा रहा है. कई antimicrobial ट्रीटमेंटस जो पहले हमारे शरीर में असर किया करते थे अब बेअसर हो गए हैं.
माइक्रो-ओर्गानिस्मस जैसे बैक्टीरिया, वायरस,पैरासाइटस और फंगस आदि ने उनके प्रति रेसिस्टेंस डेवलप कर लिया है.
Antimicrobial दवाओं का गलत या हद से ज्यादा इस्तेमाल और प्रदुषण से इन माइक्रोओर्गानिस्मस ने हमारे शारीर और पर्यावरण दोनों में खुद को एडजस्ट कर अपनी रेसिस्टेंस बना लेते हैं. इंसान दूषित भोजन, दूषित पानी, फंगल स्पोर inhalation और दूसरे मार्गों के माध्यम से पर्यावरण में मौजूद एएमआर के संपर्क में आ सकते हैं. असान शब्दों में कहें तो Antimicrobial resistance का अर्थ है इंफेक्शन से लड़ने वाली ज़रुरी दवाओं का बेअसर हो जाना.
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक आज जिस स्तर पर एएमआर की समस्या बढ़ रही है, अगर इसका इलाज नही निकाला गया तो दुनियाभर में लगभग एक करोड़ लोग इस वजह से अपनी जान गवा देंगे क्योंकि उन पर दवाएं असर नहीं कर रही होंगी. इतना ही नही वर्ल्ड बैंक ने भी एक रिपोर्ट में बताया की आने वाले 25 सालों में एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने के कारण ग्लोबल एक्सपोर्ट में 3.8% की कमी आ सकती है, हर साल पैदा होने वाला लाइव स्टॉक जैसे मीट और डेयरी प्रोडक्टस सालाना 7.5% की दर से कम हो सकते हैं और स्वास्थ्य पर आने वाले खर्च में 1 Trillion डॉलर की बढ़त हो सकती है.
क्या है Antibiotic Resistance और Antimicrobial resistance में अंतर?
किसी भी सर्जरी के दौरान होने वाले इंफेक्शन, कैंसर के इलाज के दौरान चल रही कीमोथेरेपी से होने वाले इंफेक्शन को रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं की एक तय मात्र होती है . लंबे समय तक बार बार इन दवाओं को इस्तेमाल करते रहने से हमारा शारीर इन दवाओं का आदी हो जाता है और दवाओं का असर कम होने लगता है और इसे ही हम Antibiotic Resistance कहेते हैं . हलांकि Antibiotic Resistance और Antimicrobial resistance में बहुत ज़रा सा ही अंतर होता है और वो ये कि Antibiotic Resistance का अर्थ एंटीबायोटिक दवाओं का विरोध करने वाले बैक्टीरिया से है, जबकि Antimicrobial resistance किसी भी माइक्रोओर्गानिस्मस के उन दवाओं को रेसिस्ट करना है जो उन्हें मारने के लिए तैयार की गयी थी.
इस मुद्दे पर क्या कहती है AIIMS?
AIIMS ने एक नए अध्ययन में पाया है कि देश भर में गंभीर बीमारी से पीड़ित कई मरीजों पर एंटीबायोटिक दवा ने काम करना बंद कर दिया है. एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होते चले जाने का हाल अब ये हो गया है कि सबसे लेटेस्ट दवा जिसे WHO ने रिजर्व कैटेगरी में रखा है वो भी अब कई मामलों में काम नही कर रही है . रिजर्व कैटेगरी की दवा का अर्थ है कि इसे सिर्फ विशिष्ट अवसरों पर ही इस्तमाल किया जाए. हैरान करने वाली बात यह है की सबसे प्रभावी एंटीबायोटिक भी 20% मामलों में काम करती है, यानी बाकी 60% से 80% मरीज खतरे में हैं और अपनी जान गवां सकते हैं.
क्या है ICMR का मत?
पिछले वर्ष जनवरी से दिसंबर तक, भारत की सबसे बड़ी मेडिकल रिसर्च संस्था आईसीएमआर ने देश के 21अस्पतालों से जानकारी जुटाई, इसमें 1 लाख सैंपल्स इन अस्पतालों के आईसीयू में भर्ती मरीजों से जुटाए गए थे. इस अध्ययन में 1747 इंफेक्शन वाले बैक्टीरिया पाए गए और इन सब में सबसे जिद्दी बैक्टीरिया, क्लैबसेला निमोनिया (Klebsiella pneumonia) और ई कोलाई बैक्टीरिया (bacterium Ecoli) को माना गया. इन बैक्टीरिया के गिरफ्त में आए मरीजों पर कोई भी एंटीबायोटिक दवा काम नहीं कर रही थी. 2017 में ई कोलाई बैक्टीरिया के शिकार 10 में से 8 मरीजों पर दवाओं ने काम किया था मगर 2022 तक आते आते 10 में से केवल 6 मरीजों पर दवाओं ने अपना असर दिखाया. 2017 में क्लैबसेला निमोनिया इंफेक्शन से पीडित 10 में से 6 मरीजों पर ही दवाओं ने काम किया और हैरान करने वाली बात यह है की 2022 में 10 में से केवल 4 मरीजों पर दवाएं काम कर रही थी. ये इंफेक्शन मरीजों के ब्लड तक पहुंच कर उन्हें और ज्यादा बीमार कर रहा था. एंटीबायोटिक दवाओं के काम ना करने की समस्या केवल अस्पताल में भर्ती गंभीर मरीजों तक सीमित नहीं है बल्कि पेट खराब होने के मामलों में ली जाने वाली कॉमन एंटीबायोटिक दवाएं भी मरीजों पर बेअसर साबित हो रही हैं.
AMR को कैसे कर सकते हैं मैनेज?
AMR को पूरी तरह से खत्म करना संभव नहीं है, क्योंकि माइक्रोब्स हमेशा खुद को संशोधित करने और अपने पर्यावरण के अनुकूल होने में सक्षम होते हैं. हालाँकि, ऐसे कुछ तरीके हैं, जिनसे आप अपना जोखिम कम कर सकते हैं:
1- लक्षणों पर चर्चा करने और किसी भी बीमारी के इलाज के लिए सही दवा पर निर्णय लेने के लिए अपने डॉक्टर के साथ मिलकर ही काम करें.
2- कोई भी दवा लेने से पहले दवा के लिए दिए गए निर्देशों का पालन करें.
3- कभी भी किसी अन्य व्यक्ति को लिखी गयी दवा न लें और ना ही अपनी दवा उनके साथ बांटे.
4- पुरानी दवाओं को बाद में उपयोग के लिए न बचाकर रखें.
5- एंटी बायोटिक दवाओं की आवश्यकता को रोकने के लिए उचित आहार, व्यायाम, पर्याप्त नींद और अच्छी स्वच्छता (विशेषकर बार-बार हाथ धोना) जैसी सामान्य स्वास्थ्य प्रथाओं का पालन ज़रूर करें.