AIMPL on UCC: लॉ कमीशन ने हाल ही में कई पक्षों से UCC पर उनकी आपत्ति मांगी थी. देश के सबसे बड़े मुस्लिम संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी अपनी आपत्ति लॉ कमीशन को भेजी है. इसमें बोर्ड ने कहा है कि लॉ कमीशन के दस्तावेज साफ नहीं है. इसमें 'हां' या 'न' में जवाब मांगे गए हैं. बोर्ड का कहना है कि "इसे (UCC) लेकर राजनीति हो रही है. इस्लाम में लोग इस्लामिक कानूनों से बंधे हुए हैं, इसमें किसी तरह से बहस नहीं हो सकती है.''


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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि "संविधान सभा में भी मुस्लिम कम्युनिटी ने समान नागरिक संहिता का भारी विरोध किया था. इस देश का संविधान खुद यूनिफार्म नहीं है. यहां तक कि गोवा के सिविल कोड में भी डाइवर्सिटी है. हिंदू मैरिज एक्ट भी सभी हिंदुओं पर समान रूप से लागू नहीं होता है."


बोर्ड ने कहा है कि "मुस्लिम पर्सनल लॉ कुरान और Sunnah से सीधे लिए गए हैं और उनकी पहचान से जुड़े हैं. भारत के मुसलमान अपनी पहचान खोने को तैयार नहीं हैं. देश में कई तरह के पर्सनल लॉ संविधान के आर्टिकल 25, 26 और 29 के मुताबिक हैं."


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बोर्ड के प्रवक्त ने बताया कि "बोर्ड का कहना है कि UCC के दायरे से सिर्फ आदिवासियों को ही नहीं बल्कि हर धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग को अलग रखा जाना चाहिए. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हमेशा से UCC के खिलाफ रहा है."


बोर्ड ने कहा, "यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है इसका जवाब भले ही आसान लगता हो लेकिन यह जटिलताओं से भरा है. साल 1949 में जब UCC पर संविधान सभा में चर्चा हुई थी तब ये जटिलताएं उभर कर सामने आई थीं और मुस्लिम समुदाय ने भी इसका पुरजोर विरोध किया था. उस वक्त डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के स्पष्टीकरण के बाद वो विवाद खत्म हुआ था."


बोर्ड की ओर से कहा गया, "अंबेडकर ने कहा था यह मुम्किन है कि फ्यूचर की संसद एक ऐसा प्रावधान कर सकती है कि संहिता सिर्फ उन्हीं लोगों पर लागू होगी जो इसके लिए तैयार होने का ऐलान करेंगे, इसलिए संहिता को लागू करने की शुरुआती स्थिति पूरी तरह से स्वैच्छिक होगी."


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