USCIRF on CAA: भारत में हाल ही में सरकार की तरफ से लागू किए गए नागरिकता संशोधन बिल (CAA) पर अमेरिका की एक संस्था ने चिंता जताई है. अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी अमेरिकी आयोग (USCIRF) ने CAA पर कहा है कि किसी को धर्म या यकीन की बुनियाद पर नागरिकता से वंचित किया जाना ठीक नहीं है.


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क्या है प्रावधान?
विवादस्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम को इसी महीने की शुरूआत में लागू किया है. इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से दस्तावेज के बिना भारत आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने का रास्ता आसान होगा. 


मुसलमानों को बाहर करता है
USCIRF के आयुक्त स्टीफन श्नेक ने कहा कि "समस्याग्रस्त CAA पड़ोसी देशों से भागकर भारत में शरण लेने आए लोगों के लिए धार्मिक अनिवार्यता का प्रावधान स्थापित करता है." उन्होंने कहा कि यह कानून हिंदुओं, पार्सियों, सिखों, बौद्धों, जैनियों और ईसाइयों को नागरिकता देने की बात करता है, लेकिन यह कानून मुसलमानों को बाहर रखता है. 


मुसलमानों को नागरिकता नहीं
आलोचकों ने मुस्लिमों को इसके दायरे से बाहर रखने पर सवाल उठाया है. लेकिन भारत अपने कदम पीछे खींचने को तैयार नहीं. श्नेक ने कहा कि "अगर वाकई इस कानून का मकसद उत्पीड़न झेलने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करना होता, तो इसमें बर्मा (म्यांमार) के रोहिंग्या मुसलमान, पाकिस्तान के अहमदिया मुसलमान या अफगानिस्तान के हजारा शिया समेत अन्य समुदाय भी शामिल होते. किसी को भी धर्म या विश्वास के आधार पर नागरिकता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए."


मुस्लिम अप्लाई कर सकते हैं
हालांकि भारन ने इस मामले में अपना रिएक्शन दिया है. भारत के गृह मंत्रालय का कहना है कि इन देशों के मुसलमान भी भारत में नागरिकता के लिए अप्लाई कर सकते हैं. इस बीच ‘फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज’ (FIIDS) ने कहा है कि इस प्रावधान का मकसद भारत के तीन पड़ोसी इस्लामिक देशो के प्रताड़ित धार्मिक लोगों को नागरिकता देना है.


भारत का रिएक्शन
FIIDS के हवाले से ABP ने लिखा है कि "गलतफहमियों के उलट, इसमें भारत में मुसलमानों को नागरिकता से वंचित करने या उनकी नागरिकता रद्द करने या उन्हें निर्वासित करने का प्रावधान नहीं है इसलिए, इसे "उत्पीड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए शीघ्र नागरिकता अधिनियम" कहना उचित होगा.