Muslim Marriage Act: असम कैबिनेट की तरफ से असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को रद्द करने के ऐलान के बाद ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के नेता रफीकुल इस्लाम ने शनिवार को इस फैसले की आलोचना की और इसे गलत बताया. उन्होंने कहा कि "यह मुसलमानों को निशाना बनाने की रणनीति" है. रफीकुल ने दावा किया कि हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली असम सरकार के पास समान नागरिक संहिता (UCC) लाने का "साहस" नहीं है, इसलिए विवाह अधिनियम को रद्द कर दिया गया है.


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असम में नहीं ला सकते UCC
रफीकुल इस्लाम ने कहा कि  "इस सरकार में UCC लाने की हिम्मत नहीं है. वे ऐसा नहीं कर सकते. वे जो उत्तराखंड में लाए, वह UCC भी नहीं है. वे असम में भी UCC लाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन मुझे लगता है कि वे ऐसा नहीं कर सकते." उन्होंने आगे कहा कि वह असम में UCC नहीं ला सकते क्योंकि यहां कई जातियों और समुदायों के लोग हैं. भाजपा के अनुयायी खुद यहां उन प्रथाओं का पालन करते हैं. चुनाव नजदीक आ रहे हैं इसलिए यह सिर्फ मुसलमानों को निशाना बनाने की उनकी रणनीति है.


ज्यादा है मुस्लिम आबादी
एआईयूडीएफ विधायक ने आगे कहा कि "वे असम में बहुविवाह या UCC पर कोई विधेयक नहीं ला सके. इसलिए, वे असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को निरस्त कर रहे हैं. असम कैबिनेट के पास संवैधानिक अधिकार को निरस्त करने या संशोधित करने का अधिकार नहीं है." 2011 की जनगणना के मुताबिक, असम की आबादी में मुसलमानों की संख्या 34 प्रतिशत है, जो कुल 3.12 करोड़ की आबादी में से 1.06 करोड़ है. 


मुख्यमंत्री का ट्वीट
कल रात, मुख्यमंत्री सरमा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि असम कैबिनेट ने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को रद्द करने का फैसला किया है. सरमा ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा "23.2.2024 को, असम कैबिनेट ने सदियों पुराने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को निरस्त करने का एक अहम फैसला किया. इस अधिनियम में विवाह पंजीकरण की अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल हैं, भले ही दूल्हा और दुल्हन की उम्र 18 और 21 साल की कानूनी उम्र तक नहीं पहुंची हो, , जैसा कि कानून द्वारा अपेक्षित है. यह कदम असम में बाल विवाह पर रोक लगाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है."