Barabanki News: हल्द्वानी और बरेली की घटना को लेकर 'ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज' के नेशनल वाइस प्रेसिडेंट वसीम राईन ने अपनी बात रखी. राइन ने इस दौरान मौलाना तौकीर रजा और सलमान अजहरी पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि बुनियादी हक, सियासी पहचान और तरक्की से महरूम पसमांदा मुसलमानों को उकसाने, भड़काने और खुद को रहनुमा कहने वाले बाज आएं. यह विरोध करने का बहुत गलत तरीका है. ऐसा करके मौलाना तौकीर रजा हों या सलमान अजहरी या कोई और, यह सब अपने फायदे के लिए सियासी रोटियां सेंक रहे हैं. इसका सीधा और बुरा असर पसमांदा कम्युनिटी पर पड़ेगा और सरकार से बातचीत के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे. पसमांदा मुसलमानों से मेरी गुजारिश है कि ऐसे भड़काऊ लोगों के कहने में न आए, बल्कि समझदारी से काम लें.


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वसीम राईन ने आगे कहा कि हल्द्वानी हो या बरेली, दोनों ही जगहों की घटनाएं बेहद शर्मनाक हैं. यह जरुरी नहीं कि गवर्नमेंट का हर कदम या फैसला सही हो, गलती या भूल उनसे भी होती रहती है पर इसका मतलब यह नहीं कि पसमांदा कम्युनिटी सड़क पर उतर आए, हिंसा करे और सार्वजनिक प्रोपर्टी को नुकसान पहुंचाए और भाईचारे को हाशिए पर रख दे. इनके इस मिजाज का पूरा फायदा कौम की रहनुमाई करने वाले भी उठा रहे हैं, वह इसके नुकसान की परवाह इसलिए नहीं करते हैं, क्योंकि यह सभी अपनी सियासी रोटियां सेंक कर या तो किनारे हो जाएंगे या फिर इन्हें सदन तक पहुंचा दिया जाएगा. लेकिन इसमें सबसे बड़ा नुकसान पसमांदा कम्युनिटी उठाएगा.



हाल की दोनों घटनाओं पर राइन ने कहा कि जो कुछ भी हुआ वह संविधान की मूल भावना के उलट है. पसमांदा समाज को हिंसा करने माहौल खराब करने का हक नहीं है. विरोध ही करना है तो संवैधानिक तरीके से करें, कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाए, सरकार से बातचीत के रास्ते निकाले जाएं.मौलाना तौकीर रजा हों या सलमान अजहरी दोनों ने पसमांदा मुसलमान को उकसाया भड़काया और हिंसा की आग में झोंक दिया है, जबकि खुद पर्दे के पीछे खड़े होकर तमाशा देखते रहे. नुकसान इनका नहीं बल्कि पसमांदा कम्युनिटी का हुआ. सवाल इस बात का है कि यह मौलाना आदि लोग पसमांदा मुसलमान को हिंसा की आग में झोंक देते हैं पर यह सभी आज तक इस समाज के बुनियादी हक,सियासी पहचान व जायज मुद्दों को हल करवाने के लिए कभी आगे नहीं आए.


उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 341 के मामले पर इन सभी ने चुप्पी साध रखी है. सरकार बीजेपी की हो या कांग्रेस की, किसी भी हाल में हिंसक विरोध सही रास्ता नहीं है, ऐसा करने से पसमांदा की इमेज सरकार विरोधी बन जाएगी और बातचीत के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे.