`मजहब के नाम पर क्या हम तो बिना मजहब के..` मुसलमानों के आरक्षण पर जमीयत उलेमा ए-हिंद का बड़ा बयान
Jamiat Ulema-e-Hind On Reservation of Muslims: लोकसभा चुनाव 2024 के रण में इन दिनों मुस्लिम रिजर्वेशन का मुद्दा खूब गरमाया हुआ है. उत्तर प्रदेश जमीयत उलेमा ए-हिंद ने कहा कि मुसलमान आरक्षण की मांग कर ही नहीं रहा है, इसके बावजूद सियासी पार्टियां अपनी राजनितिक रोटी सेक रही हैं.
Jamiat Ulema-e-Hind On Reservation of Muslims: लोकसभा चुनाव 2024 के रण में इन दिनों मुस्लिम रिजर्वेशन का मुद्दा खूब गरमाया हुआ है. हाल ही में बिहार के पूर्व सीएम व राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कहा कि मुस्लिमों को रिजर्वेशन मिलना चाहिए. इसके बाद उनके इस बयान पर वार-पलटवार का दौर जारी हो गया.
इस बीच, उत्तर प्रदेश जमीयत उलेमा ए-हिंद के लीगल एडवाइजर काब रशीदी ने भी इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है. उन्होंने कहा कि मुसलमान आरक्षण की मांग कर ही नहीं रहा है, लेकिन इसके बावजूद सियासी पार्टियां अपनी राजनितिक रोटी सेक रही हैं. उन्होंने कहा, "अजीब विडंबना है, मुसलमान तो रिजर्वेशन की मांग कर ही नहीं रहा है. आरक्षण के लिए न तो कहीं धरना-प्रदर्शन किया जा रहा है, न ही कहीं ट्रेन-बस रोकी जा रही है, लेकिन इसके बावजूद भी आरक्षण की माला मुसलमानों के गले में डालकर सियासी सफर को सफल बनाने की कोशिश की जा रही है."
उन्होंने कहा आगे कहा, "हम मजहब के नाम पर आरक्षण मांग ही नहीं रहे. इसके बाद भी आप हमें रिजर्वेशन देने की बात कह रहे हैं. मैं इससे सहमत हूं कि संविधान में मजहब के नाम पर रिजर्वेशन देने का प्रोविजन नहीं है. इसीलिए हम CAA का विरोध करते हैं, क्योंकि आपने इसे धर्म के बुनियाद पर तय किया है. इसमें एक खास धर्म के लोगों को आपने बाहर करने का फैसला किया है."
काब रशीदी ने कहा कि मजहब के नाम पर क्या हम तो बिना मजहब के नाम पर भी रिजर्वेश की मांग नहीं करते. मैं समझता हूं कि बगैर रिजर्वेशन मांगे उसका प्रचार-प्रसार करना, आरोप प्रत्यारोप करना, चुनाव के दौरान का सबसे बड़ा शिगूफा बन गया है. चुनाव में असल मुद्दे नहीं हैं, इसलिए इस तरह की बयानबाजी की जा रही है.
मुसलमान शांत है; काब रशीदी
उन्होंने कहा कि मुसलमान शांत है, वह अपने बिजनेस में लगा हुआ है. वो चुनावी आपाधापी में कहीं शामिल नहीं हैं. जब पूरा चुनाव उस एक आबादी के ऊपर लड़ा जाने लगे जो खुद एक्शन या रिएक्शन नहीं कर रही, तो आप समझ जाइए. चुनाव में गरीबी, बेरोजगारी, पढ़ाई, अच्छी सड़कें, स्वास्थ्य पर बात होने के बजाए मुसलमानों का डमरू बजाया जा रहा है. आप खुद तय कीजिए कि आप मुल्क को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं.