नई दिल्ली: दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने एक संगठित सिंडिकेट चलाने के मुलजिम तीन मुस्लिम भाइयों को आरोपों से बरी कर दिया है. अदालत ने फैसला सुनाया कि इस केस में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) के तहत मामला दर्ज करने की मंजूरी सक्षम प्राधिकारी द्वारा बिना सोचे समझे दी गई थी.  महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) के तहत अगस्त 2013 में  दिल्ली के सीलमपुर पुलिस स्टेशन  में तीन आरोपी व्यक्तियों सहित उनके पिता मोहम्मद इकबाल गाजी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था.


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विशेष न्यायाधीश (मकोका) पुलस्त्य प्रमाचला ने मोहम्मद उमर उर्फ ​​पाउ, कमालुद्दीन उर्फ ​​कमाल उर्फ ​​बिलाल और मोहम्मद जमाल उर्फ ​​रांझा को मकोका के तहत अपराध से बरी करने का फैसला दुनया है. इस केस में आरोपियों में से एक मोहम्मद इकबाल गाज़ी की मुकदमे के दौरान ही मौत हो चुकी थी. एएसजे प्रमचला ने 15 अक्टूबर को इस केस में अपना फैसला सुनाया था. 


कोर्ट द्वारा पारित आदेश के बाद दिल्ली पुलिस ने 14 अगस्त 2013 को थाना सीलमपुर में मकोका की धारा 3(2) और (4) के तहत मामला दर्ज किया था. मामला दर्ज होने के बाद जांच तत्कालीन एसीपी सीलमपुर को सौंपी गई थी. इस मामले में मुलजिमों को बरी करते हुए अदालत ने कहा कि मकोका के तहत मामला दर्ज करने की मंजूरी वैध नहीं थी. 


इस मामले में अदालत ने मुलजिमों के स्वीकारोक्ति बयान को भी स्वीकार नहीं किया, क्योंकि प्राथमिकी दर्ज करने की मंजूरी अमान्य थी. अदालत ने कहा, "वैसे भी, इकबालिया सबूत बहुत मजबूत सबूत नहीं हैं. उनका सबसे अच्छा उपयोग तब किया जा सकता है, जब तथ्यों को साबित करने के लिए अन्य स्वतंत्र सबूत हों, जो कबूलनामे का विषय हों."
 


कोर्ट में पुलिस की दलील ख़ारिज 
गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस द्वारा यह इलज़ाम लगाया गया था कि मुल्जिम एक संगठित अपराध सिंडिकेट चला रहे थे, और अपराध की आय से संपत्ति अर्जित की थी. अदालत ने कहा, 
"इस मामले में मुलजिम द्वारा संगठित अपराध करने का इलज़ाम लगाने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा लागू किए गए तथ्यों और कानूनी सिद्धांतों के मूल्यांकन की बुनियाद पर, मैंने पाया कि अभियोजन पक्ष ने मुलजिम को कसूरवार ठहराने और उन पर मुकदमा चलाने के लिए ज़रूरी कानूनी सामग्री को संतुष्ट नहीं किया है. यह साबित नहीं कर पाया की वो संगठित अपराधिक गिरोह का संचालन करता था और उससे उसने धन जमा किये. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने कुछ संपत्तियों का हवाला दिया, जो स्पष्ट रूप से किसी भी मुलजिम के नाम पर नहीं थीं.  अदालत ने कहा, "सिर्फ यह आरोप लगाना कि संपत्तियां अवैध कारोबार या कृत्यों से हासिल की गईं, पर्याप्त नहीं हो सकतीं." इस मामले में सभी आरोपी  20 जून 2016 से हिरासत में है और उन्होंने लगभग 8 साल और 4 महीने हिरासत में बिताए हैं.